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अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट को 18 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी होने की उम्मीद

सुप्रीम कोर्ट की पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने उम्मीद जताई है कि यह सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरी हो जाएगी। इसके साथ ही इसने कहा है कि हर रोज़ की सुनवाई के साथ ही मध्यस्थता की कोशिश भी जारी रह सकती है। कोर्ट ने साफ़ कहा कि याचिकाकर्ता इसके लिए स्वतंत्र हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल के माध्यम से बातचीत का रास्ता निकालें। कोर्ट ने यह भी कहा कि मध्यस्थता की कार्यवाही गोपनीय रहेगी। हालाँकि, इसके साथ ही हर रोज़ की सुनवाई जारी रहेगी। 

पहली बार मध्यस्थता की कोशिश विफल होने के बाद हाल ही में एक बार फिर से बातचीत से इस मुद्दे के हल की कोशिश शुरू हो गई है। इस मामले में हिंदू और मुसलिम के दो मुख्य पक्षों ने मध्यस्थता की बातचीत को दोबारा शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखे हैं। वे चाहते हैं कि 2.77 एकड़ ज़मीन के मालिकाना हक के विवाद को आपसी बातचीत से सुलझाया जाए। अब सुप्रीम कोर्ट ने बातचीत से इस मुद्दे के हल के लिए कह दिया है। 

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि यदि इसके माध्यम से एक सौहार्दपूर्ण समझौता किया जाता है तो उसे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर किया जा सकता है।

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मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि 18 अक्टूबर तक सभी दलीलें ख़त्म करने का संयुक्त प्रयास करें। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि ज़रूरत हुई तो अदालत अतिरिक्त घंटे या शनिवार को भी सुनवाई कर सकती है।

मध्यस्थता को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फ़ैसला इसलिए आया है क्योंकि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थों ने मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ को एक ज्ञापन सौंपा था। इसमें उन्होंने सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और निर्वाणी अखाड़ा की ओर से मध्यस्थता प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के लिए दिए गए पत्रों पर निर्देश माँगे थे।

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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एफ़ एम आई कलीफुल्ला के नेतृत्व में बने इस मध्यस्थता पैनल में वरिष्ठ वकील श्रीराम पाँचू और आध्यात्मिक नेता श्री श्री रविशंकर हैं। बता दें कि पिछली बार मध्यस्थता पैनल तब विफल रहा था जब जमीअत उलेमा ए हिंद के मौलाना अरशद मदनी गुट और विश्व हिंदू परिषद समर्थित राम जन्मभूमि न्यास अपने-अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं थे। मध्यस्थता की कोशिश विफल रहने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने हर रोज़ की सुनवाई शुरू की है। इस मामले में रामलला विराजमान की ओर से दलीलें रखी जा चुकी हैं। 2 सितंबर से सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की ओर से दलीलें रखी जा रही हैं। 

1961 में विवादित ढाँचे पर दावा करते हुए केस दर्ज करने वाले सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता कमेटी को पत्र लिखा है। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरह ही निर्वाणी अखाड़ा ने भी पत्र लिखकर मध्यस्थता को बहाल करने की वकालत की है। निर्वाणी अखाड़ा अयोध्या में तीन रामानंदी अखाड़ों में से एक है। हनुमान गढ़ी मंदिर निर्वाणी अखाड़ा के नियंत्रण में ही है। एक और रामानंदी अखाड़ा निर्मोही अखाड़े ने भी तब ज़ोरदार तरीक़े से बातचीत से विवाद के समाधान का समर्थन किया था जब पहली बार मध्यस्थता पैनल के गठन की बात आई थी।

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सुप्रीम कोर्ट उन केसों की सुनवाई कर रहा है जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर 2010 के फ़ैसले के ख़िलाफ़ 14 अपीलें दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच समान रूप से विभाजित करने का आदेश दिया था। लेकिन हाई कोर्ट का यह फ़ैसला कई लोगों को पसंद नहीं आया। यही कारण है कि इस मामले के ख़िलाफ़ कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर कीं। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मई 2011 में हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
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क़मर वहीद नक़वी

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