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हम कितना हासिल कर पाए बाबा साहब के सपनों का भारत?

चुनावी बिसात बिछते ही अक्सर सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए बाबा साहब आंबेडकर अहम हो जाते हैं। संविधान में उनके द्वारा सभी धर्म, जाति और समुदाय के लोगों के लिए सम्मिलित की गई बातें राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में फिर से स्थान पा लेती हैं। सरकारें बनते ही अगले 5 साल यह बातें फ़ाइलों में ही दबी रह जाती हैं और अगले चुनाव में फिर वही शगूफ़ा छूटता है। आख़िर ऐसा क्यों होता है? 
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बीते सात दशकों में भारतीय लोकतंत्र ने बार-बार उन ख़तरों का सामना किया है जिनके प्रति डॉ. भीमराव आंबेडकर ने पहले ही चेताया था। पिछले कुछ समय से संविधान को ताक पर रखने के आरोप भी इन दिनों आम हो चले हैं। जिस भारत की कल्पना बाबा साहब ने संविधान लिखते वक़्त की थी, उसे हम कितना हासिल कर पाए हैं, यह सोचने का विषय है। 
जिस गंभीरता और पवित्रता के साथ संविधान की रचना की गई, क्या सरकारें उसी पवित्रता के साथ उसे निभा पाई हैं? क्या बाबा साहब के संघर्षों के साथ हम न्याय कर पाए हैं?

14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ में जन्मे आंबेडकर अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। बाबा साहब का परिवार महार जाति से संबंध रखता था, जिसे अछूत माना जाता था। 

आर्थिक और सामाजिक भेदभाव झेला

बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव देखने वाले आंबेडकर ने विषम परिस्थितियों में पढ़ाई शुरू की। स्कूल से लेकर कार्यस्थल तक उन्हें अपमानित किया गया। बचपन से ही उन्हें जातिवाद का दंश झेलना पड़ा था और इसी दंश को झेलते हुए उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा हासिल की। शिक्षा के माध्यम से ही उन्होंने इस सामाजिक कुरीति को जड़ से ख़त्म करने की ठानी। 

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दुर्भाग्य से, बाबा साहब की जयंतियों व निर्वाण दिवसों पर अनेकों आयोजनों के बावजूद भी हमारी नई पीढ़ी को उनके व्यक्तित्व व कृतित्व के बारे में ज़्यादा जानकारियाँ नहीं हैं। इसकी ख़ास वजह यह है कि उनके व्यक्तित्व को संकुचित कर सिर्फ़ दलितों और शोषित समाज का मसीहा बताया जाता है जबकि आंबेडकर ने सभी वर्गों के लिए यहाँ तक कि महिलाओं के लिए भी उतना ही संघर्ष किया जितना कि दलित समाज के लिए किया। 
डॉक्टर आंबेडकर की विचारधारा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी आजादी के समय थी। उनके द्वारा संविधान में सर्व समाज की कल्पना निहित है लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि उनको सिर्फ़ एक विशेष वर्ग का मसीहा कहकर बाँटने की कोशिश होती रही है।

1980 के दशक से ही हिंदुत्ववादी राजनीति का प्रभाव बढ़ता गया और राजनीति का ध्रुवीकरण इस कदर कर दिया गया कि आज भी चुनावों में हिंदू-मुसलिम और राष्ट्रवाद ही हिंदूवादी पार्टियों का नारा बनता है। बाबा साहब सिर्फ़ एक राजनीतिज्ञ ही नहीं थे अपितु कुशल अर्थशास्त्री भी थे, औद्योगीकरण के लिए भी उनका दृष्टिकोण अद्वितीय था। 

बाबा साहब भारतीय अर्थव्यवस्था को जितना बेहतर समझते थे उतना शायद ही मौजूदा समय में कोई समझता हो। बाबा साहब ने किसानों, मजदूरों, जल संचयन एवं विद्युत उत्पादन, महिला कल्याण, दलितों के उत्थान, लगभग सभी वर्गों के लिए, सभी जाति धर्म के समुदायों के लिए एक समान काम किया। 
बाबा साहब आंबेडकर की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि जातियों में बंटा भारतीय समाज एक राष्ट्र की शक्ल कैसे लेगा और आर्थिक और सामाजिक ग़ैर बराबरी के रहते वह राष्ट्र के रूप में अपने अस्तित्व की रक्षा कैसे कर पाएगा?
आंबेडकर ने यह आशंका भी जताई थी कि अगर हमने इस ग़ैर बराबरी को ख़त्म नहीं किया तो इससे पीड़ित लोग उस ढाँचे को ध्वस्त कर देंगे, जिसे इस संविधान सभा ने इतनी मेहनत से बनाया है। उनकी कामना थी कि संवैधानिक संस्थाएँ वंचित लोगों के लिए अवसरों का रास्ता खोलें और उन्हें लोकतंत्र में हिस्सेदार बनाएँ। राष्ट्रीय एकता के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है।
आंबेडकर ने लिखा था कि लोकतांत्रिक राजनीति में अगर साम्प्रदायिक बहुसंख्यक राजसत्ता की अनदेखी करता है तो लोकतांत्रिक राज्य के लिए यह ज़रूरी हो जाता है कि वह ऐसी सांस्थानिक व्यवस्था विकसित करे जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा कर सके। दूसरे शब्दों में कहें तो बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों के बीच की खाई को पाटना ज़रूरी है। 
वर्तमान समय में देश में जो राजनीतिक पार्टी सत्ता में काबिज है उसने दोनों समुदायों के बीच की खाई को और चौड़ा किया है और ऐसा उसने लोकतांत्रिक प्रक्रिया की आड़ में किया है।

डॉ. आंबेडकर के अनुसार, लोकतंत्र का सार है “एक व्यक्ति, एक वोट”, नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक स्वतंत्रता। चुनावों का मौसम चल रहा है। आइए, भारतीय नागरिक होने के नाते, उस संविधान के हम ख़ुद मालिक होने के नाते यह संकल्प लें कि अपने क्षेत्र से ऐसे जनप्रतिनिधि को नहीं चुनेंगे जो चौकीदार के भेष में चोरी-छिपे हमारे संविधान को ही कहीं हमसे न चुरा ले। 

हम ऐसे प्रतिनिधि को चुनेंगे जो संविधान सम्मत हर नागरिक के शिक्षा, स्वास्थ्य की उत्तम व्यवस्था करेगा और जो बाबा साहब के संविधान की संघीय व्यवस्था की अस्मिता को बचाने हेतु मुस्तैद रहेगा। यही बाबा साहब आंबेडकर के प्रति, भारतीय संविधान के प्रति, हर नागरिक की सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

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राजेंद्र पाल गौतम

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