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हाथरस मामले को लेकर प्रदर्शन करने वालों पर पुलिस की कार्रवाई।फ़ाइल फ़ोटो

10 हज़ार नारीवादियों का बयान- हाथरस के दोषियों, लापरवाह अफ़सरों पर कार्रवाई हो

10 हज़ार नारीवादियों और नारीवादी समूहों ने हाथरस गैंगरेप व हत्या के दोषियों और इस मामले में लापरवाही बरतने वाले अफ़सरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की माँग की है। उन्होंने इस संबंध में बयान जारी किया है। उन्होंने कहा है कि हालाँकि अरसे से ऐसी घटनाएँ होती रही हैं लेकिन मुख्यमंत्री योगी के शासन में उत्तर प्रदेश में स्थिति बद से बदतर होती गई है। महिलाओं और दलितों के ख़िलाफ़ अपराध बढ़ा है और आज उत्तर प्रदेश दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार के चार्ट और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के चार्ट में सबसे ऊपर है।

बयान जारी करने वालों में शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, लेखक, कवि, पूर्व सरकारी अधिकारी, कॉर्पोरेट क्षेत्र से जुड़े कार्यकारी आदि शामिल हैं। 'ग्राउंडजीरो' वेबसाइट के अनुसार, बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में डॉ. सैयदा हामिद, अरुणा राय, प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार, इंदिरा जयसिंह, अपर्णा सेन, माया कृष्णा राव, पत्रकार अंकिता आनंद, शिक्षा से जुड़े मैरी जॉन, निवेदिता मेनन, जानकी नायर, साधना आर्य आदि शामिल हैं। 

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इस घटना की निंदा करते हुए एक तीखे बयान में उन्होंने कहा, 'लगातार आ रहे बर्बर यौन उत्पीड़न और हत्याओं के अनगिनत अन्य मामलों, विशेष रूप से युवा दलित महिलाओं के साथ घटनाओं के बावजूद इस देश की अंतरात्मा इतनी भी टस से मस नहीं नहीं हो पाई है जिससे महिलाओं, दलितों और ग़रीबों को निशाना बनाए जाने से रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए जा सकें।'

जिस तरह से सामाजिक कार्यकर्ता दलित और ग़रीब होने की वजह से प्रताड़ना की बात कह रहे हैं कुछ दिनों पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी ऐसी ही बात कही थी जब इसने हाथरस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था।

तब जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने आदेश में लिखा कि कोर्ट की यह बाध्यकारी ज़िम्मेदारी है कि संविधान के तहत मिले उनके अधिकारों की हर क़ीमत पर रक्षा करे और राज्य राजनीतिक या प्रशासनिक कारणों से अपनी सीमित शक्तियों को लांघ कर नागरिकों और ख़ासकर ग़रीबों व दलितों के अधिकारों को न रौंदे। आदेश में कहा गया है, 'हम इस बात की जाँच करना चाहेंगे कि क्या राज्य के अधिकारियों द्वारा मृतक के परिवार की आर्थिक और सामाजिक हैसियत का फ़ायदा उठाकर उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया है और उनका उत्पीड़न किया गया है?'

बहरहाल, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बयान में कहा है कि जब हाथरस पीड़िता की मौत की दुखद ख़बर आई, तभी उत्तर प्रदेश के ही बलरामपुर, बुलंदशहर, आजमगढ़ से दलित महिलाओं पर यौन हिंसा के कई मामले सामने आए हैं।

जातिगत उत्पीड़न के मामले सिर्फ़ तभी जनता का ध्यान खींचते हैं जब ये यौन हिंसा, आत्महत्या या हत्याओं के रूप में आते हैं। उन्होंने बयान में कहा है कि हाथरस मामला उच्च जाति की सत्ता और पितृसत्ता का मामला है, जो दो तरीक़ों- सामाजिक रूप से स्वीकृत हिंसा और राज्य एजेंसियों से चल रहा है। 

वीडियो में देखिए, कैसे साबित कर पाएँगे कि गैंगरेप नहीं हुआ?

बयान में हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा है कि समाज के सदस्यों और महिलाओं व नारीवादी आंदोलनों के रूप में वे जाति आधारित भेदभाव, हिंसा और अत्याचार के मुद्दे को हल करने का संकल्प लेते हैं, जब तक कि इसका पूरा ख़ात्मा नहीं हो जाता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्य को बलात्कार के लिए मौत की सज़ा का बयान नहीं देना चाहिए, क्योंकि बार-बार यह देखा गया है कि दुनिया में कहीं भी यौन या दूसरे अपराधों को रोकने में मौत की सज़ा कारगर नहीं है। बयान में कहा गया है, 'हमारे अपने देश में ही दिसंबर 2012 के सामूहिक बलात्कार और दिल्ली में हत्या के दोषियों को फाँसी दिए मुश्किल से 6 महीने हुए हैं, लेकिन इससे हाथरस, या बलरामपुर, या बुलंदशहर या आज़मगढ़ ... या कहीं और के दोषियों को नहीं रोका जा सका।'

बयान में उन्होंने नैतिक आधार पर वर्तमान यूपी सरकार से इस्तीफ़े की माँग की और कहा कि इसने राज्य पर शासन करने के सभी नैतिक आधार खो दिए हैं।

बयान में उन्होंने यह भी माँग की की-

  • अपराधियों के साथ-साथ लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के ख़िलाफ़ भी दलित उत्पीड़न के लिए एससी-एसटी एक्ट में कार्रवाई की जानी चाहिए। 
  • जिन पुलिस अधिकारियों ने एफ़आईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था उनके ख़िलाफ़ भी कार्रवाई हो। 
  • इस पूरे मामले को ढँकने में जो अधिकारी लिप्त रहे हैं उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए। 
  • हाथरस गैंगरेप पीड़िता का वीडियो ट्विटर पर शेयर करने के लिए बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए।
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बता दें कि इस पूरे हाथरस मामले में प्रशासन और योगी सरकार पर लापरवाही बरतने के आरोप लग रहे हैं। पिछले महीने जब कथित तौर पर गैंगरेप की वारदात हुई तो शुरुआत में मुक़दमा दर्ज नहीं किया गया। पीड़िता के इलाज के उचित इंतज़ाम नहीं हुए और राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल लाए जाने के बाद पीड़िता की मौत हो गई। पुलिस ने परिवार वालों की ग़ैर मौजूदगी में रातोरात उसका शव जला दिया। घर वाले तड़पते रहे कि उन्हें कम से कम चेहरा दिखा दिए जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इस पूरे मामले में परिवार की ओर से कई आरोप लगाए गए। अभी भी आरोप लग रहे हैं कि परिवार पर दबाव डाला जा रहा है।

इन घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। देश भर में विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता तो पीड़िता और उसके परिवार को न्याय दिलाने की माँग कर ही रहे हैं, विपक्षी दल भी लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस इस पर सख़्ती से पेश आ रही है।

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क़मर वहीद नक़वी

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