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क्या भारतीय सेना लड़ कर चीन से ज़मीन खाली करवा सकती है?

पीएलए के पास लगभग 13,000 टैंक हैं, भारतीय सेना के पास 4,100 टैंक हैं। इसी तरह चीनी सेना के पास 40 हज़ार बख़्तरबंद गाड़ियाँ हैं और इस मामले में भारत की कोई तुलना नहीं है, 2,800 बख़्तरबंद गाड़ियों के साथ यह बहुत पीछे है। इसी तरह चीनी सेना के पास 2,500 रॉकेट प्रोजेक्टर हैं और भारत के पास सिर्फ़ 266। 
प्रमोद मल्लिक
भारत और चीन के बीच मौजूदा तनाव और सैनिक, राजनीतिक व राजनयिक स्तर पर कई दौर की बातचीत के नाकाम होने के बाद चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़ बिपिन रावत का यह कहना बेहद अहम है कि यदि बातचीत से समस्या का समाधान नहीं निकला तो सैन्य विकल्प बचा हुआ है।
रावत की बात इसलिए समझी जा सकती है कि 5 स्तर की सैन्य कमांडरों की बातचीत, दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत, चीन के स्टेट कौंसिलर वांग यी और भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच हुई बातचीत और सबसे ऊपर चीन में राजदूत विवेक मिस्री की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो और सर्व शक्तिमान मिलिटरी कमीशन के उपाध्यक्ष से हुई बातचीत का नतीजा सिफ़र रहा।
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चीन ने डेपसांग और पैंगोंग त्सो खाली करने से इनकार कर दिया। पीपल्स लिबरेशन आर्मी के 40 हज़ार सैनिक भारत की ज़मीन पर डटे हुए हैं।
सवाल उठता है कि क्या भारत चीन को लद्दाख से सैन्य कार्रवाई कर पीछे धकेल सकता है? यदि युद्ध छिड़ ही गया तो क्या भारतीय सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी पर भारी पड़ेगी?

चीनी स्वप्न

शी जिनपिंग जब 2013 में चीन के राष्ट्रपति बने, उन्होंने 'चाइनीज़ ड्रीम' यानी 'चीनी स्वप्न' की बात कही। मोटे तौर पर चीनी सपना यह है कि जब चीन अपने क्रांति की 100 वीं सालगिरह 2049 में मनाए तो वह दुनिया का सबसे ताक़तवर देश रहे, आर्थिक रूप से सबसे संपन्न रहे और उसके पास दुनिया की सबसे ताक़तवर और अच्छी सेना हो।
इसलिए शी जिनपिंग ने पीपल्स लिबरेशन आर्मी में सुधार के तीन चरण तय किए, पहला चरण 2020 में पूरा हो गया जिसके तहत कई ग़ैरज़रूरी विभागों को बंद किया गया, सैनिकों को हटा कर दूसरे काम में लगाया गया या छुट्टी दे दी गई, यानी सैनिकों की संख्या में कटौती की गई। दूसरा चरण 2035 में पूरा होना है, जिसके तहत उसके पास सबसे सक्षम ब्लू वाटर नेवी यानी आधुनिकतम नौसेना हो, तेज मारक क्षमता वाली वायु सेना हो। अंतिम चरण 2049 के पहले पूरा होना है, जब चीन के पास स्पेस वीपन, आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस से चलने वाले हथियार और ऐसे आयुध हों जिनकी आज कल्पना भी नहीं की जा रही है।
यह भारत के लोगों और सैन्य तैयारियों में जुटे रणनीतिकारों क लिए काफी भयावह स्थिति हो सकती है। लेकिन भारत और चीन में जब कभी युद्ध हुआ, उसका सबसे बड़ा थियेटर हिमालय होगा। यदि यह लड़ाई आज हो गई तो क्या होगा?

आज युद्ध हुआ तो?

यह बेहद दिलचस्प बात है। नाथू ला में 1967 में हुई झड़प में भारत के 80 सैनिक शहीद हुए थे, लेकिन चीन के 300 से ज़्यादा सैनिक मारे गए थे।
हॉवर्ड के बेलफार सेंटर और सेंटर फ़ॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी ने भारत और चीन की सैन्य ताक़तों का अलग-अलग अध्ययन किया। ये दोनों ही अध्ययन चौंकाने वाले हैं और इस मिथ को तोड़ते हैं कि चीन अजेय है।

क्या कहते हैं अध्ययन?

बेलफार सेंटर की रिपोर्ट 'द स्ट्रैटेजिक पोस्चर ऑफ़ चाइना एंड इंडिया: अ विजुल गाइड' के अनुसार, चीनी सेना से सटे हुए इलाक़े में भारतीय सेना के 2,25,000 सैनिक हैं। इसमें लद्दाख में तैनात टी-72 टैंक ब्रिगेड के साथ 3,000 और अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल रेजीमेंट के साथ एक हज़ार सैनिक हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास उत्तरी कमान में 34 हज़ार, केंद्रीय कमान में 15,500 और पूर्वी कमान में 1,75,500 सैनिक हैं।
अब बात करते हैं चीन के सैन्य ताक़त की। इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के वेस्टर्न थिएटर कमांड, तिब्बत और शिनजियांग सैन्य ज़िले में 2,30,000 सैनिक हैं। इसके वेस्टर्न थिएटर में 90 हज़ार से 1,20,000 सैनिक हैं जो 76 वें और 77 वें ग्रुप में बंटे हुए हैं। लेकिन इनका मुख्यालय चोंगकिंग और बाओजी में है, जो चीन के अंदरूनी हिस्से में हैं, यानी लद्दाख़ के वास्तविक नियंत्रण रेखा से बहुत दूर हैं। युद्ध की स्थिति में पीपल्स लिबरेशन आर्मी को दूर दराज के शिनजियांग और वेस्टर्न थिएटर से सैनिकों को लद्दाख लाना होगा। भारतीय सैनिक वहीं कश्मीर में ही जमे हुए हैं।
इसी तरह भारतीय वायु सेना की स्थिति भी लद्दाख इलाक़े में मजबूत है। बेलफार रिपोर्ट के मुताबिक़, इसके पास चीन के तीन कमांड के सामने तैनात 270 लड़ाकू जहाज़, 68 ग्राउंड अटैक एअरक्राफ्ट हैं और भारत के पास 15 एडवांस्ड लैंडिंग फैसिलिटी हैं, ये ऐसी  हवाई पट्टियां जहां लड़ाकू जहाजों को उतारा जा सकता है और वे वहां से उड़ान भी भर सकते हैं।
चीनी वायु सेना इस मामले मे कमज़ोर है। चीन के पास भारत के नज़दीक 157 लड़ाकू हवाई जहाज़ हैं। लेकिन उसके पास इसके अलावा एक ड्रोन डिवीजन भी है। चीन के पास भारत के सामने सिर्फ 8 एडवांस्ड लैंडिंग फैसिलिटी हैं।

चीन पर भारी भारत?

लेकिन हिमालय की ऊंचाई चीन के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है और चीन इस मामले में बुरी तरह पिट सकता है। तिब्बत और शिनजियांग बहुत ऊँचे पहाड़ पर बसे होने के कारण चीन के हवाई जहाज़ क्षमता का आधे पे लोड के साथ ही उड़ सकेंगे, उन्हें ईंधन पहुँचाने में दिक्कत होगी। चीन के पास इससे निबटने के लिए सिर्फ 15 टैंकर एअरक्राफ्ट हैं।
यह एकदम साफ़ है कि थल सेना और वायु सेना दोनों ही मामलों में भारत चीन के बराबर ताक़त रखता है। लेकिन भारत बेहतर मारक क्षमता रखता है क्योंकि वह चीनी सीमा के नज़दीक है, उसके सैनिक आसानी से वहा ले जाए जा सकते है। तिब्बत और शिनजियांग की अधिक ऊंची पहाड़ियों की वजह से वे भारत की तुलना में कमजोर हैं।
लेकिन यह आकलन सिर्फ हिमालय तक सीमित है। यदि यह युद्ध हिमालय तक ही सीमित न रहा तो भारत के लिए मुश्किल बड़ी है।

चीन से पीछे भारत?

इसकी वजह यह है कि चीन का रक्षा बजट भारत की तुलना में लगभग 4 गुणे अधिक है। साल 2019 में चीन का रक्षा बजट 261 अरब डॉलर था तो भारत का सिर्फ़ 71.1 अरब डॉलर था। इसके अलावा दोनों देशों की सैन्य ताक़त में बहुत का अंतर है और भारत चीन से बहुत पीछे है।

पीएलए के पास लगभग 13,000 टैंक हैं, भारतीय सेना के पास 4,100 टैंक हैं। इसी तरह चीनी सेना के पास 40 हज़ार बख़्तरबंद गाड़ियाँ हैं और इस मामले में भारत की कोई तुलना नहीं है, 2,800 बख़्तरबंद गाड़ियों के साथ यह बहुत पीछे है। इसी तरह चीनी सेना के पास 2,500 रॉकेट प्रोजेक्टर हैं और भारत के पास 266। इस मामले में दोनों के पास लगभग दस गुणे का अंतर है।

ब्लू वाटर नेवी

दोनों देशों की नौसेना में भी बहुत अंतर है। चीन के पास कुल 714 नौसेना के जहाज़ हैं, भारत के पास सिर्फ 295। चीन के पास 76 पनडुब्बियाँ हैं, भारत के पास 16 पनडुब्बियाँँ ही हैं। भारत ब्लू वॉटर नेवी परियोजना के तहत 7 पनडुब्बियों पर काम कर रहा है, पर उनके बनने में कई साल लगेंगे।

भारत के पास सिर्फ एक विमानवाहक पोत यानी एअरक्राफ़्ट कैरिअर है, आईएनएस विक्रमादित्य। इस पर 30 हवाई जहाज़ रखे जा सकते हैं और ऑपरेट कर सकते हैं। एक दूसरे विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर कोच्चि के शिपयार्ड पर काम चल रहा है। इस पर बहुत तेज़ी से काम हुआ और पैसे मिलते रहे तो यह 2022 तक बन कर तैयार हो पाएगा।

चीन के पास दो एअरक्राफ़्ट करियर हैं, लियाओनिंग और शॉनदोंग। एक तीसरे पर काम चल रहा है।

मिसाइल प्रणाली

इसी तरह मिसाइल सिस्टम में भी चीन भारत से आगे है। उसके पास शॉर्ट रेंज से लेकर लॉन्ग रेंज तक के यानी 50 किलोमीटर से लेकर 5,500 किलोमीटर रेंज तक की मिसाइलें है और हर तरह के प्लैटफ़ॉर्म से छोड़ने वाली मिसाइलें हैं। ये मिसाइलें भारत के पास भी हैं। पर उनकी संख्या और मारक क्षमता में अंतर हैं।

चीनी मिसाइल प्रणाली का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि उसने बीते साल दक्षिण चीन सागर के अपने अड्डे से 4,000 किलोमीटर दूर प्रशांत महासागर में स्थित गुआम द्वीप तक मिसाइल का परीक्षण किया था। गुआम द्वीप पर अमेरिकी नौसेना का अड्डा है।

वायु सेना

चीनी वायु सेना के पास 3000 हवाई जहाज़ हैं, भारत के पास 2000। इसी तरह चीन में 507 हवाई अड्डे हैं, जिनका वह ज़रूरत पड़ने पर सैनिक इस्तेमाल कर सकता है। भारत के पास ऐसे 346 हवाई अड्डे हैं। पहले चीन के पास सोवियत जमाने के मिग-21 और मिग-29 जैसे जहाज़ थे, उनकी संख्या अधिक थी।

चीन ने सोवियत युग के हवाई जहाज़ों को रिटायर कर दिया है और बड़े पैमाने पर नए और आधुनिक जहाज़ ले रहा है। भारत भी इस प्रक्रिया से गुजर रहा है, पर यहाँ रफ़्तार धीमी है।

इसलिए भारत हिमालय की लड़ाई में तो चीन को पछाड़ सकता है, लेकिन यदि बड़ी और लंबी लड़ाई चली तो भारत के लिए मुश्किल है।
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