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साध्वी प्रज्ञा ने पूछा था, मालेगाँव धमाके में इतने कम लोग क्यों मरे?

दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव में उतारने की घोषणा के साथ ही साध्वी प्रज्ञा सिंह एक बार फिर ख़बरों में हैं। वह मालेगाँव धमाका मामले में अभियुक्त हैं, अदालत ने उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने को कहा है। प्रज्ञा फ़िलहाल ज़मानत पर हैं। सत्य हिन्दी उन पर ख़बरों की एक श्रृंखला शुरु कर रहा है। पेश है इसकी पहली कड़ी। 
नीरेंद्र नागर
भोपाल से बीजेपी ने कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ साध्वी प्रज्ञा सिंह को खड़ा कर दिया है। यह वही प्रज्ञा सिंह हैं, जिनके विरुद्ध मालेगाँव धमाके मामले में केस चल रहा है। बीजेपी चुनाव अभियान में अवश्य यह कहेगी कि प्रज्ञा को तब की यूपीए सरकार ने जानबूझकर इस आतंकवादी मामले में फँसाया है और यह हिंदुओं को बदनाम करने की साज़िश थी। लेकिन मुंबई की एनआईए अदालत का मत कुछ और है। 2014 में एडीए के सत्ता में आने के बाद एनआईए ने प्रज्ञा को मालेगाँव मामले में क्लीन चिट दे दी थी। लेकिन अदालत ने पिछले साल उस क्लीन चिट को ठुकराते हुए प्रज्ञा के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने का आदेश दिया। आख़िर अदालत को ऐसा क्यों लगा कि मालेगाँव मामले में प्रज्ञा के ख़िलाफ़ प्रथम दृष्ट्या सबूत हैं? 
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कौन लोग थे प्रज्ञा के साथ?

प्रज्ञा के बारे में आगे बढ़ने से पहले हमें उनके साथी और सह-अभियुक्त लेफ़्टीनेंट कर्नल पुरोहित की बात करनी होगी जिनका पूरा नाम है प्रसाद श्रीकांत पुरोहित। इन पर भी मालेगाँव धमाके की साज़िश में शामिल होने का आरोप है और वह 9 साल तक पुलिस की गिरफ़्त में रहने के बाद अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट से मिली ज़मानत के बाद बाहर हैं। पुरोहित ने मालेगाँव साज़िश में शामिल होने से इनकार किया है और आरोप लगाया है कि हिरासत के दौरान उनको काफ़ी यातनाएँ दी गईं। ज़मानत पर रिहा होने के बाद पुरोहित सेना में बहाल हो गए हैं, लेकिन आतंकवादी कार्रवाई में लिप्त होने के आरोप से वह अभी बरी नहीं हुए हैं।
मुंबई की एनआईए अदालत में 30 अक्टूबर 2018 को पुरोहित, प्रज्ञा सिंह ठाकुर और 5 अन्य के ख़िलाफ़ ग़ैरक़ानूनी गतिविधि (निरोधक) क़ानून के तहत आरोप तय किए गए। उसके बाद से गवाहियाँ जारी हैं।
लेफ्टीनेंट कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा सिंह ठाकुर निर्दोष हैं या दोषी, यह तो एनआईए अदालत सबूतों और गवाहियों के आधार पर तय करेगी लेकिन इन दोनों के नाम इस मामले में कैसे जुड़े, इसके पीछे एक रोचक कहानी है। आज हम इसी विषय पर बात करेंगे। 

प्रज्ञा से जुड़े तार

9 सितंबर 2008 को मालेगाँव में शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी के सामने रखी एक मोटरसाइकिल में विस्फोट हुआ जिसमें 6 लोग मारे गए और 101 अन्य ज़ख़्मी हुए। अगले दिन महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर. पाटील और एटीए प्रमुख हेमंत करकरे ब्लास्ट की साइट पर गए। पाटील ने हेमंत करकरे से कहा कि वह नहीं चाहते कि दो साल पहले हुए मालेगाँव ब्लास्ट की तरह इस मामले में कोई चूक हो। हेमंत करकरे ने विस्फोट की जगह से सबूत इकट्ठा करवाए और एलएमएल फ्रीडम नाम की उस मोटरसाइकिल की फ़रेंसिक जाँच करवाई। 
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मोटरसाइकल में लगे रजिस्ट्रेशन नंबर प्लेट में लिखा नंबर एमएच-15पी-4572 भी नक़ली था। इसके अलावा बाइक के शैसी नंबर, इंजन नंबर, यहाँ तक कि टायर के नंबर भी मिटा दिए गए थे। करकरे ने फ़रेंसिक जाँच करवा कर उनके नंबर निकलवाए और उनके आधार पर गुजरात में एलएमएल कंपनी के सेल्स ऑफ़िस से पता करवाया कि यह बाइक कहाँ बेची गई थी। 
एलएमएल कंपनी तब तक बंद हो चुकी थी। सेल्स ऑफ़िस ने शैसी और इंजन नंबर के आधार पर बताया कि यह गाड़ी इंदौर के एक डिस्ट्रिब्यूटर को भेजी गई थी। इंदौर के डिस्ट्रिब्यूटर से पता चला कि इसे प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बेचा गया है।
प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम और नंबर मिलने पर मुंबई के काला घोड़ा स्थित एटीएस ऑफ़िस से प्रज्ञा सिंह ठाकुर को फ़ोन किया गया। उन्होंने कहा, ‘मैं अभी गुजरात में हूँ।’ प्रज्ञा का मोबाइल सर्विलांस पर ले लिया गया। प्रज्ञा गुजरात से सीधे उज्जैन गई और महाकाल के दर्शन किए। वहाँ से उन्होंने रामचंद्र कलसांगरा उर्फ़ रामजी नामक व्यक्ति से फ़ोन पर पूछा, ‘इतने कम लोग कैसे मरे?’ पूरा वार्तालाप इस तरह चला।

प्रज्ञा - आज शाम को मुझे ले जाएँगे।

रामजी - क्यों?

प्रज्ञा - मालेगाँव ब्लास्ट में मेरी गाड़ी मिली है।

रामजी - लेकिन वो गाड़ी आपने बेची थी।

प्रज्ञा - कहाँ बेची बताऊँ? एमपी, गुजरात, महाराष्ट्र?

रामजी - गुजरात बोलो।

प्रज्ञा - कब बेची पूछा तो?

रामजी - मालूम नहीं बताना। ना मानें तो मेरा नाम बता देना।

प्रज्ञा - लेकिन इतने कम लोग कैसे मरे? गाड़ी भीड़ में क्यों नहीं लगाई?

रामजी - भीड़ में खड़ी करने नहीं दिया। कुछ हुआ तो निपटा लेंगे।  मेरी अरविंद जी से बात हुई है। वो एक लाख पब्लिक लेके आंदोलन करेंगे।

कलसांगरा पर बाइक में बम लगाने का आरोप है और वे अभी तक फ़रार हैं।
प्रज्ञा सिंह ठाकुर उन दिनों हिंदुत्व का एक उभरता चेहरा हुआ करती थीं और बहुत लोकप्रिय थीं। उन्हें उमा भारती के जवाब में खड़ा करने की कोशिश हो रही थी जो बीजेपी से अलग हो गई थीं।
प्रज्ञा प्रायः सर्किट हाउस में ठहरा करती थीं। एटीएस ने प्रज्ञा सिंह को मुंबई बुलाया और कहा कि हम आपसे बाइक के बारे में बात करना चाहते हैं। वह एक अटेंडेंट के साथ मुंबई पहुँची जहाँ उनको एक होटल में ठहराया गया। 
जब प्रज्ञा से बाइक के बारे में पूछा गया कि आपके नाम से ख़रीदी वह बाइक कहाँ है, तो प्रज्ञा ने कहा कि वह तो उन्होंने सुनील जोशी को बेच दी। जब उनसे पूछा गया कि सुनील जोशी कहाँ हैं तो प्रज्ञा ने बताया कि उनका तो पिछले साल ही मर्डर हो गया।
आपको बता दें कि सुनील जोशी आरएसएस के प्रचारक थे और 2007 में दो दुपहिया चालकों ने उनकी हत्या कर दी थी। सुनील जोशी को क्यों मारा गया, असीमानंद ने इसके बारे में कैरवन की पत्रकार को बताया था (पढ़ें)। लेकिन हम जोशी की हत्या का मामला छोड़कर फ़िलहाल जानते हैं कि प्रज्ञा के साथ आगे क्या हुआ।

पुरोहित से क्या था रिश्ता?

मुंबई में प्रज्ञा को एक होटल में ठहराया गया और पूछताछ की गई। पूछताछ में जब उन्होंने धमाके के विषय में ज़्यादा कुछ नहीं बताया तो उनको महिला पुलिस के हवाले कर दिया गया। पूछताछ में प्रज्ञा ने बताया कि मैं इस मामले में शामिल नहीं हूँ। इसमें तो सेना का ही एक अधिकारी शामिल है। प्रज्ञा ने उस अधिकारी का नाम तो नहीं बताया लेकिन यह कहा कि वह पँचमढ़ी में अरबी सीख रहा है। पूछताछ से यह भी पता चला कि यह अधिकारी इंदौर और जबलपुर में कई बार प्रज्ञा से मिल चुका है।
धमाके के षडयंत्र में सेना के अधिकारी का नाम आने पर पुलिस भी चौंकी। आईबी के सीनियर अधिकारी ने आर्मी चीफ़ से बात की और पूछा कि आपका कौनसा अधिकारी पँचमढ़ी में अरबी सीख रहा है? यहीं से आया लेफ़्टीनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित का नाम। प्रज्ञा के मोबाइल में श्रीकांत पुरोहित का नंबर मिला और उनका फ़ोन सर्विलांस पर रख दिया गया। 23 अक्टूबर 2008 को प्रज्ञा को ग़िरफ़्तार कर लिया गया।
आगे क्या हुआ, यह हम जानेंगे अगली कड़ी में - जब प्रज्ञा ने लिया आर्मी अफ़सर का नाम
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