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सबूत दिखाएँ कि मंदिर के अवशेषों पर बाबरी मसजिद बनी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हिंदू पक्षकारों से उनके इस दावे पर सबूत देने को कहा कि बाबरी मसजिद एक प्राचीन मंदिर या हिंदू धार्मिक ढाँचे के अवशेषों पर बनाई गई थी। इस पर रामलला विराजमान ने पुरातत्व विभाग के दस्तावेज़ों को दिखाकर दावा किया कि उस विवादित जगह पर पहले से विशाल राम मंदिर था। अयोध्या ज़मीन विवाद पर रोज़ाना सुनवाई के सातवें दिन शुक्रवार को हिंदू पक्षकार रामलला विराजमान सी.एस. वैद्यनाथन के वकील के सामने सुप्रीम कोर्ट ने कई सवाल पूछे।

मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ में शामिल डी.वाई. चंद्रचूड़ ने वैद्यनाथन से पूछा, ‘पिछले दो सदियों में हमने सभ्यताओं को नदी किनारे बसते देखा है। उन्होंने पहले से मौजूद संरचनाओं पर निर्माण किया है। लेकिन यह साबित करें कि कथित रूप से ध्वस्त इमारत (जिस पर बाबरी मसजिद बनाई गई थी) प्रकृति में धार्मिक थी।’ 

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मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली संविधान पीठ में शामिल जस्टिस एस.ए. बोबडे ने वैद्यनाथन से कहा कि वह अपनी दलील से यह साबित करें कि ढाँचा एक मंदिर था और वह भी भगवान राम को समर्पित था। बता दें कि इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं।

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रामलला विराजमान का दावा, विशाल मंदिर होने के प्रमाण

सुप्रीम कोर्ट ने उनसे यह बात सिद्ध करने के लिए इसलिए कही क्योंकि रामलला विराजमान के वकील सी.एस. वैद्यनाथन बार-बार कह रहे थे कि बाबरी मसजिद राम मंदिर के ढहाए गए ढाँचे पर बनाई गई है। वैद्यनाथन ने नक्शे और फ़ोटो कोर्ट को दिखाते कहा कि खुदाई के दौरान मिले खम्भों में श्रीकृष्ण, शिव तांडव और श्रीराम के बाल रूप की तसवीर नज़र आती है।

वैद्यनाथन ने नक्शा और रिपोर्ट दिखाकर कहा कि परिक्रमा मार्ग पर पक्का और कच्चा रास्ता बना था, आसपास साधुओं की कुटियाएँ थीं, सुमित्रा भवन में शेषनाग की मूर्ति मिली। उन्होंने दावा किया कि पुरातत्व विभाग की जनवरी 1990 की जाँच और रिपोर्ट में भी कई तसवीरें और उनके साक्ष्य दर्ज हैं। उन्होंने कहा कि पक्के निर्माण में जहाँ तीन गुंबद बनाए गए थे, वहाँ बाल रूप में राम की मूर्ति थी।

वैद्यनाथन ने कहा, ‘इस तरह की तसवीरें इसलामी प्रथाओं के विपरीत थी। उनके (मुसलमानों) में किसी भी मानव या जीव-जंतु की कोई तसवीर (एक मसजिद में) नहीं होती है..., बाबरी मसजिद के भीतर की तसवीरें और मूर्तियाँ यह दर्शाती हैं कि यह सही अर्थों में मसजिद नहीं थी। ऐसी चीजें आमतौर पर मसजिदों में नहीं देखी जाती हैं।’

उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ नमाज़ अदा करने से वह जगह उनकी नहीं हो सकती जब तक वह आपकी संपत्ति न हो, नमाज़ सड़कों पर भी होती है इसका मतलब यह नहीं कि सड़क आपकी हो गई। इस पर सुन्नी वक़्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने आपत्ति जताते हुए कहा कि कहीं पर भी नमाज़ अदा करने की बात ग़लत है, यह इसलाम की सही व्याख्या नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट में कैसे पहुँचा मामला 

सुप्रीम कोर्ट उन केसों की सुनवाई कर रहा है जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर 2010 के फ़ैसले के ख़िलाफ़ 14 अपीलें दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच समान रूप से विभाजित करने का आदेश दिया था। लेकिन हाई कोर्ट का यह फ़ैसला कई लोगों को पसंद नहीं आया। यही कारण है कि इस मामले के ख़िलाफ़ कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर कीं। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मई 2011 में हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। इसी मामले में यह सुनवाई चल रही है।

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क़मर वहीद नक़वी

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