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आर्थिक रिश्ते बिगड़े तो भारत ही नहीं, चीन को भी होगा बहुत बड़ा नुक़सान

गलवान घाटी में भारतीय-चीनी सैनिकों के बीच झड़प और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों ओर से सेना व सैनिक साजो-सामान के लगातार बढ़ रहे जमावड़े के बीच दोनों देशों के व्यापारिक रिश्ते भी तनाव में आ चुके हैं। 
भारत में सत्तारूढ़ दल बीजेपी से जुड़े संगठन चीनी उत्पादों के बायकॉट की अपील कर रहे हैं तो स्वयं प्रधानमंत्री बार-बार 'लोकल पर वोकल' होने की बात कह रहे हैं। सीमा के उस पार भी इस पर चिंता है। चीन भी इससे परेशान दिख रहा है।
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क्या मानना है चीन का?

चीनी सरकार के अख़बार 'ग्लोबल टाइम्स' ने अपने संपादकीय में सवाल उठाया है कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था 'बायकॉट चीन' अभियान को झेल पाएगी?
इस लंबे लेख में भारत को डराने की कोशिश की गई है और कहा गया है कि आर्थिक मुद्दे पर चीन से टकराना वैसा ही है जैसे कि अंडे का चट्टान पर गिरना।
इस संपादकीय में इस बात को बहुत ही सुविधाजनक तरीके से गायब कर दिया गया है कि ऐसा होने से ख़ुद चीनी अर्थव्यवस्था को कितना नुक़सान होगा।

फ़ायदा भी, नुक़सान भी

दरअसल इस 'ग्लोबल विलेज' में सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, एक-दूसरे पर निर्भर हैं, कोई अपने आप को पूरी दुनिया से काट कर नहीं रख सकता। लिहाज़ा, सबको फायदा है तो नुक़सान भी सबको है, अंतर सर्फ यह है कि किसी को कम तो किसी को ज़्यादा नुक़सान है।
भारत-चीन आर्थिक व्यापारिक रिश्तों में भी यही हाल है, नुक़सान दोनों देशों को होगा, भारत को शायद अधिक नुक़सान हो क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था अभी भी बहुत मजबूत नहीं है और कई मामलों में चीन पर निर्भर है।
नुक़सान चीन को भी होगा क्योंकि उसके उत्पादों को इतना बड़ा बाज़ार नहीं मिलेगा। वह नया बाज़ार खोज ले सकता है, पर तब तक उसे बहुत नुक़सान हो चुका होगा।
हम इसे हर क्षेत्र में अलग से समझने की कोशिश करते हैं।

दवा उद्योग

ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि भारत का दवा उद्योग चीन पर निर्भर है। भारत जितने बड़े पैमाने पर दवाओं का आयात करता है, उसका 68 प्रतिशत चीन से लेता है। इसने ये बात चाइना फार्मास्यूटिकल इंटरप्राइज़ेज एसोसिएशन के उप निदेशक वांग जूगांग के हवाले से कहा है कि चीन पर निर्भरता ख़त्म करने में भारत को कई साल लगेंगे।
लेकिन ग्लोबल टाइम्स के इसी लेख पर भरोसा किया जाए तो चीन का दवा उद्योग अपने निर्यात का 17 प्रतिशत उत्पाद भारत को भेजता है। पिछले साल चीन ने 5.65 अरब डॉलर का एपीआई यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट भारत को निर्यात किया। एपीआई वह चीज है जिससे कोई दवा बनाई जाती है।
अब सवाल यह है कि एक साल में 5.65 अरब डॉलर का नुक़सान चीनी दवा कंपनियाँ उठाने को तैयार हैं? इसके अलावा विटामिन, हार्मोनल ड्रग्स और दूसरे इंटरमीडिएट भी भारत चीन से आयात करता है।

स्टार्ट अप्स

चीन की 75 से ज़्यादा कंपनियों ने भारत के स्टार्ट अप्स में अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है। ये कंपनियां ई-कॉमर्स, फिनटेक, सोशल मीडियाा, लॉजिस्टिक्स और दूसरे कई क्षेत्रों में काम करती हैं। भारत में पैसे लगाने वाली चीनी कंपनियों में अलीबाबा, बाइटडान्स, टैन्सेंट जैसी कंपनियाँ प्रमुख हैं।  चीनी कंपनियों ने पेटीएम, बाइजू, ओला, ओयो, बिग बास्केट, ज़ोमैटो जैसी 92 कंपनियों में पैसे लगा रखा है।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इन कंपनियों के हित भारत में सुरक्षित हैं और वे यहां कमाई कर रही हैं। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। चीनी कंपनी बाइटडान्स के वीडियो प्लैटफार्म टिक टॉक के 20 करोड़ सब्सक्राइबर भारत में हो गए। बहुत ही कम समय में यह यूट्यूब से आगे निकल गया।
ऑनलाइन उद्योग के बाज़ार और ट्रेंड पर नज़र रखने वाले रिचर्ड मा ने ग्लोबल टाइम्स से कहा कि भारत की स्थिति वैसी ही है, जैसी पहले चीन की थी। उसके पास बहुत बड़ा उपभोक्ता आधार है और बहुत बड़ी जनसंख्या का फ़ायदा है।
बीते कुछ सालों में 6 अरब डॉलर का निवेश इन कंपनियों ने भारतीय स्टार्ट अप्स में किया है। भारत के साथ रिश्ते खराब होने पर ये पैसे फँस जाएंगे और वे कंपनियां ऐसा नहीं चाहेंगी।

ऑटो पार्ट्स

इसी तरह ऑटो पार्ट्स के बाज़ार पर भी चीन की पकड़ है और भारत उसका बहुत बड़ा बाज़ार है। इसे इससे समझा जा सकता है कि 2018 में चीनी कंपनियों ने 4.30 अरब डॉलर के ऑटो पार्ट्स भारत को निर्यात किया। चीन इतना बड़ा बाज़ार नहीं छोड़ना चाहेगा।

स्मार्ट फ़ोन

स्मार्ट फ़ोन बनाने वाली चीनी कंपनियों का बहुत बड़ा बाज़ार भारत है। भारत में जितने मोबाइल हैं, वे सारे किसी न किसी रूप में चीन से जुड़े हुए हैं। जो यहाँ बनते हैं उनके 67 प्रतिशत पार्ट चीनी होते हैं। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, भारत में इन चीनी कंपनियों का सालाना लगभग 2 लाख करोड़ रुपए कारोबार होता है। यदि भारत का बाज़ार चीन के हाथ से निकला तो चीनी कंपनियों को जबरदस्त नुक़सान होगा, जो वे कतई नहीं चाहेंगी।

दूरसंचार उपकरण

भारत का दूरसंचार उपकरण बाज़ार चीन के नियंत्रण में है। लगभग 12 हज़ार करोड़ रुपए के इस बाज़ार के लगभग 25 प्रतिशत हिस्से पर चीनी कंपनियां काबिज हैं। यानी, चीनी दूरसंचार कंपनियों का हर साल भारत को निर्यात लगभग 3000 करोड़ रुपए का है।

टेलीविज़न

भारत में टेलीविज़न का बाज़ार 25 हज़ार करोड़ रुपए का है। इसमें दो सेगमेंट हैं- स्मार्ट टीवी और सामान्य पारंपरिक टीवी। स्मार्ट टीवी सेगमेंट के 43 प्रतिशत हिस्से पर चीनी कंपनियों का अधिकार है। सामान्य टीवी बाज़ार के 8 प्रतिशत बाजार पर इसका अधिकार है। बदलते हुए समय में भाारत का उपभोक्ता तेजी से स्मार्ट टीवी की ओर बढ़ रहा है। 
बाजार का यह आकार बढ़ता जाएगा और उसमें चीनी कंपनियों का कारोबार भी बढ़ता जाएगा। चीनी कंपनियाँ यह मौका हाथ से जाने देंगी, सवाल यह है।

घरेलू सामान

इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, भारत में घरेलू उपभोक्ता उपकरण का बाज़ार सालाना 50 हज़ार करोड़ रुपए का है। इसके लगभग 12 प्रतिशत हिस्से पर चीनी कंपनियों का अधिकार है। यानी लगभग 6,000 करोड़ रुपए का सालाना कारोबार चीनी कंपनियां कर लेती हैं।

सौर ऊर्जा

भारत में सौर ऊर्जा का चलन बढ़ रहा है और इसे भविष्य में बहुत बड़े बाज़ार के रूप में देखा जा रहा है। फिलहाल यहां 37,916 मेगावाट सौर ऊर्जा की खपत है। इसका 90 प्रतिशत हिस्सा चीनी कंपनियों के उपकरणों से मिलता है। लेकिन जिस तरह कोयला और उससे होने वाले प्रदूषण के ख़िलाफ़ वातावरण बन रहा है, सौर ऊर्जा की माँग और खपत बढ़ेगी। इस बड़े बाज़ार पर चीन की नज़र है।
यह बात बहुत ही साफ़ है कि चीन और भारत दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं। चीनी उत्पाद भारत आयात करता है तो इसके बल पर इसके उद्योग चलते हैं। लेकिन चीन को भी इस निर्यात की ज़रूरत है और उसके उद्योगों को भारत को होने वाले निर्यात से बल मिलता है।
ऐसे में चीन का यह कहना कि भारत को नुक़सान होगा, आधा सच ही है। चीन ख़ुद इस नुक़सान की चपेट में आएगा।अब चीन को यह फ़ैसला करना है कि वह इतना बड़ा बाज़ार अपने हाथ से निकलने देगा या इसे सुधारने की कोशिश करेगा। 
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क़मर वहीद नक़वी

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