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महाराष्ट्र: प्याज के निर्यात पर पाबंदी के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरे किसान 

प्याज के निर्यात पर पाबंदी के केंद्र सरकार के फ़ैसले को लेकर महाराष्ट्र में प्याज उत्पादक किसान आंदोलन कर रहे हैं। किसानों ने मंगलवार को नासिक जिले में जगह-जगह पर राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध कर दिया और केंद्र से इस फ़ैसले को वापस लेने की मांग की। लॉकडाउन के कारण इससे पहले भी बहुत से किसानों को प्याज कौड़ियों के भाव बेचना पड़ा था। ऐसे में निर्यात पर पाबंदी के फ़ैसले से किसान आक्रोशित हैं। 

किसानों के आंदोलन के साथ ही प्रदेश में राजनीति भी गरमा गयी है क्योंकि प्याज का निर्यात महाराष्ट्र में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है।

किसानों को होगा नुक़सान

इस मामले में पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से बात कर मांग की है कि निर्यात की पाबंदी हटाई जाए। महाराष्ट्र सरकार के कृषि मंत्री दादा जी भूसे ने केंद्र सरकार के फ़ैसले को अव्यावहारिक बताया और कहा कि इससे किसानों को बहुत नुक़सान होने वाला है। 

वैसे, प्याज की बढ़ी हुई कीमतों ने देश में दो बार केंद्रीय सरकारों को अस्थिर किया है। पहला जनता पार्टी के समय मोरारजी भाई देसाई की सरकार को और उसके बाद बीजेपी के नेतृत्व में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को। 

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प्याज 200 रुपये प्रति किलो!  

यह भी आरोप लगाए जा रहे हैं कि बिहार चुनावों में प्याज का महंगा होना मुद्दा न बन जाए, इसलिए भी केंद्र सरकार ने आनन-फानन में यह पाबंदी लगा दी है। पिछले साल महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों से पहले सितंबर माह में केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगाई थी। उस समय प्याज की खुदरा कीमतें करीब 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गयी थीं और सरकार को विदेशों से प्याज आयात करना पड़ा था। प्याज की बढ़ती क़ीमतों पर देखिए, वरिष्ठ पत्रकार शैलेश का वीडियो- 

दरअसल, विदेशों से प्याज का आयात अब तक हमारे देश में सफल ही नहीं हो पाया है क्योंकि चीन और तुर्की से जो प्याज आता है उसका आकार बहुत बड़ा तो होता है लेकिन स्वाद सही नहीं होता। 

मुंबई की थोक मंडियों में पिछली बार वह प्याज आया तो था मगर ग्राहक नहीं मिले थे। प्याज के दाम बढ़ने पर शहरी लोगों में नाराजगी बढ़ती है और निर्यात पर पाबंदी लगाई जाए तो किसानों को उनकी पैदावार का उचित मूल्य नहीं मिलता है। 

लिहाजा, सरकार को इसको लेकर कोई निर्णय करने से पहले इस संतुलन को ध्यान में रखना चाहिए। वर्तमान में आंदोलित किसान मांग कर रहे हैं कि सरकार उनकी पैदावार को 3000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से खरीदे। इस मांग के पीछे वे तर्क दे रहे हैं कि लॉकडाउन में उन्होंने बहुत सस्ते भाव में प्याज बेचा था। किसानों को बचाने के लिए सरकार आगे आये और गारंटी मूल्य निर्धारित करे। 

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इस बार ज़्यादा सड़ गया प्याज

जानकारी के अनुसार, पिछले कुछ दिनों से नासिक की लासल गांव, पिपल गांव, रामपुर मंडी में प्याज के थोक भाव में वृद्धि दर्ज की जा रही थी। यह भाव 17 रुपये के आसपास पहुंच गया था और सोमवार को अच्छी किस्म का प्याज 20 का आंकड़ा छू रहा था। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि लॉकडाउन में जब होटल्स बंद थे तो किसानों के सामने प्याज बेचने का संकट खड़ा हो गया था। ऐसे में नासिक जिले के बहुत से किसानों ने केंद्र सरकार की संस्था नाफेड को करीब 40 हजार टन प्याज सरकारी भाव में बेच दिया था। इस साल मौसम में नमी की वजह से प्याज के सड़ने की मात्रा भी बढ़ गयी है। इसकी वजह से भी ऐसे किसान जिनके पास भंडारण की क्षमता नहीं है, जल्दी माल बेचने लगे थे। 

एक अन्य कारण महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में अधिक वर्षा की वजह से वहां की प्याज की फसलें चौपट होना भी है। इसकी वजह से पिछले कुछ दिनों से प्याज की आवक घटने लगी। 

कर्नाटक की मंडियों में अच्छा प्याज 20 रुपये प्रति किलो के भाव से बिक रहा है, जिसके कारण भी वहां का प्याज मुंबई या नासिक की मंडियों में नहीं आ रहा। माल की आवक घटने और भाव बढ़ने से केंद्र सरकार ने इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। 

पीएम मोदी का वादा

लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नासिक की एक चुनावी सभा में कहा था कि वे प्याज उत्पादक किसानों के साथ खड़े हैं और उन्हें अच्छा भाव दिलाएंगे। लेकिन पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उनकी सरकार ने प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। तब शरद पवार अपनी सभाओं में कहते थे "जब किसानों के दो रुपये कमाने का समय आता है तो सरकार निर्यात पर पाबंदी लगा देती है।" 

प्याज को लेकर किसानों के आंदोलन के कारण बीजेपी को विधानसभा चुनावों में उत्तर महाराष्ट्र में नुक़सान हुआ था। उस समय किसान संगठनों ने प्रदेश में 'कांदा सत्याग्रह’ शुरू कर दिया था।

आंदोलन से प्याज की बिक्री ठप

दरअसल, किसानों का यह रोष है कि पिछले चार सालों से उनके प्याज को अच्छा भाव नहीं मिल रहा था। ऐसा समय भी आया है जब एक रुपये किलो के भाव में भी प्याज नहीं बिक रहा था। महाराष्ट्र के गांवों से मुंबई के बाजार में लाने के लिए प्याज का जितना गाड़ी भाड़ा लगता था वह राशि भी उन्हें नहीं मिल पाती थी। लेकिन उस समय सरकार उनके लिए गारंटी मूल्य जैसी कोई योजना नहीं लाती। 

किसानों का कहना है कि आज चुनाव हैं तो मध्यमवर्गीय लोगों का हवाला देकर सरकार प्याज उत्पादकों व व्यापारियों पर दबाव बनाकर दाम कम कराने की कोशिश कर रही है। नासिक जिले की पिपल गांव व लासल गांव मंडी में प्रतिदिन औसतन 15000 क्विंटल प्याज बिक्री के लिए आता है। लेकिन इस आंदोलन की वजह से सब कुछ ठप है। 

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संजय राय

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