loader

श्रद्धांजलि: प्रयोगधर्मी फ़िल्मकार बासु चटर्जी की कमी खलेगी

मशहूर फिल्मकार बासु चटर्जी का गुरुवार को निधन हो गया है। वह 93 वर्ष के थे। बासु चटर्जी के निधन से हिंदी सिनेमा ने एक प्रयोगधर्मी व्यक्तित्व को खो दिया जिसकी जगह की भारपाई जल्दी संभव नहीं।

बासु भट्टाचार्य जब हिंदी के मशहूर उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु की कृति ‘तीसरी कसम उर्फ़ मारे गए गुलफाम’ पर आधारित फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्देशन कर रहे थे तो उनके साथ सहायक निर्देशक के रूप में जुड़े थे बासु चटर्जी। जब बासु चटर्जी ने फ़िल्म बनाने का फ़ैसला किया तो उन्होंने चुना हिंदी के उपन्यासकार राजेन्द्र यादव की कृति ‘सारा आकाश’ को। यह महज संयोग था या एक प्रयोग, इसका तो पता नहीं लेकिन बासु चटर्जी की इस फ़िल्म को मृणाल सेन की फ़िल्म ‘भुवन शोम’ के साथ समांतर सिनेमा की शुरुआती फ़िल्म माना जाता है। 

हिंदी फ़िल्मों की दुनिया में जब राजेश खन्ना का डंका बज रहा था, राजेश खन्ना की फ़िल्मों के रोमांस का जादू जब हिंदी के दर्शकों के सर चढ़कर बोल रहा था, लगभग उसी दौर में हिंदी फ़िल्मों में समांतर सिनेमा का बीज भी बोया जा रहा था। एक तरफ़ राजेश खन्ना का सपनों की दुनिया में ले जानेवाला रोमांस था तो दूसरी तरफ़ आम मध्यमवर्गीय परिवारों का अपने संघर्षों के बीच प्रेम का अहसास दिलानेवाली फ़िल्में। बासु चटर्जी ने अपनी पहली फ़िल्म सारा आकाश में इस तरह के प्रेम का ही चित्रण किया। जहाँ प्रेम तो है पर अपने खुरदरे अहसास के साथ। 

ताज़ा ख़बरें

फ़िल्म ‘सारा आकाश’ को वो राजेन्द्र यादव के उपन्यास के पहले ही भाग पर केंद्रित कर बना रहे थे और राजेन्द्र यादव से लगातार उसपर ही चर्चा करते थे। राजेन्द्र यादव ने तब एक दिन बासु चटर्जी से कहा था कि ‘यार तुम मेरे उपन्यास पर बालिका वधू सा क्या बना रहे हो?’ दरअसल, राजेन्द्र यादव इस बात को लेकर चिंतित थे कि अगर उपन्यास पहले भाग पर केंद्रित रहा तो उनकी पूरी कहानी फ़िल्म में नहीं आ पाएगी। लेकिन बासु चटर्जी ने उनको समझा लिया था। बासु चटर्जी ने कई फ़िल्मों की पटकथा ख़ुद ही लिखी थी क्योंकि वो मानते थे कि निर्देशक कहानी को सबसे अच्छे तरीक़े से समझ सकता है।

बासु चटर्जी ने फिर मन्नू भंडारी की कहानी ‘ये सच है’ पर ‘रजनीगंधा’ फ़िल्म बनाई जो दर्शकों को ख़ूब पसंद आई। इस फ़िल्म में ही अमोल पालेकर और दिनेश ठाकुर जैसे आम चेहरे मोहरेवाले नायकों को लीड रोल देने का साहसी क़दम बासु चटर्जी ने उठाया था। इस फ़िल्म से ही विद्या सिन्हा को अभिनेत्री के तौर पर पहचान मिली। फिर तो वो इस तरह के कई अन्य प्रयोग करते रहे। इसके बाद उन्होंने अमोल पालेकर और जरीना बहाव को लेकर ‘चितचोर’ बनाई।

एक और प्रयोग बासु चटर्जी ने अपनी फ़िल्म ‘शौकीन’ में किया। इस फ़िल्म में तीन बुजुर्ग अशोक कुमार, ए के हंगल और उत्पल दत्त को लेकर उन्होंने बुजुर्ग मन के मनोविज्ञान को बहुत ही कलात्मक और सुंदर तरीक़े से दर्शकों के सामने पेश किया।

शौकीन में बुजुर्ग मन के उस हिस्से को उभारा गया है जहाँ रोमांस शेष रह जाता है, अपने मन की करने की ललक बची रह जाती है। बासु चटर्जी ने कई कमर्शियल फ़िल्में भी कीं जिनमें अमिताभ बच्चन के साथ ‘मंजिल’ और राजेश खन्ना के साथ ‘चक्रव्यूह’ और अनिल कपूर के साथ ‘चमेली की शादी’ जैसी फ़िल्में भी शामिल हैं।

एक निर्देशक के तौर पर बासु चटर्जी बहुत ही सख़्त माने जाते हैं। सेट पर वो किसी तरह की अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करते थे। एक फ़िल्म पत्रिका के संपादक रहे अरविंद कुमार ने बासु चटर्जी के सहायक के हवाले से एक वाकया लिखा है, “दिल्लगी’ की शूटिंग के दिनों की बात है। शिफ़्ट सुबह नौ से चार तक थी। शत्रुघ्न सिन्हा को सुबह आना था वो आए शाम के चार बजे से कुछ पहले। बासु चटर्जी ने किसी तरह अपने को संयमित किया और शत्रुघ्न सिन्हा को बोले ‘कॉस्ट्यूम पहन आएँ।’ शत्रुघ्न सिन्हा जबतक तैयार होकर आए इधर बासु चटर्जी और कैमरा निर्देशक मणि कौल में बहस हो रही थी। मणि कह रहे थे, ‘आधे घंटे में सूरज ढल जाएगा, तो दिन का यह सीन कैसे पूरा कर लेंगे आप?’ बासु ने शत्रुघ्न को देखते ही कहा, अब तो पैकअप करना होगा... कल कोशिश करते हैं’ निर्देशक का कठोर और सहज संदेश। अगले दिन शत्रुघ्न सिन्हा ठीक दस बजे सेट पर मौजूद थे।”

श्रद्धांजलि से और ख़बरें
बासु चटर्जी ने अपनी दूसरी पारी टीवी के साथ शुरू की थी। अभी हाल ही लॉकडाउन के दौरान जिस सीरियल ‘व्योमकेश बक्षी’ को दर्शकों ने ख़ूब पसंद किया उसे भी बासु दा ने ही बनाया था। इसके अलावा बासु चटर्जी ने ‘रजनी’, ‘दर्पण’ और ‘कक्काजी कहिन’ जैसे टीवी सीरियल का भी निर्माण किया। वो मानते थे कि टी वी का एक्सपोजर बहुत है और उसको बहुत सारे लोग एक साथ देखते हैं। साथ ही वो यह भी कहते थे कि टीवी की इतनी ज़्यादा पहुँच है कि कुछ ऐसा बनाना जो एकसाथ इतने सारे लोग को पसंद आए, बड़ी चुनौती है। बासु चटर्जी के निधन से हिंदी सिनेमा ने एक प्रयोगधर्मी व्यक्तित्व को खो दिया जिसकी जगह की भारपाई जल्दी संभव नहीं।
(दैनिक जागरण से साभार)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अनंत विजय

अपनी राय बतायें

श्रद्धांजलि से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें