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आख़िर कैसा होगा सैन्य विकल्प, क्या युद्ध सीमित रह पाएगा?

सीमा मसलों पर बातचीत के लिये नामजद दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के विशेष प्रतिनिधियों- भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग ई के बीच गत पाँच जुलाई को जो बातचीत हुई थी उससे काफ़ी उम्मीद बनी थी लेकिन अब यहाँ माना जा रहा है कि चीन भारत के साथ विभिन्न स्तरों पर बातचीत का सिलसिला चला कर भारत को उलझाए रखने की रणनीति पर ही चल रहा था।
रंजीत कुमार

चीन को पूर्वी लद्दाख के सीमांत भारतीय इलाक़े से पीछे जाने के लिये मजबूर करने के इरादे से सैन्य विकल्प के इस्तेमाल की सम्भावनाओं को लेकर भारत के प्रधान सेनापति जनरल बिपिन रावत के बयान का सामरिक हलकों में गहन विश्लेषण शुरू हो गया है। जनरल रावत के इस बयान को अमल में लाया गया तो चीन के साथ सीमित युद्ध होगा या खुला युद्ध छिड़ जाएगा। क्या चीनी सेना के साथ युद्ध पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार चीनी क़ब्ज़े वाले भारतीय इलाक़ों तक ही सीमित रहेगा या युद्ध की आग चारों ओर फैल जाएगी।

भारतीय इलाक़े को खाली कराने के लिये चीनी सेना के ख़िलाफ़ किस तरह की सैन्य कार्रवाई की जा सकती है? आख़िर यह सैन्य विकल्प क्या हो सकता है? इन मसलों पर भारत के आला रक्षा कर्णधार पिछले कुछ दिनों से गहन चर्चा कर रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, प्रधान सेनापति जनरल बिपिन रावत और तीनों सेनाओं के प्रमुखों के बीच सैन्य विकल्पों पर गहन चर्चा पिछले कुछ दिनों से चल रही है।

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भारत की चिंता है कि कहीं सीमित युद्ध खुले युद्ध में नहीं तब्दील हो जाए। ख़ासकर कोरोना महामारी और इसकी वजह से आर्थिक संकटों से निबट रहा देश क्या चीन के साथ खुला युद्ध झेल सकता है? इसकी क्या क़ीमत भारत को चुकानी होगी? यदि भारत को खुला युद्ध छेड़ना जोखिम मोल लेना लग रहा है तो क्या भारत अपने इलाक़े पर चीनी सेना को बैठे रहने दे? क्या भारत को अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिये किसी भी क़ीमत पर चीन के ख़िलाफ़ युद्ध का बिगुल बजा देना चाहिये? ये सब सवाल भारतीय रक्षा कर्णधारों के मन में कौंध रहे हैं। इन सब पर विचार करने के बाद ही भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़ ने चीनी सेना के ख़िलाफ़ सैन्य विकल्प खुला रखने का बयान दिया है तो ज़रूर किसी ख़ास विकल्प के बारे में सोचा गया होगा।

चीन भी इस युद्ध के लिये पूरी तरह तैयार है। उसने सीमा पार तिब्बत और शिन्च्यांग के इलाक़ों में स्थित अपने वायुसैनिक अड्डों पर अपने सबसे एडवांस्ड लड़ाकू विमान जे-20 भारी संख्या में तैनात कर दिये हैं और उन्हें भारतीय सीमांत इलाक़ों में उड़ा कर भारत को संदेश भी दिया है। इसी तरह भारतीय वायुसेना के सुखोई-30 एमकेआई, मिराज-2000, मिग-29 और जगुआर विमानों को भी वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूरे इलाक़ें में तैनात करने की स्थिति में तैयार रखा गया है। पाँच राफ़ेल विमानों की भी तैनाती होगी लेकिन उनकी सीमित भूमिका ही होगी।

भारत के इलाक़ों को खाली कराने के लिये भारत यदि ज़मीनी सैन्य कार्रवाई के सैन्य विकल्पों का इस्तेमाल करता है तो उसे खुले हवाई युद्ध के लिये भी तैयार रहना होगा।

सैन्य पर्यवेक्षकों के मुताबिक़ यदि भारतीय सेना ने चीनी सेना के क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में तैनात चीनी सैनिकों पर हमला बोला तो चीनी सेना भी अपनी तोपों और मशीनगनों से जवाब देगी। इन्हें शांत करने के लिये भारतीय सेना को लड़ाकू हेलीकॉप्टरों और विमानों से हमला करना होगा। चीन भी इसका जवाब देने के लिये अपनी विमान भेदी मिसाइलों और लड़ाकू विमानों से भारतीय सेना पर जवाबी प्रहार करेगा।

चीनी सेना ने ख़ासकर पैंगोंग त्सो झील और देपसांग के इलाक़े में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार भारतीय इलाक़े में घुस कर अपना क़ब्ज़ा मज़बूत कर लिया है। चीनी सेना इन इलाक़ों को छोड़ने से साफ़ इनकार कर रही है। उसने पैंगोंग त्सो झील इलाक़े में फिंगर-फोर के इलाक़े से दोनों सेनाओं को समान दूरी पर पीछे चले जाने का अंतिम प्रस्ताव भारतीय सेना के समक्ष रखा है जिसे स्वीकार करने से भारतीय सेना ने साफ़ मना कर दिया है।

दोनों देशों के बीच इन मसलों को सुलझाने के लिये राजनयिक स्तर पर पाँच दौर की बातचीत हो चुकी है। इन बैठकों में सहमति होने और सेना को पीछे ले जाने के बयान भारत की ओर से दिये गए हैं जबकि चीन हमेशा बीच का समझौता कर लेने पर ज़ोर देता रहा है। सीमा मसले को सुलझाने के लिये वर्किंग मैकेनिज़्म फ़ॉर कंसल्टेशन एंड कोआर्डिनेशन ऑन बार्डर अफ़ेयर्स (डब्ल्यूएमसीसी) की बैठकों को भारतीय पक्ष ने सकारात्मक बताया है और चीनी पक्ष ने भी कहा है कि दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा तक अपने सैनिक पीछे हटाने को सहमत हुए हैं। लेकिन यह वास्तविक नियंत्रण रेखा कहाँ तक है, इसकी परिभाषा ही चीन ने बदल कर इसे भारतीय इलाक़े में खिसका दी है और वह कह रहा है कि उसके सैनिक जहाँ हैं वही वास्तविक नियंत्रण रेखा है।

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सामरिक हलकों में माना जा रहा है कि कड़ा रुख अपनाते हुए चीन भारतीय इलाक़ों पर अपनी सैन्य पकड़ इसलिये मज़बूत करता गया कि उसे भारत की ओर से यही संकेत मिलता रहा कि भारतीय सेना चीनी सेना को पीछे धकेलने के लिये सैन्य हमला नहीं करेगी। भारत ने भी इसी आशय के संकेत अब तक दिये हैं कि वह चीनी सेना के ख़िलाफ़ कोई सीधी कार्रवाई नहीं करेगा बल्कि चीनी सेना को पीछे जाने के लिये मजबूर करने के इरादे से वहाँ अपनी दो डिवीजन सेना हथियारों के साथ तैनात कर देगा।

सवाल यह उठता है कि क्या भारत को शुरू से ही यह संकेत देना चाहिये था कि बातचीत विफल रहने पर सैन्य विकल्प का इस्तेमाल खुला रखेगा। क्या भारत ने सैन्य विकल्प खुला रखने की चेतावनी तब दी है जब चीन का पलड़ा भारी हो चुका है।

सीमा मसलों पर बातचीत के लिये नामजद दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के विशेष प्रतिनिधियों- भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग ई के बीच गत पाँच जुलाई को जो बातचीत हुई थी उससे काफ़ी उम्मीद बनी थी लेकिन अब यहाँ माना जा रहा है कि चीन भारत के साथ विभिन्न स्तरों पर बातचीत का सिलसिला चला कर भारत को उलझाए रखने की रणनीति पर ही चल रहा था। इस दौरान चीनी सेना ने क़ब्ज़े के इलाक़े में अपनी सैन्य तैनाती को मज़बूत किया और भारत के लिये मजबूरी की स्थिति पैदा कर दी।

पूर्वी लद्दाख के भारतीय इलाक़े में चीनी सेना के अतिक्रमण किये हुए साढ़े तीन महीने से अधिक हो रहे हैं। चीन के अब तक के टालमटोल के रुख से यह साफ़ हो चुका है कि वह अब बिना किसी सैन्य दबाव के पीछे नहीं हटने वाला है। चीनी सेना की तैयारी को देखते हुए भारत के सैन्य विकल्प के इस्तेमाल की चेतावनी से भयावह हालात पैदा होते दिख रहे हैं। चीनी सेना ने भारत के स्वाभिमान को ललकारा है जिसे मौजूदा भारतीय राजनीतिक नेतृत्व अनदेखा नहीं कर सकता।
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