loader

जो ज़्यादा झूठ बोलेगा वही सत्ता हथियाएगा!

जो ज़्यादा झूठ बोलेगा वही सत्ता हथियाएगा! दरअसल, कई शोधों से यह बात निकलकर सामने आई है। हाल के एक शोध में कहा गया है कि किसी भी भीड़ में यदि आप 25 प्रतिशत लोगों से अपनी बात मनवाने में कामयाब होते हैं तब आप की राय बहुमत में बदल जाती है। पिछले साल एक अन्य वैज्ञानिक अध्ययन में पता चला कि झूठी ख़बरें जल्दी और ज़्यादा लोगों तक पहुँचती हैं। एक अन्य शोध है कि भारत, अमेरिका सहित दुनिया के 34 देशों में सरकार बनाने वाली पार्टियों ने सोशल मीडिया पर अरबों रुपये ख़र्च किए हैं। और ऐसी रिपोर्टें तो आती रही हैं कि सोशल मीडिया पर झूठ या फ़र्ज़ी ख़बरें ज़्यादा फैलाई जाती हैं। तो क्या दुनिया भर में सरकारें इसी आधार पर बहुमत तय कर रही हैं?

हमारे देश के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तम्भ के नीचे देवनागरी में लिखा है- सत्यमेव जयते। सत्यमेव जयते मुंडकोपनिषद से लिया गया है, जिसका मतलब है- सत्य की जीत होती है। हमें बचपन से बताया भी जाता है कि देर से ही सही पर जीत सत्य की ही होती है। लेकिन आज की राजनीति में ‘सत्यमेव जयते’ का उलटा हो रहा है और समाज विज्ञान के कई नए अनुसंधान इसी ओर इशारा कर रहे हैं। 

ताज़ा ख़बरें

25% लोगों को मना लिया तो बहुमत आपके साथ

कुछ महीनों पहले प्रतिष्ठित जर्नल साइंस में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार किसी भी भीड़ में यदि आप 25 प्रतिशत लोगों से अपनी बात मनवाने में कामयाब होते हैं तब आप की राय बहुमत में बदल जाएगी।

राय कैसे बनती है, ऐसे किया शोध

अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेनसिलवेनिया के समाज वैज्ञानिक डामों सेन्टोला ने 200-200 लोगों के दल बनाए और हरेक दल को एक अनजान पुरुष/महिला की तसवीर दिखाकर उसका नाम रखने को कहा। पहली बार सबने अलग-अलग नाम दिया। फिर सबको वे नाम दिखाए गए। दूसरे राउंड में 14 प्रतिशत लोगों ने उस तसवीर को एक ही नाम दिया, तीसरे राउंड में 31 प्रतिशत लोगों ने एक ही नाम दिया। इसी तरह सातवें-आठवें राउंड तक जाने-अनजाने अधिकतर लोगों ने उस चित्र का नाम एक ही दिया। डामों सेन्टोला का निष्कर्ष है, बस 25 प्रतिशत लोगों को आप अपनी बात से सहमत कर लीजिये फिर आपकी राय बहुमत में होगी।

झूठी ख़बरें जल्दी फैलती हैं

पिछले साल के एक वैज्ञानिक अध्ययन से यह पता चलता है कि झूठी ख़बरें जल्दी और ज़्यादा लोगों तक पहुँचती हैं। यह अध्ययन सोरौश वोसौघी की अगुवाई में वैज्ञानिकों के एक दल ने किया था। सोरौश वोसौघी एक डाटा साइंटिस्ट हैं और कैंब्रिज स्थित मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में कार्यरत हैं। वर्ष 2013 में अमेरिका के बोस्टन मैराथन के दौरान बम फेंके गए थे, जिसमें कई लोग घायल हुए थे और कुछ मारे भी गए थे। उस दौरान सोरौश वोसौघी उसी संस्थान में शोध कर रहे थे और सोशल मीडिया, विशेष तौर पर ट्विटर पर, इससे संबंधित हरेक समाचार पर ध्यान दे रहे थे। कुछ दिनों बाद ही उन्हें साफ़ हो गया कि सही ख़बरों से अधिक झूठी ख़बरों को लोग अधिक फॉलो कर रहे हैं और ऐसी ख़बरें तेज़ी से फैलती हैं।

सोशल मीडिया पर झूठी ख़बरें

इंग्लैंड में किये गए एक ऐसे ही दूसरे अध्ययन में पाया गया कि सोशल मीडिया पर लोग स्वयं झूठी ख़बरें भेजते हैं। इस अध्ययन में 13 लोगों के एक दल में पहले सदस्य को ट्विटर पर एक सही ख़बर भेजी गयी। उसी ख़बर को पढ़कर इसे अपने शब्दों में फिर से लिखकर दूसरे को भेजना था, दूसरा इसी तरह तीसरे को, इसी तरह तेरहवें सदस्य तक ख़बर जानी थी। देखा गया कि छठे सदस्य तक आते-आते सही ख़बर लगभग ग़लत हो चुकी थी। छठे सदस्य को एक बार फिर सही ख़बर भेजी गयी और पाँचवें सदस्य द्वारा परिवर्तित ख़बर भी। हैरानी की बात यह थी कि हरेक समूह में छठे सदस्य ने सही ख़बर के बदले परिवर्तित ख़बर को प्रमुख मानते हुए इसे आगे भेजा। लगभग हरेक बार अंतिम ख़बर में सही ख़बर के कोई तथ्य नहीं मिले।

विचार से ख़ास

ज़्यादा झूठ बोलने पर ज़्यादा समर्थक!

इन सारे अध्ययनों को एक साथ जोड़ कर देखिये, झूठी ख़बरें तेज़ी से अधिक लोगों के पास पहुँचती हैं, उसपर लोग यक़ीन ज़्यादा करते हैं और समर्थक अधिक होते हैं। इसका सीधा-सा मतलब है, जितना अधिक झूठ बोलेंगे उतने अधिक समर्थक आपके पास होंगे। सरसरी तौर पर यह तथ्य एक मज़ाक लग सकता है, पर आज अधिकतर देशों में ऐसा ही हो रहा है। हाल में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर के अनुसार दुनिया में कम से कम 34 देशों की सरकारें, जिनमें अमेरिका और भारत शामिल हैं, सोशल मीडिया पर अरबों रुपये ख़र्च कर रही हैं जिससे उनके ग़लत और भ्रामक विचार अधिक लोगों तक पहुँचे और इनके समर्थकों की संख्या बढ़े। इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि अपने पक्ष में झूठी ख़बरें फैलाने वाली ऐसी सरकारें झूठी ख़बरें दबाने का नाटक भी ख़ूब करती हैं। ऐसी सरकारें झूठी ख़बरें ऐसी ख़बरों को मानती हैं जिसमें उसका विरोध किया गया हो।

इन शोधों से लगता है कि वर्तमान में झूठ से ही सत्ता पर काबिज़ हुआ जा सकता है और भारत समेत अधिकतर देशों का उदाहरण हमारे सामने है। लगता है कि ‘सत्यमेव जयते’ तो अब बस एक प्रतीक रह गया है, आज के दौर में असत्य से ही आगे बढ़ा जा सकता है!

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
महेंद्र पाण्डेय

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें