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राजस्थान में तुरंत कराएं शक्ति-परीक्षण

क्या 21 दिन तक इसे इसीलिए लंबा खींचा जा रहा है कि सचिन पायलट खेमे की रक्षा की जा सके? यदि सचिन-गुट कांग्रेस के पक्ष में वोट करेगा तो जीते-जी मरेगा और विरोध में वोट करेगा तो विधानसभा से बाहर हो जाएगा। 

डॉ. वेद प्रताप वैदिक
ऐसा लग रहा है कि राजस्थान की राजनीति पटरी पर शीघ्र ही आ जाएगी। राज्यपाल कलराज मिश्र का यह बयान स्वागत योग्य है कि वह विधानसभा का सत्र बुलाने के विरुद्ध नहीं हैं, लेकिन उन्होंने जो तीन शर्तें रखी हैं, वे तर्कसम्मत हैं और उन तीनों का संतोषजनक उत्तर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दे ही रहे हैं।
अदालतों के पिछले फ़ैसलों और संविधान की धारा 174 के मुताबिक, सामान्यतया राज्यपाल विधानसभा का सत्र बुलाने से रोक नहीं सकते। मंत्रिमंडल की सलाह मानना उनके लिए ज़रूरी है।
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क्या करें मुख्यमंत्री?

हालांकि गहलोत ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक गुहार लगा दी है और राजभवन के घेरे जाने की आशंका भी व्यक्त की है, लेकिन वह यदि चाहते और उनमें दम होता तो खुद ही सारे विधायकों को विधानसभा भवन या किसी अन्य भवन में इकट्ठे करके अपना बहुमत सारे देश को दिखा देते। राजभवन और अदालतें दोनों अपना-सा मुँह लेकर टापते रह जाते।
यह भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत ही दुखद बात है कि कोरोना के संकट के दौरान राजस्थान-जैसे राज्य की सरकार अधर में लटकी रहे।

राज्यपाल की भूमिका

कलराजजी यों तो अपनी विवेकशीलता और सज्जनता के लिए जाने जाते हैं लेकिन राज्यपाल का यह पूछना कि आप विधानसभा का सत्र क्यों बुलाना चाहते हैं, बहुत ही आश्चर्यजनक है।
विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए 21 दिन के नोटिस की बात भी समझ के बाहर है। 15 दिन पहले ही बर्बाद हो गए, अब 21 दिन तक जयपुर घोड़ों की मंडी बना रहे, यह क्या बात हुई?

मध्य प्रदेश का उदाहरण

कलराज मिश्रजी को मध्य प्रदेश के स्वर्गीय राज्यपाल लालजी टंडन का उदाहरण अपने सामने रखना चाहिए। उन्होंने 21 दिन नहीं, 21 घंटों की भी देर नहीं लगाई। क्या 21 दिन तक इसे इसीलिए लंबा खींचा जा रहा है कि सचिन पायलट खेमे की रक्षा की जा सके? यदि सचिन-गुट कांग्रेस के पक्ष में वोट करेगा तो जीते-जी मरेगा और विरोध में वोट करेगा तो विधानसभा से बाहर हो जाएगा। 

जो भी होना है, वह विधानसभा के सदन में हो। राजभवन और अदालतों में नहीं। यदि गहलोत सरकार को गिरना है तो वह विधानसभा में गिर जाए। राज्यपाल खुद को कलंकित क्यों करें?

सोशल डिस्टैंसिंग की बात सही

राज्यपाल का यह पूछना बिल्कुल जायज है कि विधानसभा भवन में विधायकों के बीच शारीरिक दूरी का क्या होगा? उसका हल निकालना कठिन नहीं है। यदि अयोध्या में 5 अगस्त के जमावड़े को सम्हाला जा सकता है तो यह कोई बड़ी बात नहीं है।
यदि इस मुद्दे को बहाना बनाया जाएगा तो लोग यह भी पूछेंगे कि आपने कमलनाथ- सरकार को गिराने के लिए ही तालाबंदी (लाॅकडाउन) की घोषणा में देरी की थी या नहीं? बीजेपी और केंद्र सरकार की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए भी यह ज़रूरी है कि राजस्थान की विधानसभा का सत्र जल्दी से जल्दी बुलाया जाए।

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)
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डॉ. वेद प्रताप वैदिक

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