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गाँधी की मौत के साथ ही दूर हो गया था पटेल-नेहरू का मनमुटाव

बीजेपी बार-बार सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनाए जाने का मुद्दा उठाती रही है। वह दोनों नेताओं के बीच के रिश्तों पर भी सवाल उठाती रही है। बीजेपी यह साबित करना चाहती है कि नेहरू पटेल से नफ़रत करते थे। पर यह सच नहीं है। गाँधी की पुण्य तिथि पर पढ़ें यह लेख कि कैसे राष्ट्रपिता की मृत्यु के साथ ही दोनों के मतभेद ख़त्म हो गए।  
शुक्रवार 30 जनवरी, 1948 को अपनी बेटी मणिबेन को लेकर सरदार बल्लभ भाई पटेल नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में महात्मा गाँधी से मिलने गए। बातचीत का मुख्य मसला जवाहरलाल नेहरू और पटेल के बीच चल रहा विवाद था। गाँधी ने पटेल से कहा कि दोनों के बीच किसी तरह का विवाद विनाशकारी होगा। गाँधी ने फैसला किया कि अगले दिन नेहरू और पटेल दोनों के साथ बैठक करेंगे।

सरदार मणिबेन के साथ 1 औरंगजेब रोड वापस चले आए। मणिबेन बाहर ही रुक गईं और पटेल से मिलने आई एक विस्थापित महिला से बात करने लगीं। उसी बीच गाँधी के एक सहयोगी बृज कृष्ण की कार रुकी और वह बदहवास से बोले, ‘सरदार कहां हैं? बापू को गोली मार दी गई। उनकी मौत हो गई।’
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पटेल अंदर से भागते हुए आए और कार में बैठ गए। मणिबेन भी साथ में बैठीं। दोनों बिड़ला हाउस पहुंचे। पटेल गांधी के पैर के पास बैठ गए। कुछ मिनट बाद नेहरू भी पहुँच गए। वह घुटने के बल बैठ गए और पटेल की गोद में सिर रखकर फूट-फूटकर रोने लगे।

पटेल ने दिखाई सख़्ती

पटेल के सहयोगियों व अधिकारियों से कमरा और बिड़ला हाउस का परिसर खचाखच भर गया। पटेल लौह पुरुष की भूमिका में आ गए। उन्होंने जनरल रॉय बुचर और पुलिस अधिकारियों को आदेश दिया देश में सुरक्षा के कड़े कदम उठाए जाएं और ‘यह कहने में कोई संकोच न किया जाए कि गाँधी का हत्यारा हिंदू था।’
उस दौर के सांप्रदायिक तनाव को देखते हुए पटेल को यह अहसास था कि अगर ऐसा न किया गया तो पहले से चल रहा हिंदू-मुसलिम दंगा अपने और वीभत्स रूप में सामने आ सकता है।

इस बीच ‘द स्टेट्समैन’ अख़बार में एक पत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें लिखा गया था कि ‘पटेल को अपने पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए क्योंकि उनका सुरक्षा विभाग असफल रहा है। इसके पहले कई बार यह चेतावनी आई थी कि गाँधी की जान ख़तरे में है और 10 दिन पहले ही उन पर बम फेंका गया था।’

पटेल-नेहरू मतभेद

कश्मीर के मामले को देखने के लिए नेहरू ने गोपालस्वामी आयंगर को कैबिनेट में शामिल कर लिया था, जो कश्मीर के दीवान थे। इसके बारे में पटेल को सूचना नहीं थी।
आयंगर के फ़ैसलों व उनकी नियुक्ति को लेकर ही पटेल व नेहरू के बीच मतभेद थे और पटेल ने 23 दिसंबर 1947 को नेहरू को पत्र लिखकर इस्तीफ़े की पेशकश कर दी थी।

इस्तीफ़े की माँग तेज़

गाँधी की हत्या के बाद समाजवादियों ने पटेल के इस्तीफ़े की माँग तेज़ कर दी थी। माँग करने वालों में नेहरू की ख़ास मृदुला अहम थीं और जय प्रकाश नारायण नेहरू के साथ ही ठहरे हुए थे।

पटेल ने नेहरू को इस्तीफ़ा लिख़ा और कहा कि उनका इस्तीफ़ा पहले से ही पड़ा हुआ है और उसमें यह बात और जोड़ ली जाए, ‘स्टेट्समैन के संवाददाता ने संवैधानिक रुख अपनाया है और मुझे लगता है कि वह सही है। मेरे इस्तीफ़े की यह एक अतिरिक्त वजह है। इस अहम मोड़ पर मैं आपको शर्मिंदा होते नहीं देखना चाहता।’
नेहरू ने 2 फरवरी 1948 को पटेल को पत्र लिखा : 

‘बापू की मौत के साथ सबकुछ बदल गया है। अब हमें अलग और ज्यादा कठिनाइयों से भरी दुनिया का सामना करना है। मैं आपके और अपने बारे में अफ़वाहों से बहुत बहुत तनाव में हूँ क्योंकि हमारे बीच जितने मतभेद हैं, उससे कई गुना बढ़ा चढ़ाकर कहा जा रहा है। हमें इसे ख़त्म करना होगा।’


पटेल को लिखी नेहरू की चिट्ठी का अंश

पटेल का भावुक जवाब

गाँधी की मृत्यु, गृह मंत्रालय की विफलता और सुरक्षा में हुई चूक के बीच पटेल के इस्तीफ़े की माँग के बीच नेहरू भावुक थे। पटेल भी हताश थे और मंत्रिमंडल में बने नहीं रहना चाहते थे। नेहरू ने पत्र में लिखा :
‘हमने एक चौथाई सदी साथ में काम किया है और तमाम तूफानों का सामना मिलकर किया है। मैं पूरी ईमानदारी से कहना चाहता हूं कि इस दौरान आपके प्रति मेरा लगाव और सम्मान लगातार बढ़ता ही गया है और मुझे नहीं लगता कि आपके प्रति मेरी यह भावना किसी तरीके से कम हो सकती है।
पटेल के इस्तीफ़े को इन भावुक शब्दों के साथ नेहरू ने खारिज कर दिया था। उन्होंने पत्र में आगे लिखा : 
‘मुझे लगता है कि बापू की मौत के बाद पैदा हुए संकट के बाद यह मेरा कर्तव्य है और यह कहने का मुझे अधिकार है कि आपका भी यह दायित्व है कि हम इस मुसीबत का सामना दोस्त और सहकर्मी बनकर करें। यह दिखावे में नहीं बल्कि एक दूसरे पर पूरे विश्वास के साथ ऐसा करना होगा।’

दूर हुए गिले-शिकवे

नेहरू के इस भावुक पत्र के जवाब में पटेल ने भी उसी तरह भावुक प्रतिक्रिया दी। पटेल ने 5 फरवरी 1948 को  लिखा, ‘मैं हृदय से आपकी भावनाओं के साथ हूं। हम दोनों जिंदगी भर कॉमरेड रहे और एक ही मकसद के लिए लड़े। हमारी शीर्ष और साझा रुचि देशहित को लेकर है और मतभेद रहते हुए भी हमारे बीच प्यार व लगाव हमें मजबूती से बांधे हुए हैं। मेरा सौभाग्य है कि बापू की मृत्यु के आधे घंटे पहले उनसे मेरी बात हुई और उनकी भी यही इच्छा थी कि हम मिलकर काम करें। मैं अपनी तरफ से आपको आश्वस्त करता हूं कि अपने दायित्व का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ करूंगा।’

वफ़ादारी का भरोसा

यह पत्र लिखने के एक दिन पहले ही पटेल ने संविधान सभा में कांग्रेस पार्टी को संबोधित करते हुए सार्वजनिक रूप से नेहरू के साथ एकजुटता दिखाते हुए पूरी वफादारी साथ खड़े रहने की बात कही थी।  उन्होंने कांग्रेस पार्टी को संबोधित करते हुए कहा : 

‘मैं सभी राष्ट्रीय मसलों पर प्रधानमंत्री के साथ हूँ। एक चौथाई शताब्दी तक हमने अपने नेता के चरणों के पास साथ बैठकर काम किया है और भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी है। अब इसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता कि जब महात्मा नहीं रहे तो हम आपस में झगड़ा करें।’


वल्लभ भाई पटेल, भारत के पहले गृह मंत्री

गाँधी की हत्या के बाद भारत, पाकिस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया स्तब्ध थी। धर्म के नाम पर भारत पाकिस्तान में मारकाट कर रहे लोग अचानक मूर्तिवत हो गए थे। वही हाल पटेल और नेहरू का हुआ था। करीब 3-4 महीने से सरदार और नेहरू के बीच चल रहा मनमुटाव गांधी की मौत के बाद दो पत्रों के आदान प्रदान के साथ हमेशा के लिए खत्म हो गया और दोनों नेता पहले की ही तरह राष्ट्र निर्माण के कार्यों में जुट गए।

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प्रीति सिंह

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