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ट्रेन किराया विवाद: प्रधानमंत्री को ग़रीब मज़दूरों की कितनी परवाह?

विदेशों से जिन लोगों को लाया गया है, उनको मुफ्त की हवाई-यात्रा, मुफ्त का खाना और भारत पहुँचने पर मुफ्त में रहने की सुविधाएँ भी दी गई हैं। यह अच्छी बात है लेकिन ये लोग कौन हैं? ये वे प्रवासी भारतीय हैं, जो विदेशों में काम करके पर्याप्त पैसा कमाते हैं लेकिन इनके मुक़ाबले हमारे नंगे-भूखे मज़दूरों से सरकार रेल-किराया वसूल कर रही है। प्रधानमंत्री किसकी परवाह कर रहे हैं? 
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

भारत सरकार ने यह फ़ैसला देर से किया लेकिन अच्छा किया कि प्रवासी मज़दूरों की घर वापसी के लिए रेलें चला दीं। यदि बसों की तरह रेलें भी ग़ैर-सरकारी लोगों के हाथ में होतीं या राज्य सरकारों के हाथ में होतीं तो वे उन्हें कब की चला देते। करोड़ों मज़दूरों की घर-वापसी हो जाती और अब तक काम पर लौटने की उनकी इच्छा भी बलवती हो जाती लेकिन अब जबकि रेलें चल रही हैं, बहुत ही शर्मनाक और दर्दनाक नज़ारा देखने को मिल रहा है। जिन मज़दूरों की जेबें खाली हैं, उनसे रेल-किराया माँगा जा रहा है और एक वक़्त के खाने के 50 रुपये ऊपर से उन्हें भरने पड़ रहे हैं। 

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इसके विपरीत विदेशों से जिन लोगों को लाया गया है, उनको मुफ्त की हवाई-यात्रा, मुफ्त का खाना और भारत पहुँचने पर मुफ्त में रहने की सुविधाएँ भी दी गई हैं। इसमें कोई बुराई नहीं है। यह अच्छी बात है लेकिन ये लोग कौन हैं? ये वे प्रवासी भारतीय हैं, जो विदेशों में काम करके पर्याप्त पैसा कमाते हैं लेकिन इनके मुक़ाबले हमारे नंगे-भूखे मज़दूरों से सरकार रेल-किराया वसूल कर रही है। क्या यह शर्म की बात नहीं है? ख़ास तौर से तब जबकि ‘प्रधानमंत्री परवाह करते हैं’ (पीएम केयर्स फंड) में सैकड़ों करोड़ रुपये जमा हो रहे हैं। 

प्रधानमंत्री किसकी परवाह कर रहे हैं? अपने जैसे लोगों की? खाए, पीए, धाए लोगों की? जो भूखे-प्यासे ग़रीब लोग हैं, उनकी परवाह कौन करेगा? यदि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने इन वंचितों के लिए आवाज़ उठाई तो इसमें उन्होंने ग़लत क्या किया? यदि इसे आप राजनीतिक पैंतरेबाज़ी कहते हैं तो मैं इस पैंतरेबाज़ी का स्वागत करता हूँ हालाँकि सबको पता है कि कांग्रेस पार्टी के हाल खस्ता हैं। 

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वह सोनिया के इस दावे पर अमल कैसे करेगी कि सारे मज़दूरों का यात्रा-ख़र्च कांग्रेस पार्टी उठाएगी। यह कोरी धमकी थी लेकिन इसका असर अच्छा हुआ है। कई कांग्रेसी और ग़ैर-कांग्रेसी राज्यों ने अपने-अपने यात्रियों का ख़र्च खुद करने की घोषणा कर दी है। रेल मंत्रालय को अब यही देखना है कि वह इन करोड़ों मज़दूरों की यात्रा को सुरक्षित ढंग से संपन्न करवा दे। यदि यात्रा की इस भगदड़ और गहमागहमी में कोरोना फैल गया तो देश के सामने मुसीबतों का नया पहाड़ उठ खड़ा होगा।
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डॉ. वेद प्रताप वैदिक

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