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क्या तुलसी के दोहों में लिखा है राम मंदिर तोड़े जाने का क़िस्सा?

अयोध्या मामले में फ़ैसला कुछ ही दिनों में आने वाला है। सभी को बेताबी से इंतज़ार है कि सुप्रीम कोर्ट अयोध्या की उस विवादित ज़मीन के बारे में क्या निर्णय करता है जिसपर 6 दिसंबर 1992 से पहले बाबरी मसजिद खड़ी हुई थी और जिसके बारे में दावा है कि सन 1528 से पहले वहाँ राम का एक मंदिर था जिसे तोड़कर यह मसजिद बनाई गई थी।
नीरेंद्र नागर

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो जजों ने पुरातत्व विभाग की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर यह माना था कि बाबरी मसजिद किसी हिंदू मंदिर (ज़रूरी नहीं कि वह राम का ही मंदिर रहा हो) को गिराकर बनाई गई है। तीसरे जज का मत था कि मसजिद वाली ज़मीन की खुदाई में हिंदू मंदिर के जो अवशेष मिले हैं, वे संभवतः किसी मंदिर के भग्नावशेष थे। उनके अनुसार यदि मंदिर तोड़कर मसजिद बनाई जाती तो ये अवशेष ज़मीन के अंदर नहीं होते, बाहर के ढाँचे पर लगाए गए होते।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज भले न मानें कि बाबरी मसजिद राम मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी लेकिन सोशल मीडिया पर सक्रिय लाखों लोग न केवल यह मानते हैं कि मंदिर तोड़ा गया था, बल्कि यह भी कि वह तोड़ा गया मंदिर राम का ही था। उनके पास अपने समर्थन में एक बहुत 'मज़बूत प्रमाण' है - गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित वे आठ दोहे जिनमें उन्होंने साफ़-साफ़ कहा है कि मीर बाक़ी ने यह मंदिर तोड़ा और मसजिद बनाई।

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आपने भी वे आठ दोहे पढ़े होंगे। वे सोशल मीडिया पर हर जगह उपलब्ध हैं हालाँकि उनकी भाषा में थोड़ा-बहुत अंतर है। अगर नहीं पढ़े हैं तो नीचे पढ़ लें जो इन दोहों का सबसे प्रामाणिक वर्जन है। प्रामाणिक इसलिए कि यह उस मूल स्रोत से लिया गया है जिसका हवाला बाक़ी लोग देते हैं।

मंत्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास।

जवन जराये रोष भरि, करि तुलसी परिहास॥

सिखा सूत्र से हीन करि, बल ते हिन्दू लोग।

भमरि भगाये देश ते, तुलसी कठिन कुजोग॥ 

बाबर बर्बर आइके, कर लीन्हे करवाल।

हने पचारि-पचारि जन, तुलसी काल कराल॥

सम्बत सर वसु बान नभ, ग्रीष्म ऋतु अनुमानि।

तुलसी अवधहिं जड़ जवन, अनरथ किए अनखानि॥

राम जनम महिं मंदिरहिं, तोरि मसीत बनाय।

जवहि बहु हिन्दुन हते, तुलसी कीन्ही हाय॥

दल्यो मीरबाकी अवध, मन्दिर रामसमाज।

तुलसी रोवत हृदय हति, त्राहि-त्राहि रघुराज॥

राम जनम मंदिर जहाँ, लसत अवध के बीच।

तुलसी रची मसीत तहँ, मीरबाकी खल नीच॥

रामायन घरि घन्ट जहँ, श्रुति पुरान उपखान।

तुलसी जवन अजान तहँ, कियो कुरान अजान॥

इन दोहों का अर्थ तो आप समझ ही गए होंगे। नहीं समझे तो संक्षेप में इसका अर्थ यही है कि मीर बाक़ी ने रामजन्म मंदिर को तोड़ा, मसजिद बनाई और कई हिंदुओं की हत्या की। ये दोहे 'तुलसी दोहा शतक' नाम के संग्रह से लिए बताए जाते हैं। लेकिन समस्या यह है कि 'तुलसी दोहा शतक' नाम का कोई संग्रह तुलसीदास ने रचा है, इसका उल्लेख हमें कहीं नहीं मिलता। उनके नाम से ये 24 रचनाएँ मिलती हैं - 1. रामचरितमानस, 2. रामलला नहछू, 3. वैराग्य-संदीपनी, 4. बरवै रामायण, 5. पार्वती-मंगल, 6. जानकी-मंगल, 7. रामाज्ञाप्रश्न, 8. दोहावली, 9. कवितावली, 10. गीतावली,11.श्रीकृष्ण-गीतावली, 12. विनयपत्रिका, 13. सतसई, 14. छंदावली रामायण,15. कुंडलिया रामायण, 16. राम शलाका, 17. संकटमोचन, 18. करखा रामायण, 19. रोला रामायण, 20. झूलना, 21. छप्पय रामायण, 22. कवित्त रामायण, 23. कलिधर्माधर्म निरुपण, 24. हनुमान चालीसा।

तुलसी रचनाओं की लिस्ट इस लिंक पर देखें।

अब प्रश्न यह है कि क्या तुलसीदास का यह ‘दोहा शतक’ हाल ही की खोज है। यदि हाँ तो किसने की यह खोज?

आइए, नीचे जानते हैं।

तुलसीदास के नाम से चलने वाले ये आठ दोहे 2010 के बाद तब चर्चा में आए जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने अयोध्या मामले पर अपने फ़ैसले में इनका उल्लेख किया। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने अपने विस्तृत निर्णय में सभी पक्षों द्वारा पेश दलीलों और सबूतों का हवाला दिया है। इसी सिलसिले में पेज नंबर 780 पर हिंदू पक्ष की तरफ़ से पेश हुए स्वामी रामभद्राचार्य के हलफ़नामे का ज़िक्र है और पेज नंबर 783 पर वे दोहे लिखे गए हैं जिनको रामभद्राचार्य ने तुलसीरचित बताया था। ग्रंथ का नाम दिया था - श्री तुलसीशतक।

स्वामी रामभद्राचार्य रामानंदी संप्रदाय के संत हैं और चित्रकूट में तुलसी पीठ के प्रतिष्ठापक हैं। 1995 के बाद से वह जगद्गुरु अभिषिक्त किए गए और तब से जगद्गुरु रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य के नाम से जाने जाते हैं। वह विश्व हिंदू परिषद से भी जुड़े हुए हैं और मंदिर निर्माण आंदोलन में भी सक्रिय हैं। 2015 में वह पद्म विभूषण से भी सम्मानित हुए।

स्वामी रामभद्राचार्य ने अदालत के सामने इन दोहों का हवाला सबसे पहले 2003 में दिया था लेकिन सात-आठ साल तक कहीं किसी को इनकी भनक भी नहीं लगी। अगर 2010 में न्यायमूर्ति अग्रवाल ने अपने निर्णय में इन दोहों का हवाला नहीं दिया होता तो शायद किसी को पता भी नहीं चलता कि तुलसीदास ने राम मंदिर विध्वंस पर कोई दोहे भी लिखे थे।

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सोशल मीडिया वाले दोहे कितना प्रमाणिक?

अब रहा प्रश्न यह कि क्या ये दोहे वाक़ई तुलसीदास जी के लिखे हुए हैं। आइए, नीचे इनकी जाँच करते हैं।

1. तुलसी की रचनाओं में इन दोहों या 'श्री तुलसी शतक' या 'तुलसी दोहा शतक' (जैसा कि सोशल मीडिया पर चल रहा है) नाम के किसी संग्रह का कहीं भी उल्लेख नहीं है। (इस लिंक पर देखें उनकी रचनाओं की सूची)

2. यदि ग्रंथ का नाम ‘श्री तुलसी शतक’ या ‘तुलसी दोहा शतक’ है तो उसमें कुल सौ दोहे होने चाहिए। बाक़ी के 92 दोहे कहाँ हैं? क्या इस नाम का कोई संग्रह बाज़ार में उपलब्ध है जिसमें ये सौ दोहे संकलित हैं? जवाब है, नहीं।

3. तुलसी के इन दोहों में कुछ ऐसी भूलें हैं जो बताती हैं कि ये दोहे किसी उर्वर दिमाग़ की उपज है जिसने ये दोहे रचते समय काफ़ी सतर्कता बरती, फिर भी कहीं-कहीं चूक गया।

4. दूसरे दोहे में ‘देश’ शब्द आया है - भमरि भगाये देश ते। तुलसीदास जी की अवधी शैली में देश नहीं, देस लिखा जाएगा। तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में ‘श’ का इस्तेमाल नहीं किया है - शिव को सिव लिखा है, शरद को सरद लिखा है, शंका को संका लिखा है (देखें चित्र)।

tulsidas dohe on ram mandir demolition babri masjid ayodhya dispute  - Satya Hindi

5. चौथे दोहे  - ग्रीष्म ऋतु अनुमानि - में ग्रीष्म लिखा गया है जो संस्कृत का शब्द है। तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में ग्रीष्म ऋतु का ज़िक्र किया है लेकिन ग्रीषम के रूप में (देखें चित्र)। इसी तरह ऋतु की जगह रितु लिखा होना चाहिए था (देखें चित्र)।

tulsidas dohe on ram mandir demolition babri masjid ayodhya dispute  - Satya Hindi

6. दोहे में मात्राओं के नियम होते हैं। इसके चार पदों में पहले और तीसरे पद में 13-13 और दूसरे और चौथे पद में 11-11 मात्राएँ होनी चाहिए। लेकिन कई पदों में गड़बड़ियाँ हैं। चौथे दोहे - अनरथ किए अनखानि - में 12 मात्राएँ हैं, होनी चाहिए 11। इसी तरह - मीरबाकी खल नीच - में भी 12 मात्राएँ हैं। क्या महाकवि तुलसीदास मात्राओं के बारे में ऐसी चूक कर सकते थे?

7. अगर ये दोहे असली होते, तुलसीदास जी के लिखे होते और इनकी प्रामाणिकता असंदिग्ध होती तो क्या इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तीनों जजों ने केवल इसी साक्ष्य के आधार पर यह नहीं कह दिया होता कि हाँ, अयोध्या में राम जन्मस्थान मंदिर था जिसे मीर बाक़ी ने तोड़ा था। आख़िर क्यों दो जजों ने अपने फ़ैसले में 'इतने महत्वपूर्ण सबूत' का ज़िक्र करना भी उचित नहीं समझा और जिसने इसका ज़िक्र किया, उसने भी इसके आधार पर अनुकूल फ़ैसला नहीं दिया। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने केवल यही कहा कि मसजिद से पहले वहाँ एक हिंदू मंदिर था और यह फ़ैसला उन्होंने पुरातत्व विभाग की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर किया न कि तुलसीदास के बताए गए इन दोहों के आधार पर।

आख़िर में सबसे रोचक बात। जिन जगद्गुरु रामामंदाचार्य रामभद्राचार्य ने कोर्ट में इन दोहों को सबूत के तौर पर पेश किया था, उनकी आँखों की ज्योति दो साल की उम्र में ही नष्ट हो गई थी (जानकारी यहाँ से ली गई है)। तो जिज्ञासा होती है कि उन्होंने ये दोहे पढ़े कैसे? क्या किसी और ने उन्हें ये पढ़कर सुनाए और उन्होंने मान लिया?

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दोहे रचने का मतलब

अब अंत में सबसे बड़ा सवाल - तुलसीदास के नाम से ये दोहे रचने की ज़रूरत क्यों पड़ी? कारण यह है कि जो पक्ष यह दावा करता है कि बाबरी मसजिद राम मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गई थी, उनका एक तर्क यह रहा है कि संत तुलसीदास उसी दौर में पैदा हुए थे - उनका जीवनकाल है -1511-1623। ऐसे में यदि उनके जीवनकाल में उनके आराध्य भगवान राम का मंदिर तोड़ा गया होता तो क्या उन्होंने अपनी किसी भी रचना में इसका ज़िक्र नहीं किया होता? वाक़ई यह बहुत मज़बूत दलील है जिसका प्रतिपक्ष के पास कोई तोड़ नहीं था। इसी कारण ये दोहे रचे गए और कोर्ट के सामने पेश किए गए। लेकिन जैसा कि हमने देखा, जजों ने इन दोहों पर रत्तीभर भी विश्वास नहीं किया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने भी नहीं जिन्होंने पूरी ज़मीन हिंदू पक्ष को देने का फ़ैसला दिया था।

जिन पाठकों की रुचि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फ़ैसला को पढ़ने की हो, वे इस लिंक पर उसे पढ़ सकते हैं।

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