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क्या बीजेपी केंद्र की सत्ता में लौट पाएगी?

पूर्व केंद्रीय मंत्री संघप्रिय गौतम ने माँग की है कि शिवराज चौहान को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाए, ​नितिन गडकरी को उप-प्रधानमंत्री घोषित किया जाए। तो क्या मौजूदा पार्टी नेतृत्व से बीजेपी के ही नेता संतुष्ट नहीं हैं? और यदि ऐसा है तो जो नेतृत्व अपनों का ही दिल नहीं जीत सका, वह दूसरों का क्या जीतेगा?
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

बीजेपी के संस्थापक और पूर्व केंद्रीय मंत्री संघप्रिय गौतम के बयान ने तहलका-सा मचा दिया है। वह अटलजी और आडवाणीजी के साथी रहे हैं और उनकी उम्र 88 साल की है। वह नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शक मंडल के सदस्यों की तरह मार्ग नहीं देख रहे हैं बल्कि सच्चे मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहे हैं। वह मार्ग दिखा रहे हैं। उन्होंने बीजेपी के नेताओं को खुला पत्र लिखकर माँग की है कि शिवराज चौहान को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाए, ​नितिन गडकरी को उप-प्रधानमंत्री घोषित किया जाए और राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री के तौर पर उत्तरप्रदेश भेजा जाए। इस फेर-बदल के बिना 2019 के चुनाव में बीजेपी का लौटना मुश्किल है।

गौतमजी के सुझाव लागू होंगे कि नहीं, किसी को पता नहीं, क्योंकि बीजेपी की सारी बातों का पता सिर्फ़ दो भाइयों को ही रहता है। उनमें से एक भाई को घर बिठाने का सुझाव गौतमजी ने दे मारा है। दूसरे भाई की उपलब्धियाँ जितनी राहुल गाँधी ने गिनाई हैं, उनसे ज़्यादा इन्होंने गिना दी हैं। पता नहीं, दूसरे भाई को हटाने की बात उन्होंने क्यों नहीं की? 

आप एक भाई को हटाएँ या दोनों भाइयों को, अब बात बननी मुश्किल लगती है। यदि दोनों भाई ज़रा भी पानीदार होंगे तो अपनी पार्टी और अपने देश में अपनी हालत देखकर ख़ुद ही इस्तीफ़ा दे देंगे लेकिन उससे होगा क्या?

यदि गडकरी को आज उप-प्रधानमंत्री क्यों, प्रधानमंत्री भी बना दिया जाए तो वह अगले चार-पाँच माह में क्या कर लेंगे? हाँ, यदि वह शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई क्रांतिकारी कदम उठा लें, नए राम मंदिर की नींव डाल दें या पाकिस्तान से कोई भारी भिड़ंत हो जाए तो हो सकता है कि लोग उन्हें हाथों-हाथ उठा लें और उनके नेतृत्व में किसी तरह बीजेपी सरकार बना ले।

  • इसमें शक नहीं कि राजनाथ सिंह, गडकरी या सुषमा स्वराज- जैसे लोग प्रधानमंत्री होते तो बीजेपी को 2019 में लौटने की चिंता नहीं सताती लेकिन सर्वज्ञजी की अहमन्यता और कृतघ्नता से बीजेपी के वरिष्ठ नेता और संघ तो नाख़ुश है ही, भारतीय राजनीति में पक्ष और विपक्ष के संवाद का स्तर भी पाताल को छू रहा है। 

धीरे-धीरे ही सही, अब वे 31 प्रतिशत मतदाता, जिन्होंने मोदी को कुर्सी पर बिठाया था, मोहभंग की स्थिति में हैं। यदि 2019 के चुनाव में बीजेपी जीते नहीं लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे, तब भी सरकार बनाना उसके लिए मुश्किल होगा, ख़ासतौर से भाई-भाई नेतृत्व के कारण! जो नेतृत्व अपनों का ही दिल नहीं जीत सका, वह दूसरों का क्या जीतेगा? हाँ, उस समय गडकरी, राजनाथ और सुषमा-जैसे योग्य, व्यावहारिक और विनम्र लोग नेतृत्व में हों तो बीजेपी की सरकार दुबारा बन सकती है?

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक

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