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आख़िर 'गाँधी परिवार' पर ही क्यों अटकी है कांग्रेस की सुई?

क़रीब 30 साल पहले की बात है। फिज़िक्स की क्लास चल रही थी। प्रोफ़ेसर साहब प्रकाश और प्रकाश की गति के बारे में बता रहे थे। उन्होंने बताया कि प्रकाश की गति सबसे तेज़ होती है। इससे तेज़ किसी भी चीज़ की गति नहीं हो सकती। एक छात्र ने पूछ लिया, 'सर मान लीजिए, अगर कोई प्रकाश की गति से ज्यादा तेज़ चले तो क्या होगा? प्रोफ़ेसर साहब ने उसे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा और बोले, 'प्रकाश की गति से तेज़ चलने वाला मुसाफ़िर अपने सफ़र का पहला क़दम उठाने से पहले ही अपनी मंज़िल पर पहुँच जाएगा। यानी वो भविष्य में जाने के बजाय भूतकाल में पहुँच जाएगा।' मुझे आज भी याद है। यह सुनते ही पूरी क्लास ठहाकों से गूँज गई थी।

शनिवार क़रीब आधी रात को जब सोनिया गाँधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनाने की ख़बर आई तो मुझे प्रोफ़ेसर साहब की 30 साल पुरानी बात याद आ गई। कांग्रेस अपना भविष्य तलाशते-तलाशते अचानक इतनी तेज़ गति से आगे बढ़ी कि भटक कर फिर से भूतकाल में ही पहुँच गई। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी 2024 में होने वाले अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के सांसदों को अगला चुनाव जीतने के टिप्स दिए हैं। केंद्र के साथ-साथ देश के ज़्यादातर राज्यों में सत्तासीन हो चुकी  बीजेपी को उखाड़ फेंकने के दावे करने वाली कांग्रेस गाँधी परिवार से बाहर का नया अध्यक्ष ढूँढते-ढूँढते उसी दौर में पहुँच गई जहाँ कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी हुआ करती थींं।

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सोनिया गाँधी को ही पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष बनाने का कांग्रेस का फ़ैसला रुकी हुई घड़ी की सुइयों को उलटी दिशा में घुमाकर उन्हें मौजूदा समय पर लाने की कोशिश करना है। ऐसे वक़्त में जबकि देश को एक मज़बूत विपक्ष की ज़रूरत है और देश कांग्रेस की तरफ़ बड़ी उम्मीद भरी नज़रों से देख रहा है। ऐसे समय में जबकि पीएम मोदी के पास प्रचंड बहुमत है। यह प्रचंड बहुमत तमाम संवैधानिक और संसदीय परंपराओं को रौंदते हुए तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। इससे मुक़ाबला करने के लिए कांग्रेस को ज़्यादा गति चलने की ज़रूरत है। लेकिन कांग्रेस आगे बढ़ने के बजाय पीछे उस दौर की तरफ़ जा रही है जिस दौर में सोनिया गाँधी भी तमाम बड़े फ़ैसलों के लिए नेताओं को राहुल गाँधी के पास ही भेज दिया करती थींं। दरअसल, आज कांग्रेस एक रुकी हुई घड़ी की तरह हो कर रह गई है। इस घड़ी में घंटे वाली सुई सोनिया गाँधी हैं। मिनट वाली सुई राहुल गाँधी हैं, और सेकंड वाली सुई प्रियंका गाँधी हैं। 

अगर यह घड़ी बैटरी वाली है तो इसके सेल डाउन हो चुके हैं। सेल बदले बिना यह घड़ी नहीं चलेगी। अगर मैकेनिकल है तो इसे चलाने के लिए चाबी भरनी पड़ेगी। जब तक कोई चाबी भरने वाला नहीं मिलेगा घड़ी नहीं चलेगी। यह घड़ी ऑटोमैटिक होती तो अब तक चल चुकी होती। ऑटोमैटिक घड़ी एक सिस्टम पर काम करती है। अगर आप घड़ी हाथ से उतार के रख दें, दो-चार दिन उसे न पहनें तो पहले वह सुस्त हो जाती है, फिर बंद हो जाती है। लेकिन जैसे ही आप समय मिला कर उसे अपने हाथ में पहनते हैं। हाथ की हरकत से घड़ी चलने लगती है।
अगर कांग्रेस में अध्यक्ष चुनने की पहल तय प्रक्रिया से होती तो अब तक नय अध्यक्ष चुन लिया जाता। पार्टी को वहीं से क़दम पीछे नहीं खींचने पड़ते जहाँ वह लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद खड़ी थी। जहाँ से पार्टी को आगे बढ़ना था वहाँ से पार्टी पीछे जा रही है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में सबसे पुरानी पार्टी का विपक्ष में रहते हुए इस तरह दिशाहीन हो जाना लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। पार्टी की यह दिशाहीनता संसद में भी दिखी। प्रचंड बहुमत से सत्ता में आने के बाद बीजेपी राज्यसभा में बहुमत न होने के बावजूद ऐसे-ऐसे विधेयक पास कराने में कामयाब हो गई जिन्हें कांग्रेस पास कराना नहीं चाहती थी। ज़ाहिर है नेतृत्व विहीनता की स्थिति में कांग्रेस संसद में फ्लोर कोऑर्डिनेशन भी नहीं कर पाई। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का अपने पितृ संगठन आरएसएस का वर्षों पुराना सपना प्रधानमंत्री मोदी ने पूरा कर दिया। लेकिन कांग्रेस अभी नए अध्यक्ष के सवाल पर ही उलझी हुई है।
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परिवारवाद का लेबल कैसे हटेगा?

दरअसल, लोकसभा चुनाव में मिली क़रारी हार के बाद राहुल गाँधी का अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देना और उस फ़ैसले पर क़ायम रहने के पीछे असल मक़सद यह है कि वह पार्टी पर बरसों से चिपका परिवारवाद का लेबल हटाना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने नए अध्यक्ष के लिए सोनिया गाँधी और प्रियंका गाँधी के नाम पर विचार करने तक से मना किया है। लेकिन सोनिया गाँधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस के नेताओं ने उस लेबल को क्विक फिक्स से दोबारा मज़बूती से चिपका दिया है। अब राहुल गाँधी के लिए इसे उखाड़ फेंकना और भी मुश्किल हो गया है।

शनिवार को पाँच अलग-अलग ज़ोन बनाकर देशभर से आए कांग्रेसी नेताओं के साथ हुए विचार-विमर्श के दौरान प्रदेशों से आए कांग्रेसी नेताओं ने साफ़-साफ़ कह दिया कि अगर राहुल गाँधी अध्यक्ष नहीं रहेंगे तो पार्टी बिखर जाएगी। कई नेताओं ने तो यहाँ तक कह दिया कि राहुल गाँधी के अलावा किसी और नेता के नेतृत्व में काम करना उनके लिए संभव नहीं है। अगर राहुल नहीं मानते हैं तो उनकी जगह प्रियंका गाँधी को अध्यक्ष बनाया जाए। नए अध्यक्ष के नाम पर राहुल और प्रियंका के अलावा किसी ने तीसरा नाम लिया ही नहीं। एक दो ने मुकुल वासनिक या मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नेताओं का नाम लिया भी तो इनकी तादाद उँगलियों पर गिनने लायक है। आख़िरकार सोनिया गाँधी को ही अंतरिम अध्यक्ष बना दिया गया।

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कांग्रेस का भविष्य

अब यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि पहले पार्टी की 19 साल तक लगातार पूर्णकालिक अध्यक्ष रह चुकी सोनिया गाँधी अगले कितने दिनों तक अंतरिम अध्यक्ष रहेंगी। यह भी सवाल अहम है कि क्या वह दोबारा से पूर्णकालिक अध्यक्ष बन जाएँगी? राहुल गाँधी पार्टी नेताओं की माँग पर दोबारा अध्यक्ष पद संभालते हैं या फिर अपनी ज़िद पर अड़े रह कर परिवार के बाहर के ही किसी नेता को यह ज़िम्मेदारी दिलाते हैं। ऐसे हालात में जबकि देशभर के कांग्रेसी नेता अध्यक्ष पद के लिए सोनिया राहुल और प्रियंका से आगे नहीं सोचना चाहते, राहुल गाँधी के लिए बाहर से किसी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनवाना और उसे फ्री हैंड देकर अगले लोकसभा चुनाव तक बनाए रखना बहुत बड़ी चुनौती है।

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यूसुफ़ अंसारी

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