loader

नये संसद भवन पर फ़िज़ूलख़र्ची: डेमोक्रेसी मरती रहेगी, बिल्डिंग चमकती रहेगी!

संसद भवन और केंद्रीय सचिवालय की जगह ‘न्यू इंडिया’ की नयी मायानगरी 2022-24 तक! क्यों चाहिए, एक नयी पार्लियामेंट बिल्डिंग, नया सचिवालय और राजपथ का नया परिदृश्य! सवाल है- क्या नए चमकीले भवनों के निर्माण से हमारी डेमोक्रेसी चमकेगी या लोकतांत्रिक संविधान के तहत काम करने से? समाज को सुंदर और सुसंगत बनाने से डेमोक्रेसी का विस्तार होगा या आर्थिक मंदी के दौर में भारी फ़िज़ूलख़र्ची से? 
उर्मिेलेश

पिछले सप्ताह देश के आवास और नगर विकास मंत्री हरदीप पुरी ने दिल्ली के ‘लुटियन ज़ोन’ के समूचे परिदृश्य को बदलने और संसद व सचिवालय के लिए नए भवनों के निर्माण की एक अति-महत्वाकांक्षी योजना का एलान किया। इससे पहले सिर्फ़ संसद की नई बिल्डिंग और कुछेक नये भवनों के निर्माण की अटकलें लगाई जा रही थीं। मोदी सरकार ने फ़िलहाल संसद के मौजूदा ऐतिहासिक भव्य भवन को बख्श दिया और उसे बरकरार रखने का फ़ैसला किया पर यह तय नहीं है कि उस भवन का उपयोग किसके लिए होगा! नया संसद भवन सन् 2022 में तैयार हो जाएगा, जब भारत अपनी आज़ादी का 75 वाँ साल मना रहा होगा। तब संसद का अधिवेशन नयी बिल्डिंग में होगा, उस बिल्डिंग या उस सेंट्रल हॉल में नहीं, जहाँ आज़ाद भारत की संसद का पहला सत्र हुआ था या जहाँ संविधान सभा की बैठकें होती थीं। आज़ादी के 75वें साल में वे तमाम जगहें वीरान होंगी या सरकारी बाबुओं के हवाले होंगी, जहाँ महज कुछ ही दशक पहले जवाहर लाल नेहरू, डॉ. भीम राव आम्बेडकर, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, ज़ाकिर हुसैन, इंदिरा गाँधी, डॉ. राम मनोहर लोहिया, भूपेश गुप्ता, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रजीत यादव, सोमनाथ चटर्जी, वीपी सिंह या डॉ. के. आर. नारायणन की आवाज़ें गूँजा करती थीं।

सियासत से ख़ास

विडम्बना यह है कि संसद के मौजूदा भवन को बने अभी 100 साल भी नहीं हुए हैं। देश के ख्यातिलब्ध भवन-निर्माण विशेषज्ञ बार-बार कह चुके हैं कि संसद की मौजूदा इमारत बिल्कुल सुरक्षित और टिकाऊ है। समय-समय पर सिर्फ़ मरम्मत करके इसे सौ-डेढ़ सौ साल और चलाया जा सकता है। भारत सरकार में काम कर चुके कई प्रतिष्ठित भवन निर्माण विशेषज्ञों, यहाँ तक कि सीपीडब्ल्यूडी के उच्चाधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि की है। हाल ही में जाने-माने आर्किटेक्ट और स्थापत्य विशेषज्ञ गौतम भाटिया ने भी एक बड़े अंग्रेज़ी अख़बार में प्रकाशित अपने कॉलम में नई पार्लियामेंट बिल्डिंग बनाने के विचार को बेमतल बताया था। दुनिया के अनेक संसद भवन या सीनेट कई-कई सौ साल पुराने हैं और उनके स्थापत्य को छेड़े बगैर उनकी मरम्मत करके काम चलाया जाता है। पर हमारे सत्ताधारी नये भवन के लिए काफ़ी उतावले नज़र आ रहे हैं। वे भारत का अपने मन का नया इतिहास चाहते हैं, उन्हें सिर्फ़ कुछ नेताओं-स्वाधीनता सेनानियों से चिढ़ नहीं है, शायद उन जगहों से भी चिढ़ है, जो आज़ादी की लड़ाई और एक नये राष्ट्र के निर्माण-प्रक्रिया की शुरुआती गवाह रही हैं।

संसद का मौजूदा भव्य भवन, जिसे मोदी सरकार संसदीय गतिविधियों से मुक्त कराकर किसी अन्य उपयोग में लाने का विचार कर रही है, उसका डिज़ाइन सन् 1911-12 में विख्यात निर्माण विशेषज्ञ और स्थापत्यकार इडविन लुटियन्स और हरबर्ट बेकर ने तैयार किया था। सन् 1921 में इसका निर्माण शुरू हुआ और संसद भवन सन् 1927 में बनकर तैयार हुआ था। अगर दुनिया के दूसरे संसदीय भवनों का इतिहास देखें तो पायेंगे कि उनके भवन और भी पुराने हैं पर वे मुल्क अपनी विरासत और स्थापत्य को सहेज कर रखते हैं। ब्रिटिश पार्लियामेंट भवन यानी वेस्टमिन्सटर 11वीं सदी से था। पर इसका बड़ा हिस्सा 1834 में आग में जल गया। फिर 1837 में नया भवन बनना शुरू हुआ और 1860 में तैयार हो गया। इसमें तीन हिस्से हैं-‘सौवरेन’ यानी ‘क्वीन इन पार्लियामेंट’, दूसरा हाउस ऑफ़ कॉमन्स और तीसरा हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स। दूसरे विश्वयुद्ध में हवाई हमलों में जब इसके कुछ हिस्से नष्ट हो गये तो इसकी फिर ज़बर्दस्त मरम्मत हुई। और 1950 में यह फिर चमक उठा। पर ब्रिटेन ने बिल्कुल नया भवन बनाने की बात कभी नहीं सोची। पर मोदी जी हैं तो कुछ भी मुमकिन है। डेनमार्क की संसद को ‘फोकेटिंगेट’ कहा जाता है और यह 1738-46 में बने एक ‘पैलेस’ में अवस्थित है। इस पैलेस का नाम है-क्रिश्चियन्सबोर्ग। ‘रानी का राज’ होने के बावजूद डेनमार्क में डेमोक्रेसी है और कोपेनहेगन स्थित संसद भवन से ही देश चलता है। 

अपने कोपेनहेगन दौरे में एक बार मुझे डेनमार्क के संसद भवन में जाने का मौक़ा मिला। बेहद पुराने भवन और इसके भव्य स्थापत्य को जिस तरह वहाँ की सरकार ने सहेज कर रखा है, वह बेमिसाल है। इसी तरह अमेरिकी कांग्रेस की बड़ी बिल्डिंग सन् 1800 में बनी थी। इसमें ‘हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव’ और सीनेट नामक दो चैंबर हैं।

इन तमाम देशों के संसदीय भवनों से कुछ कम सुंदर नहीं है अपनी मौजूदा पार्लियामेंट बिल्डिंग। ज़्यादा पुरानी भी नहीं है। इसकी क्षमता बढ़ाने के लिए संसद भवन और उसके ‘अनेक्सी’ परिसर मिलाकर कुल पाँच नये भवन बनाये जा चुके हैं, जिनमें एक पुस्तकालय-भवन अत्यंत सुंदर और भारी ख़र्च से बना था। जिस समय यह भवन बन रहा था, शिवसेना नेता और तत्कालीन लोकसभाध्यक्ष मनोहर जोशी ने सार्वजनिक तौर पर प्रस्तावित किया कि संसद भवन में जगह की कमी है और वास्तुदोष भी है, इसलिए नया संसद भवन बनना चाहिए। बात 2002 की है। उन्होंने बाक़ायदा एक वास्तु-विशेषज्ञ, किन्हीं बंसल साहब को अनुबंधित किया था।

बीजेपी नेता क्यों मानते हैं वास्तुदोष?

प्रधानमंत्री वाजपेयी की अगुवाई वाले एनडीए-1 सरकार के ज़माने में जोशी जी की अध्यक्षता के दौरान कई मौक़ों पर कहा गया कि वास्तुदोष के चलते ही एक लोकसभाध्यक्ष जीएम बालयोगी की हेलिकॉप्टर-क्रैश में मौत हो गई! 13 सांसद अकाल मौत मरे! संसद पर आतंकी हमला तक हो गया! कैसा शर्मनाक अंधविश्वास, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51-ए के भी ख़िलाफ़ है। उसी दौर से बीजेपी और शिवसेना के अनेक नेताओं के दिमाग़ में अक्सर नये संसद भवन का प्रस्ताव उमड़ता-घुमड़ता रहा है। ऐसे दलों के कुछ नेता यह भी कहते रहे हैं कि संसद भवन और आसपास के सरकारी भवनों, केंद्रीय सचिवालय आदि का स्थापत्य औपनिवेशिक या विदेशी है, इसलिए इनकी जगह हिन्दू-स्थापत्य आधारित भवन बनाये जाने चाहिए, जो वास्तुदोष से मुक्त हों, जिनमें ‘शुद्ध भारतीयता’ दिखे!

ताज़ा ख़बरें

संकीर्णता और अंधविश्वास भरी ऐसी बातों का समय-समय पर विरोध भी होता रहा। पूर्व लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और जनता दली शरद यादव जैसे नेताओं ने कई मौक़ों पर संसद के अंदर और बाहर इस तरह की संकीर्णताओं और अंधविश्वास आधारित तर्कों का जमकर विरोध किया। पर मोदी-शाह ज़माने में संसद की नई बिल्डिंग बनाने का फ़ैसला अब लिया जा चुका है। सरकार ने राजपथ से राजेंद्र प्रसाद रोड, मौलाना आज़ाद रोड और रायसीना रोड के आसपास अवस्थित कई सरकारी भवनों को तोड़कर नये सचिवालय भवन बनाने का फ़ैसला किया है। इस प्रक्रिया में ऐतिहासिक उद्योग भवन, निर्माण भवन, कृषि भवन और रेल भवन सहित ढेर सारी सरकारी इमारतों के गिराये जाने का प्रस्ताव शामिल है। नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक के बारे में ठोस तौर पर कुछ नहीं बताया गया है। जिन भवनों को गिराया जाना है, उनकी जगह ‘शुद्ध भारतीय स्थापत्य कला’ के आधार पर नये निर्माण किये जायेंगे।

इस विराट प्रोजेक्ट की डिज़ाइन आदि तैयार करने के लिए गुजरात की एक ऐसी कंपनी-एचसीपी को ठेका दिया गया है, जिसने हाल के दिनों में कुछ निर्माण कार्यों की डिज़ाइन तैयार की थी।

इनमें गुजरात के गाँधीनगर स्थित सेंट्रल विस्टा दिल्ली स्थित भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मुख्यालय, अहमदाबाद स्थित साबरमती रिवर फ़्रंट, और वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर इलाक़े के पुनरुद्धार प्रोजेक्ट प्रमुख बताये जाते हैं। एचसीपी के मालिक विमल पटेल हैं। कंपनी पर प्रोजेक्ट डिज़ाइन और कुल ख़र्च की अनुमानित राशि आदि तय करने की ज़िम्मेदारी है। फ़िलहाल इसे 229.75 करोड़ का कंसल्टेंसी शुल्क मिलेगा।

डेमोक्रेसी मरती रहेगी, बिल्डिंग चमकती रहेगी!

सवाल है- क्या नए चमकीले भवनों के निर्माण से हमारी डेमोक्रेसी चमकेगी या लोकतांत्रिक संविधान के तहत काम करने से? समाज को सुंदर और सुसंगत बनाने से डेमोक्रेसी का विस्तार होगा या आर्थिक मंदी के दौर में भारी फ़िज़ूलख़र्ची से? एक अनुमान के मुताबिक़ सेंट्रल विस्टा-नये सरकारी दफ़्तरों और नये संसदीय भवन के निर्माण के सारे प्रोजेक्ट पर अरबों का ख़र्च आएगा। इतनी भारी रक़म से देश को कम से कम 10 नये केंद्रीय विश्वविद्यालय, 10 नये ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज और दर्जनों अस्पताल बनाये जा सकते हैं। पर मोदी सरकार ने आनन-फानन में सेंट्रल विस्टा और नयी पार्लियामेंट बिल्डिंग बनाने के अपने फ़ैसले का एलान कर दिया है, जिस पर बेशुमार धन जाया किया जायेगा। सिर्फ़ अपनी पसंद की इमारत बनाने के लिए। डेमोक्रेसी मरती रहेगी पर शासकीय भवन और अफ़सरों के दफ़्तर चमकते रहेंगे। 

मोदी सरकार की इस महत्वाकांक्षी और बेहद ख़र्चीली परियोजना पर विपक्ष लगभग ख़ामोश है। केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने कहा है कि इस परियोजना के पूरी होने के बाद देश को एक ‘वर्ल्ड क्लास राजधानी’ मिलेगी। दिल्ली और देश भर के अस्पतालों में अपने इलाज के लिए भटकते, लुटते-पिटते लोगों, बाढ़-सुखाड़ से विस्थापित आम नागरिकों और प्रदूषण से तबाह होते दिल्ली सहित देश के अनेक शहरों-गाँवों के लाचार लोग सन् 2022-24 के बाद ‘लुटियन ज़ोन’ की जगह वजूद में आए ‘न्यू इंडिया’ के नवनिर्मित ‘कारपोरेट-हिन्दुत्व ज़ोन’ में आकर ‘अपने सपनों की नयी मायानगरी’ के दर्शन करेंगे।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
उर्मिेलेश

अपनी राय बतायें

सियासत से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें