लोकतांत्रिक होने के लिए उसमें हर एक वर्ग, जाति, समुदाय की मौजूदगी ज़रूरी है। लोकतांत्रिक होने की इस कसौटी पर भारतीय मीडिया खरा नहीं उतरता है क्योंकि इसमें वह विविधता नहीं है।
देश के 34 फ़िल्म-निर्माता संगठनों ने दो टीवी चैनलों और बेलगाम सोशल मीडिया के ख़िलाफ़ दिल्ली उच्च न्यायालय में मुक़दमा ठोक दिया है। यह देखना भी सरकार की ज़िम्मेदारी है कि कोई चैनल लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन न कर पाए और करे तो वह उसकी सज़ा भुगते।
क्या कोई टीवी देख किसी को जान से मार सकता है या जान से मारने की धमकी दे सकता है ? क्या कोई पुलिस कमिश्नर को भी धमकी दे सकता है ? आशुतोष के साथ चर्चा में आलोक जोशी, शाहिद सिद्दीक़ी और दीपक बाजपेयी।
एक एमबीबीएस का छात्र मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के परिवार को मैसेज भेजकर कमिश्नर को धमकी दे रहा था। पकड़े जाने पर छात्र ने कहा कि वह सुशांत सिंह राजपूत की मौत मामले में टीवी के कार्यक्रमों से प्रभावित था। क्या कुछ टीवी नफ़रत घोल रहा है?
खबरिया चैनलों के स्टूडियो में अदालतों का सजना और जांच एजेंसियों के आधिकारिक बयान आने से पहले अपने एजेंडे के मुताबिक़ बहुत कुछ फर्जी खबरें परोसना बदस्तूर जारी है।
सुदर्शन टीवी के 'यूपीएससी जिहाद' कार्यक्रम को लेकर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संदेश मीडिया में जाए कि किसी भी समुदाय को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए।
सुदर्शन न्यूज़ के जिस यूपीएससी जिहाद कार्यक्रम के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने 'मुसलिम समुदाय को बदनाम करने वाला' कहा था, आज उसी सुदर्शन न्यूज़ ने हलफ़नामा दाखिल कर कहा है कि वह खोजी पत्रकारिता कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘यूपीएससी जिहाद’ जैसे कार्यक्रम को विषैला क़रार दिए जाने के बाद अब दिल्ली हाईकोर्ट ने फिर एक बार टीवी न्यूज़ चैनलों को संयम बरतने की हिदायत दी है।
सुदर्शन टीवी के सांप्रदायिक और भड़काऊ कार्यक्रम पर रोक लगाने का निर्णय देने के साथ-साथ न्यूज़ सुप्रीम कोर्ट ने न्यूज़ चैनलों को सुधारने के लिए पाँच सदस्यीय कमेटी बनाने की बात कही है। लेकिन सवाल उठता है कि इस कमेटी में कितनी ताक़त होगी, इसमें कौन लोग होंगे और वे कैसे काम करेंगे? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट।
सुदर्शन टीवी और उसके मालिक/संपादक चव्हाणके पहली बार कड़ी न्यायिक स्क्रुटिनी के सामने आ पड़े हैं। संयोग से वह सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसी बेंच के सामने हैं जो प्रेस की आज़ादी और नागरिक की आज़ादी के सवाल पर बेहद तर्कसंगत रवैये के लिये विख्यात है। हाईकोर्ट से तो चव्हाणके केंद्र सरकार की खुली मदद के चलते बच निकले थे, विश्लेषण कर रहे हैं शीतल पी सिंह।
सुदर्शन टीवी के नौकरशाही जेहाद जैसे कार्यक्रम पर रोक सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी है। लेकिन जो टिप्पणियाँ की हैं वो बेलगाम टीवी चैनलों पर नकेल कसने की दिशा में बड़े कदम हो सकते हैं।
यूपीएससी जिहाद के प्रसारण पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाते हुए मीडिया की भूमिका, न्यूज़ चैनलों की टीआरपी, मीडिया ट्रायल जैसे तमाम मुद्दों पर प्रेस काउंसिल और एनबीए जैसी संस्थाओं को ख़ूब खरी-खरी सुनाई और बिना तथ्यों के किसी पर आरोप लगा कर छवि बिगाड़े जाने पर चिंता जताई।
रिया चक्रवर्ती के 'मीडिया ट्रायल' और 'विच हंट' के ख़िलाफ़ बॉलीवुड हस्तियों सहित 2500 से ज़्यादा लोगों और 60 से ज़्यादा संगठनों ने खुला ख़त लिखा है। उन्होंने कहा है कि 'रिया को फँसाओ' नाटक खेला जा रहा है।