महात्मा गाँधी सिनेमा को थोड़ी हिक़ारत की नज़र से देखते थे। यह बात मशहूर फ़िल्मकार और लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास को अखर गयी। उन्होंने 1939 में बापू को एक खुली चिट्ठी लिख डाली। पढ़ें पूरी चिट्ठी।
आज यानी 28 सितम्बर को शहीद-ए-आजम भगत सिंह की 113वीं जयंती है। उन्होंने कहा था क्रांति से हमारा अभिप्राय यह है कि वर्तमान व्यवस्था जो खुले तौर पर अन्याय पर टिकी हुई है, बदलनी चाहिए।
पेटीएम ऐप को गूगल प्ले स्टोर से हटा दिया गया है। गूगल ने कहा है कि पेटीएम ने गूगल की पॉलिसी के ख़िलाफ़ काम किया इसलिए ऐसा फ़ैसला लिया गया। बाद में इसे फिर से बहाल कर दिया गया।
'नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा' (एनएसडी) की तर्ज़ पर खोले गए इन स्कूलों में एक (भोपाल) में शिक्षण के लिए कोई फ़ैकल्टी (अध्यापक) नहीं है।धरने पर बैठे छात्रों में से 8 को बीते सोमवार 'स्कूल' से निष्कासित कर दिया गया है।
कृष्ण यानी हज़ारों वर्षों से व्यक्त-अव्यक्त रूप में भारतीय जनमानस में गहरे तक रचा-बसा एक कालजयी चरित्र, एक धीरोदात्त नायक, एक लीला-पुरुष, एक महान तत्वशास्त्री, एक आदर्श प्रेमी और सखा, एक महान विद्रोही, एक युगंधर… युगपुरुष।
नज़ीर अकबराबादी ने उर्दू और ब्रजभाषा में जो कुछ भी लिखा वह इतिहास की धरोहर है। कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर उनकी वह नज़्म नक़ल कर रहा हूँ जिसको मैं बहुत पसंद करता हूँ।
कहानीकार सुधांशु राय ने नई कहानी द किलर लिखी है। इस कहानी की शुरुआत डिटेक्टिव बूमराह के साथ होती है जो बनारस में बारिश के मौसम में इस 'किलर' की गुत्थी सुलझाने की जद्दोजहद में विलीन है।
यदि आपको एटीएम, लिफ्ट, एलिवेटर, दरवाज़े, खिड़कियों जैसी चीजों से कोरोना संक्रमण का ख़तरा है या इसकी आशंका है तो बेहतर है कि सीधे उन्हें नहीं छूआ जाए। इसके लिए 'आउट-की' उपकरण भी आ गया है।
मज़दूरों का एक आंदोलन जुलाई 1908 के दौरान मुंबई में हुआ था। यह एक राजनीतिक मज़दूर आंदोलन था। लेकिन यह आंदोलन तिलक के ‘केसरी’ समाचार पत्र की फ़ाइलों और इतिहास के दस्तावेज़ों तक में ही सिमट कर रह गया है।
अवैध खनन, जंगलों के कटने, बांधों के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले, साफ़ पानी और साफ़ हवा की माँग करने वालों पर पुलिस, भूमाफिया और सरकारी संरक्षण प्राप्त हत्यारे गोली चलाते हैं। यानी पर्यावरण संरक्षण भी जानलेवा साबित हो रहा है।
पुलवामा हमले के दिन जिम कार्बेट पार्क में प्रधानमंत्री मोदी की जिस शूटिंग को लेकर पूरे देश की राजनीति में तूफ़ान मचा था वह वीडियो अब बनकर तैयार हो गया है। कहीं फिर विवाद तो नहीं होगा?
कभी गंगा साफ़ हो पाएगी भी या नहीं? हर बार जिस तरह इसकी सफ़ाई करने की समय-सीमा बढ़ाई जा रही है, ऐसे में यह सवाल लाज़िमी है। गंगा की सफ़ाई की समय-सीमा को एक बार फिर से संशोधित किया गया है।
देश के अधिकतर हिस्सों में पीने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। ज़मीन बंजर होती जा रही है। प्रदूषण के कारण साँस लेना दूभर होता जा रहा है। इस पूरे बदलाव से कई प्रजातियाँ ग़ायब हो गई हैं। तो क्या एक दिन हम अपना अस्तित्व भी खो देंगे?
गंगा के प्रदूषित होने और इसके पानी में एंटीबायोटिक के होने के ख़तरे को लेकर स्थानीय वैज्ञानिक और शोधकर्ता चेताते रहे हैं, लेकिन हाल ही में आई एक अंतरराष्ट्रीय शोध की रिपोर्ट से सबक़ लेने की ज़रूरत है।