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युद्ध की तैयारियों में ज़ोर-शोर से लगने को चीनी सेना से क्यों कहा शी जिनपिंग ने?

चीनी राष्ट्रपति शी जिनिपंग ने अपनी सेना यानी पीपल्स लिबरेशन आर्मी से कहा है कि वह युद्ध की तैयारियों में और ज़ोर-शोर से लग जाए, सबसे ख़राब स्थिति की कल्पना करे और उसके लिए तैयार रहे और देश की संप्रभुता की मज़बूती से रक्षा करने के लिए कृत संकल्प रहे।
वह चीनी सेना आयोग के प्रमुख और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव भी हैं। चीनी राष्ट्रपति ने यह बातें ऐसे समय कही हैं जब भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों का जमावड़ा बढ़ गया है और इस वजह से तनाव भी है। 
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क्यों है सीमा विवाद?

बता दें कि चीन ने कई दशक पहले ही 1914 में भारत की ईस्ट इंडिया कंपनी और तत्कालीन चीनी शासक के बीच खींची गई मैकमोहन लाइन को सीमा रेखा मानने से इनकार कर दिया था। दोनों देशों के बीच निश्चित व आधिकारिक सीमा रेखा नहीं होने से वास्तविक नियंत्रण रेखा है, यानी जिसका जहाँ तक नियंत्रण है, वहाँ तक उसकी कब्जा है। यह वास्तविक नियंत्रण रेखा लगभग 3500 किलोमीटर लंबी है और बदलती रहती है। 
शी जिनपिंग के बयान को भारत में मौजूदा विवाद से जोड़ कर देखा जाना स्वाभाविक ही है। पर पर्यवेक्षकों का मानना है कि चीनी राष्ट्रपति का इशारा ताइवान और हांगकांग की ओर है।

क्या है ताइवान का मसला?

ताइवान एक टापू है जो पहले चीन का ही हिस्सा था, लेकिन 1949 में क्रांति के बाद जब तत्कालीन शासक च्यांग काई शेक भाग कर ताइवान चले गए तो उसे स्वतंत्र व अलग देश होने का एलान कर दिया। चीन ताइवान को अपना हिस्सा ही मानता है। 
बीते दिनों कोरोना संकट के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन में ताइवान को शामिल करने की बात कई देशों ने की। सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया ने यह बात कही, उसके बाद अमेरिका ने और फिर कुछ यूरोपीय देश यही बात कर रहे हैं। भारत इस पर अब तक चुप है। चीन ऐसी किसी मुहिम का ज़ोरदार विरोध करेगा, यह तय है।
शी जिनपिंग के बयान को इससे जोड़ कर देखा जाता है क्योंकि किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन में उसे शामिल करने को चीन अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है। एक तरह वे उन देशों को कड़ा संकेत दे रहे हैं जो ताइवान का समर्थन करने की बात कर रहे हैं।

हांगकांग में प्रदर्शन

इसी तरह प्रत्यावर्तन से जुड़े एक प्रस्तावित विधेयक को लेकर हांगकांग में लंबे समय से रह-रह कर ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। चीनी संसद पीपल्स नेशनल कांग्रेस की बैठक चल रही है। इसकी संभावना है कि इस प्रत्यवर्तन से जुड़े किसी विधेयक को इसमें पेश किया जाए या इस पर कोई बहस हो। इसके मद्देनज़र हांगकांग में विरोध प्रर्दशन की तैयारी एक बार फिर से चल रही है।
चीनी राष्ट्रपति का इशारा उन प्रदर्शनकारियों की ओर तो है ही, वह ब्रिटेन और अमेरिका को भी संकेत दे रहे हैं जो हांगकांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात करते रहते हैं।

लद्दाख का मौजूदा संकट

जहाँ तक लद्दाख में मौजूदा तनाव की बात है, विशेषज्ञों का मानना है कि यह कोई दुर्घटनावश नहीं है, चीन की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। वह इस इलाक़े में अपनी धमक कायम रखना चाहता है और भारत को चेतावनी भी देना चाहता है। 
सरकारी नियंत्रण में काम करने वाली पत्रिका ‘ग्लोबल टाइम्स’ में चेंगदू इंस्टीच्यूट ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स के अध्यक्ष लांग शिंगचुआन ने एक अहम लेख लिखा और उसमें भारत पर आरोप लगाए। इसे चीन की आधिकारिक लाइन मानना चाहिए। 

क्या है चीन की लाइन?

इस लेख में कहा गया है कि ‘भारत बार बार गलवान घाटी क्षेत्र और को पार कर चीनी सीमा में दाखिल होता रहा है। भारतीय सैनिकों ने जानबूझ कर चीनी सैनिकों को भड़काया है।’ लांग शिंगचुआन इसके आगे लिखते हैं,

‘यदि भारत ने इस तरह के भड़काऊ क्रिया कलाप को जल्दी नहीं रोका तो दिल्ली के साथ बीजिंग के रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं और मामला डोकलाम के आगे जा सकता है।’


लांग शिंगचुआन, अध्यक्ष, चेंगदू इंस्टीच्यूट ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स

लेकिन, इसके उलट भारत ने कहा है कि चीनी सेना भारतीय सैनिकों को अपने इलाक़े की सामान्य गश्त नहीं करने दे रहा है, उसमें अड़चन डाल रहा है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने एक ऑनलाइन प्रेस ब्रीफिंग में कहा, ‘यह सच नहीं है कि भारत के सैनिकों ने पश्चिमी सेक्टर या सिक्किम सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार कोई गतिविधि की है। भारतीय सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं और हर हाल में इसका सम्मान करते हैं।’
बता दें कि उत्तराखंड और उत्तरी सिक्किम में भारत और चीन को अलग करने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के दोनों तरफ सैनिकों का भारी जमावड़ा हो गया है। भारत और चीन के सैनिक बिल्कुल एक दूसरे की आँखों में आँख डाले खड़े ही नहीं है, बल्कि बीते हफ़्तों दोनों में एक बार गुत्थमगुत्था भी हुई थी। 
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प्रमोद मल्लिक

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