बात 1958 की है। एक प्रसिद्ध अमेरिकी गायक थे, पीटर यारो। उन्होंने अपने विश्व प्रसिद्ध लोकप्रिय बैंड ‘पीटर, पॉल एंड मेरी’ की स्थापना से पहले एक गीत 'पफ द मैजिक ड्रैगन' लिखा था। इस गाने के रिलीज़ होने के साथ ही यह अफवाह उड़ी कि यह गीत ड्रग्स, विशेषकर ‘मारियुआना’ को महिमामंडित करता हैं। ‘पफ’ का हिंदी में अर्थ होता है- कश लेना। जैसे, सिगरेट या गाँजे कश लेना आदि। इस ‘पफ’ शब्द ने दुनिया भर में गजब की अफवाह फैलाई।
सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग जैसे देशों ने इस गाने पर नशाखोरी को बढ़ावा देने का आरोप चस्पा कर प्रतिबंधित कर दिया, जबकि वास्तविकता यह थी कि यह गीत बच्चों के लिए लिखा गया था। वस्तुत: इस गीत का मारियुआना से कोई लेना-देना ही नहीं था। यह गीत मूलतः ओग्डेन नैश की एक कविता से प्रेरित था, जो बचपन की मासूमियत के क्षरण को बहुत ही प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करता था। पीटर यारो के बैंड ने अपने ‘मूविंग’ नामक अल्बम में इस गीत को यह सोचते हुए शामिल किया था कि बच्चों के गीत को शामिल करना एक अच्छी पहल हो सकती है।
भारत में पिछले कुछ सप्ताहों से सुशांत सिंह की आत्महत्या का मामला सुर्ख़ियों में है। बेहद ही कमज़ोर साक्ष्यों या यूँ कहें कि पूरी तरह से असम्बद्ध प्रमाणों के आधार पर दिवंगत कलाकार की प्रेमिका रिया चक्रवर्ती को गिरफ़्तार कर लिया गया है।
सबूत क्या है?
रिया चक्रवर्ती पर आरोप है कि उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत के लिए न सिर्फ मारियुआना की खरीद की, बल्कि खुद भी इसका सेवन किया। चक्रवर्ती की गिरफ़्तारी के पहले तीन दिनों तक सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रतिदिन आठ घन्टे गहन पूछताछ की गई और फिर अपुष्ट आरोपों के आधार पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। उन पर आरोपों के प्रमाण के रूप में पुलिस के पास एक वॉट्सएप संदेश हैं जो कथित तौर पर रिया चक्रवर्ती द्वारा मारियुआना की खरीद और खपत से सम्बंधित एक बातचीत का हिस्सा है। रिया चक्रवर्ती की गिरफ़्तारी से पहले देश के कई राष्ट्रीय टीवी समाचार चैनल ‘#ArrestRhea’ जैसे हैशटैग के साथ उसकी गिरफ़्तारी के लिए पुलिस पर दबाव बना रहे थे। दरअसल, ये टीवी समाचार चैनल सुबह से लेकर देर रात तक अपने कार्यक्रमों में उस वॉट्सऐप चैट को बड़े पैमाने पर साजिशों के प्रमाण रूप में प्रचारित करते हुए चुनिन्दा राजनीतिक विश्लेषकों के सहयोग से एक देशव्यापी विरोध का माहौल बना रहे थे।
टीवी चैनलों से कठोर पत्रकारिता मानकों का पालन करने की उम्मीद करना बेमानी है। पर एक बात जो बेहद अजीब है, वह है, इन समाचार चैनलों, उनके समीक्षकों और उनके आक्रमक समाचार संचालन के त्रिकोण को मिलने वाला भारी जन समर्थन।
ख़तरे की घंटी
अगर रिया चक्रवर्ती को कमज़ोर और अपुष्ट साक्ष्यों तथा समाचार मीडिया के एक समूह के दबाव में गिरफ़्तार किया जा सकता है तो यह आम जनता के लिए भी अच्छी ख़बर नहीं है। वक़्त आ गया है जब प्रत्येक माता-पिता को अपने कॉलेज जाने वाले बच्चों और यहां तक कि खुद के बारे में भी गंभीरता से सोचना चाहिए। क्योंकि, राज्य और उसके अनौपचारिक एजेंटों की कोप दृष्टि कभी भी, किसी पर भी पड़ सकती है, और बिना सबूत के गिरफ़्तारी हो सकती है। रिया चक्रवर्ती के ख़िलाफ़ लगे आरोपों की जाँच अभी न्यायालयों में होनी बाकी है। किन्तु उसपर लगे आरोपों का परीक्षण हमारे टेलीविजन स्क्रीन पर पहले ही हो चुका है और उसे दोषी क़रार दिया जा चुका है। इस मामले में मेरा डर यह है कि इन टेलीविजन पर हुए मीडिया ट्रायल के बाद जाँच में लगे अधिकारीयों के लिए अभियुक्तों को धमकाना और उनसे धन की उगाही करना आसान हो जायेगा। इसके अलावा, सरकार और समाचार मीडिया के इकबाल और धमक में ख़तरनाक रूप से इजाफ़ा भी हो जायेगा।
मीडिया का ख़ौफ़
आप कह सकते हैं कि मीडिया ट्रायल से डरने की ज़रूरत नहीं है। आप यह भी कह सकते हैं कि आप और आपके बच्चे इस तरह के किसी भी जाँच के लिए हमेशा तैयार हैं। अगर बात सिर्फ मारियुआना की हो तो आप सही हो सकते हैं। लेकिन क्या आपको यकीन है, ये समाचार चैनल आपको किसी दूसरे मामले में नहीं घसीट सकते? भारत में पोर्नोग्राफी पर तकनीकी रूप से प्रतिबंध है। हालाँकि, आँकड़ों के अनुसार, भारत विश्व में अश्लील सामग्री की खपत के मामले में अग्रणी देश है। यह एक ऐसा देश है, जहाँ के लगभग 89% लोग अपने फ़ोन पर ग़ैरक़ानूनी अश्लील सामग्री देखते हैं। पिछले दिनों जिस प्रकार लोगों के निजी वार्तालापों को टीवी स्क्रीन पर सार्वजनिक किया गया अगर वह आपके साथ भी ऐसा ही बर्ताव करें तो आप कैसा महसूस करेंगे?
अगर इन्टरनेट पर आपके द्वारा दिन भर खोजी गई सामग्रियों की लिस्ट को सार्वजनिक कर दिया जाय तो आप कैसा महसूस करेंगे? भारतीय सामाजिक परिवेश में क्या कई लोगों के लिए समाज और परिवार के सामने सर उठा कर खड़ा हो पाना मुश्किल नहीं हो जायेगा?
अलग-अलग क़ानून
शासक और शासित के लिए शासन के नियम अलग-अलग होते हैं। जरा लक्ष्मण सवदी और सी. सी. पाटिल के मामलों को याद करें। ये दोनों बीजेपी के मंत्री राज्य विधानसभा के अंदर पोर्न देखते हुए पकड़े गए थे। ड्रग्स के इस्तेमाल, वितरण और बिक्री के मामले में शायद ही कभी शक्तिशाली को सज़ा दी गई हो। ड्रग के मामले में अधिकतर गिरफ़्तारियों का छात्रों, छोटे-मोटे विक्रेताओं और कमज़ोर प्यादों की होती है और शायद ही कभी बड़े नेता और मीडिया मुग़ल कानून के चंगुल में आते हों। ‘विधि’ नामक एक थिंकटैंक द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, 2016 में मुंबई में 60.60 करोड़ रुपयों की नशीली दवाइयाँ और नशे के अन्य सामान पकड़े गए थे। जब्त प्रतिबंधित सामानों में लगभग, 6.2 करोड़ रूपये का भांग था। लेकिन, दिलचस्प रूप से 87% गिरफ़्तारियाँ और सजायें सिर्फ भांग के मामले में हुईं और अन्य ड्रग्स के मामलों में सिर्फ 13%।
हेरोइन, अफीम, हशीश जैसी महँगी चीजों के व्यापारी बड़ी आसानी से क़ानून की दरार से निकल गए और मामूली भांग बेचने वालों को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। संसद में भांग के उपयोग को विनियमित करने वाला एक विधेयक लंबित है।
निशाने पर कौन?
हेरोइन जैसी ख़तरनाक नशे की दवाओं के तस्करों के साथ नेताओं की सांठगांठ जग जाहिर है। ये रिश्ता सिर्फ खपत ही नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर इनकी ‘बिक्री’ और ‘वितरण’ से जुड़ा हुआ भी है। लेकिन, हास्यास्पद रूप से फिलहाल हमारा सारा ध्यान तथाकथित रूप से मारियुअना का सेवन करने वाली 28 वर्षीय महिला पर है। कुछ इस तरह जैसे उसके जेल जाते ही देश से नशे का कारोबार बंद हो जायेगा। आँकडें बताते हैं कि भारत में नशीली दवाओं की युवाओं में बढ़ती खपत की सबसे बड़ी वजह बेरोज़गारी है। फ़िलहाल, घटते रोजगार सृजन के अवसर और बढ़ती बेरोज़गारी दर के आकड़ें शर्मसार करने वाले हैं। समाचार पत्र ‘मिंट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश का हायरिंग सेंटिमेंट अपने 15 सालों के सबसे निम्न स्तर पर है। अर्थात नौकरी देने वाली कंपनियों का मनोबल डावांडोल है और वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
मीडिया की भूमिका
ऐसी विकट स्थिति में उम्मीद की जाती है कि समाचार मीडिया बेरोज़गारी, ग़रीबी और इसके जैसे ही अन्य जनहित के मुद्दों पर रिपोर्टिंग करेगा। किन्तु, वह अपना अधिकांश समय व्यर्थ और ग़ैरज़रूरी मनोरंजक समाचारों पर व्यय कर रहा है।इस सारे प्रकरण में एक चीज स्पष्ट है कि हम भारतीय एक ऐसे शासन व्यवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं, जहाँ ‘कानून के राज’ पर ‘राजनीतिक-अजेंडा’ हावी होता जा रहा है। उदाहरण के लिए, हालांकि कंगना रनौत का मुंबई पर पाक अधिकृत कश्मीर वाला बयान हास्यास्पद हैं, किन्तु उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में इसी तरह के बयान देने पर ‘देशद्रोह’ के आरोप लग सकते है।
राजनीतिक अजेंडा
आगे बढ़ने का एकमात्र सही तरीका निश्चित रूप यही है कि उन सभी घटनाओं और परिस्थितियों को नियंत्रित और हतोत्साहित करना जहाँ ‘कानून के शासन’ के ऊपर ‘राजनीतिक एजेंडा’ के हावी होने की आशंका हो। अफ़सोस की बात है कि टीवी समाचार जगत की वर्तमान स्थिति बेहद चिंताजनक है। ऐसे में क़ानून के राज के लक्ष्य प्राप्त करने में लंबा समय लग सकता है। इसलिए तब तक, कृपया सुनिश्चित करें कि आप अपनी कार स्टीरियो या सार्वजनिक रूप से 'पफ द मैजिक ड्रैगन' जैसे गीत नहीं सुन रहे हैं। कौन जाने किस बात का कौन कब और क्या मतलब निकाल ले और आप भी किसी राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिये बलि का बकरा बना दिए जायें।
(भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी डॉ. अजय कुमार आम आदमी पार्टी से जुड़े हुए हैं। वे समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।)
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