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‘झूठे’ जश्न में डूबी रही मोदी सरकार, हैरान-परेशान रहे लोग

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के 5 साल इतनी तेज़ी से बीत गए कि पता ही न चला। लगातार उत्साह बना रहा। सरकार के समर्थक जश्न मनाते रहे, वहीं सरकार विरोधी और पीड़ित विरोध करते रहे। ऐसे में मोदी सरकार के उत्साह के 13 प्रमुख कार्यों को याद किया जा सकता है, जिसमें देश व्यस्त रहा।
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गोरक्षाः सरकार के सत्ता में आते ही देश भर में गोरक्षा की बहार आ गई। गुजरात में मरी हुई गाय उठाने वाले दलितों की बांध कर पिटाई की गई। वहीं दलितों की देश भर में छोटी-मोटी पिटाइयाँ जारी रहीं, जिनका मीडिया और सोशल मीडिया ने संज्ञान भी नहीं लिया। उत्तर प्रदेश के नोएडा में अखलाक की हत्या इस आरोप में कर दी गई कि उसके फ्रिज में कथित तौर पर गोमांस रखा हुआ था। हालांकि गाय पालने वालों ने इस दौरान गाय खरीदना, बेचना बंद कर दिया। उसकी जगह लोग भैंस पालने लगे। लावारिस गायें, बैल व बछड़े जब किसानों के लिए भयानक समस्या बन गए, तब भाजपा समर्थकों में गोरक्षा का उत्साह थोड़ा ढीला पड़ा। 
भारतीय संस्कृति की रक्षाः भारत की संस्कृति की रक्षा के नाम पर तमाम लेखकों, अध्यापकों, बुद्धिजीवियों को निशाने पर लिया गया। इसके अलावा कुछ लेखकों, साहित्यकारों, अध्यापकों की पिटाई, हत्या का मामला गरम रहा। 'पुरस्कार वापसी गैंग' कहने का जश्न भी चला।
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भारत के टुकड़े-टुकड़ेः जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्ला इंशा अल्ला' नारे लगे, ऐसा एक समाचार चैनल ने चलाया। इसका जश्न करीब 6 महीने चला। न्यायालय, पुलिस ने इस मामले की सुनवाई की। देश में दो पक्ष बन गया। जिसने मामले पर संदेह किया, उसे 'देशद्रोही', 'टुकड़े टुकड़े गैंग का सदस्य' कहा जाता रहा।।
भाजपा के प्रवक्ता ललकारते रहे कि भारत के टुकड़े करने का सपना देखने वालों को इस देश में रहने का कोई हक़ नहीं है। इसका जश्न भरपूर चला और अभी भी दूर दराज के गांवों तक यह फैला हुआ है कि जेएनयू में कोई है, जो भारत के टुकड़े-टुकड़े करना चाहता है, और मोदी जी टुकड़े-टुकड़े होने से बचाए हुए हैं।
आतंकवादी हमलाः मोदी सरकार के कार्यकाल में दर्जन भर से ज्यादा आतंकवादी हमले हुए। पठानकोट में तो एयरफोर्स के बेसकैंप में घुस कर आतंकवादियों ने तांडव किया। भाजपा ने उसका भी भरपूर जश्न मनाया। सरकार समर्थकों ने उसके लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को दोषी करार दिया। इस मामले में दो 'सर्जिकल स्ट्राइक' का भी सरकार ने भरपूर प्रचार किया और बड़े पैमाने पर लोगों को इस चर्चा में उलझाए रखा। यह भी करीब करीब 5 साल समय-समय पर चलता रहा, जो चुनाव के ऐन पहले पुलुवामा तक चला और अभी भी जारी है। 
Narendra Modi period to be known for squandering time - Satya Hindi
नोटबंदीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उत्सव का मोर्चा ख़ुद संभाला। 8 नवंबर 2016 की शाम करीब 8 बजे मोदी ने नोटबंदी का ऐलान  किया और कहा कि 12 बजे रात के बाद 500 और 1,000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। इसके पीछे तर्क दिया गया कि इससे काला धन खत्म हो जाएगा। सरकार के सलाहकारों ने तरह-तरह के अनुमान दिए कि इससे अर्थव्यवस्था में एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर नोट आ सकती है, जो जाली नोट और काले धन के रूप में है। जब नोट बदलने के लिए लंबी लाइनें लगने लगीं तो प्रधानमंत्री ने भावुक अपील की कि जल्द ही इसकी तक़लीफ़ दूर हो जाएगी। 
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने घोषणा की कि नोटबंदी से वेश्यावृत्ति और देह व्यापार कम हो गया है। सरकार ने तो यहाँ तक दावा किया कि नोटबंदी से नक्सलवाद और कश्मीर में आतंकवाद भी ख़त्म हो जाएगा।
आम लोगों के साथ नोटबंदी का जश्न समाचार चैनलों ने भी खूब मनाया। कुछ चैनलों ने दिखाया कि मोदी की 2,000 रुपये की नोट में माइक्रोचिप है, अगर उसे कहीं बड़े पैमाने पर जमा किया जाएगा तो सरकार अपने ट्रांसमीटर से पकड़ सकेगी कि काला धन कहां जमा है। बंकरों के ग्राफिक्स चैनलों में चले, जिसमें यह बताया गया कि कितने मोटे बंकर में छिपाने पर भी 2,000 रुपये की नोट सिग्नल देने लगेंगे। आम लोगों को लगा कि उनके पास पड़ोस में जितने अमीर लोग हैं, उन सबके नोट बर्बाद हो गए। इसी खुशी के बीच उत्तर प्रदेश जैसा महत्त्वपूर्ण राज्य भाजपा प्रचंड बहुमत से जीतने में कामयाब रही।
जियो का आगमनः सरकार ने मोबाइल क्षेत्र में जियो को एंट्री दी। 4जी डेटा से कॉलिंग की सुविधा और अन्य कंपनियों से इंटरकनेक्टिवटी की मुफ़्त सुविधा देकर सरकार ने जियो को फलने-फूलने का मौका दिया। इस दौरान चीन की तमाम कंपनियाँ भारत के बाज़ार पर छा गईं। लावा, माइक्रोमैक्स जैसे स्वदेशी असेंबलरों और भारत में मोबाइल विनिर्माण करने वाली सैमसंग जैसी कंपनियों का कारोबार चौपट हो गया। सस्ते चीनी मोबाइल और रिलायंस के फ्री के डेटा ने करीब 6 महीने तक लोगों के बीच उत्सव का माहौल बनाए रखा। 
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जनधन खाताः सरकार ने इसका जश्न भी खूब मनाया। मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में समावेशी विकास की योजना बनी, जिसमें महाजनी को ख़त्म करने, लोगों को बैंकिंग से जोड़ने की क़वायद शुरू की गई। सरकार ने जनधन खाते का जश्न मनाना शुरू किया। 
दूर-दराज के गांवों में लोगों ने बड़े उत्साह के साथ खाते खुलवाए। करीब 6 महीने तक इसका जश्न चला। तमाम लोगों को यह भी उम्मीद जगी कि इसी खाते में वे 15 लाख रुपये आएंगे, जो मोदी ने सबके खातों में डालने की बात चुनावी सभा में कही थी।
आधार योजनाः यूनीक आइडेंटीफिकेशन नबंर की शुरुआत भी मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में हुई थी। इस व्यवस्था के तहत सरकार को हर देशवासी के फिंगर प्रिंट लेकर यूआईडी देना था। यूआईडी बनवाने का ही जश्न नहीं मना, बल्कि सब्सिडी, बैंक खाते, पैन नंबर से यूआईडी को जोड़ने में देश की आबादी करीब साल भर तक व्यस्त रही।
ऐप का जश्नः पेटीएम सहित तमाम भुगतान ऐप, ओला-उबर ऐप, खाने के ऐप सहित तरह तरह के ऐप आए। मध्य वर्ग इस ऐप का जश्न मनाता रहा। लंबे समय तक यह उत्साह चला। अपने खाते में से ऐप में पैसे डालें, फिर ऐप से भुगतान करें। ऐप से भुगतान पर कैश बैक पाएँ। कैश बैक के चक्कर में लोग घनचक्कर बने रहे। सरकार ने यह भी नहीं सोचने दिया कि ऐप में पैसे ट्रांसफर करने और उससे तत्काल भुगतान कर देने से कैश बैक कैसे मिल रहा है। ऐप से क्या फ़ायदे और क्या नुकसान हैं। तकनीक ने लोगों की जिंदगी आसान की। सरकार ने इसे भी जश्न में तब्दील कर दिया।
विश्वविद्यालयों में स्कॉलरशिपः शोध छात्रों ने स्कॉलरशिप बढ़ाए जाने के लिए आंदोलन चलाया। इस बीच हैदराबाद विश्वविद्यालय ने भाजपा की छात्र इकाई से जुड़े एबीवीपी के विद्यार्थियों की पिटाई के आरोपों के बाद रोहित वेमुला नाम के एक दलित छात्र को विश्वविद्यालय से बदर कर दिया। उसने लंबे समय तक खुले आसमान के नीचे धरना दिया और आखिरकार उसने एक सुसाइड नोट लिखकर आत्महत्या कर ली। यह आंदोलन करीब 6 महीने तक चला।
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रोहित वेमुला
अनुसूचित जाति ऐक्टः हालांकि इस अधिनियम को कमज़ोर करने वाला फ़ैसला न्यायालय ने दिया था, लेकिन सरकार ने इसका भी भरपूर जश्न मनाया। संसद से लेकर सड़क तक सरकार कहती रही कि वह कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं है। लेकिन इस दिशा में कोई कदम न उठाकर लोगों को भरपूर इंज्वाय का मौका दिया। सरकार के समर्थक इस मसले पर न्यायालय के फैसले की प्रशंसा करते रहे। वहीं तमाम मानवाधिकारवादी और दलित संगठन इसे लेकर आक्रोषित हुए।  
अनुसूचित जाति एक्ट पर बग़ैर किसी राजनीतिक आह्वान के देशव्यापी बंद हुआ। जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें थीं, आंदोलनकारियों की भरपूर पिटाई हुई। उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर नेता बनकर उभरे, जिनके ऊपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई हुई। राजद्रोह का मुकदमा लगाया गया।
विश्वविद्यालयों में ओबीसी आरक्षणः इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विभागवार रोस्टर के फ़ैसले के बाद केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने आनन फानन में नए नियम बना दिए। विश्वविद्यालयों और अन्य कॉलेजों में इसके बाद धड़ाधड़ नियुक्तियां आने लगीं। नई व्यवस्था के तहत रिक्तियों में ओबीसी, एससी, एसटी के लिए कोई जगह नहीं निकलती थी। इसके लिए संसद से लेकर सड़क तक आंदोलन चला। सरकार अपनी बाजीगरी करती रही कि उच्चतम न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर किया जाएगा। वंचित तबके के साथ कोई अन्याय नहीं होगा। बहरहाल सरकार ने इस मामले को करीब एक साल खींचे रखा। उसके बाद केंद्र ने इस मामले में अध्यादेश लाकर विश्वविद्यालय स्तर पर रोस्टर देने की व्यवस्था को बहाल किया।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) इसका जश्न भी खूब चला। कारोबारी से लेकर आम लोग तक जीएसटी की गणना करते रहे। कारोबारी जहां जीएसटीएन, विभिन्न प्रकार के प्रारूप को लेकर व्यस्त रहे, वहीं आम लोग यह गुणा गणित करने में व्यस्त रहे कि किस सामान पर कितना कर लगा और सरकार ने सामान कितना सस्ता और महंगा कर दिया है। फलाँ सामान का कर बढ़ा, फलाँ पर घटा, यह मसला उत्सव बनाए रखने में कामयाब रहा।
सरकार के इन कार्यों की वजह से लोगों को रोजी-रोजगार, बढ़ी फीस, बेरोज़गारी, वेतन, भुखमरी, जीवन स्तर, विदेश से जुड़ी समस्याएं, खेती-किसानी का हाल, लगातार दो साल पड़े सूखे इत्यादि पर बात करने का मौका नहीं मिला। सरकार समर्थक और सरकार विरोधी दोनों पक्षों को लगता है कि जैसे अभी अभी मोदी सरकार बनी है।
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प्रीति सिंह

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