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प्रशांत किशोर ने क्या वाक़ई मान लिया है कि बीजेपी जीत रही है?

क्या टीएमसी के लिए चुनावी रणनीति का काम कर रहे प्रशांत किशोर बीजेपी की जीत की बात कह सकते हैं? वह भी तब जब उन्होंने अपने करियर को दाँव पर लगाकर कह दिया है कि बंगाल में बीजेपी को दो अंकों से ज़्यादा सीट आने पर वह अपने पेशा छोड़ देंगे? फिर प्रशांत किशोर के क्लबहाउस ऐप साक्षात्कार पर विवाद क्यों?
नीरेंद्र नागर

तृणमूल कांग्रेस की चुनावी रणनीति तय करने वाले प्रशांत किशोर का एक ऑडियो क्लिप सामने आया है जिसके बारे में बीजेपी द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि इस क्लिप में उन्होंने मान लिया है कि बीजेपी बंगाल में सत्तारूढ़ होने जा रही है।

क्या यह बात सही है? इस लेख में हम इसी की जाँच करेंगे। हम बताएँगे कि प्रशांत किशोर ने ठीक-ठीक क्या कहा। लेकिन उससे पहले हम यह जानेंगे कि उन्होंने जो कुछ कहा, वह किन सवालों के जवाब में कहा।

जिन्हें मालूम न हो, उन्हें बता दूँ कि प्रशांत किशोर क्लबहाउस नामक चैटिंग ऐप के ज़रिए कुछ पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे और उनके सवालों के जवाब दे रहे थे। इसी बातचीत में उनसे पूछा गया था कि 1. बीजेपी को बंगाल में जो 40% वोट मिलते दिख रहे हैं, वे कहाँ से मिल रहे हैं और 2. ऐसी धारणा क्यों फैली हुई है कि बीजेपी इस चुनाव में विजयी होने जा रही है?

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आइए, देखें कि प्रशांत किशोर ने पहले सवाल के जवाब में क्या कहा

‘(बीजेपी को) जो वोट मिल रहा है, वह है मोदी के नाम पर, हिंदू होने के नाम पर। ध्रुवीकरण, मोदी, दलित, हिंदीभाषी - ये कारण हैं। मोदी यहाँ लोकप्रिय हैं। हिंदीभाषियों के 1 करोड़ से ज़्यादा वोट हैं। दलित 27% हैं और वे पूरी तरह बीजेपी के साथ हैं। इसके साथ ही ध्रुवीकरण तो है ही निश्चित तौर पर।

मतुआ (भी) बड़ी तादाद में बीजेपी के पक्ष में वोट करेंगे हालाँकि उस तरह एकतरफ़ा नहीं जैसे लोकसभा में किया था। मुझे लगता है कि 75 (प्रतिशत) बीजेपी और 25 (प्रतिशत) तृणमूल।'

एक वाक्य में कहें तो प्रशांत किशोर के अनुसार ध्रुवीकरण, ममता सरकार के प्रति नाराज़गी और दलित वोट - ये तीन कारक हैं जो बीजेपी के पक्ष में काम कर रहे हैं।

आपने ऊपर की बातचीत पढ़ी। क्या इसमें कहीं भी प्रशांत किशोर यह कह रहे हैं कि बीजेपी तृणमूल पर हावी हो रही है? उन्होंने तो बस यह कहा था कि वे कौन-कौन समुदाय हैं जो इस बार बीजेपी के पक्ष में वोट करते दिख रहे हैं और कौन-कौनसे कारण हैं जो बीजेपी को फ़ायदा पहुँचा रहे हैं? और यह भी उन्होंने इसलिए कहा कि उनसे यह पूछा गया था।

प्रशांत किशोर की इस बात को आप क्रिकेट के खेल से समझिए। मान लें कि भारत और ऑस्ट्रेलिया की टीमें आपस में खेलने जा रही हैं। अगर कोई पत्रकार मैच से एक दिन पहले भारतीय टीम के कोच या कप्तान से पूछे कि ऑस्ट्रेलिया की टीम की स्ट्रेंग्थ क्या है और वह ईमानदारी से कहे कि फलाँ-फलाँ बैट्समन और फलाँ-फलाँ बोलर उसकी ताक़त है तो क्या यह माना जाए कि भारतीय कप्तान या कोच ने खेल से पहले ही अपनी हार मान ली? नहीं। 

प्रशांत किशोर ने भी वही बातें बताई हैं जो बीजेपी को मज़बूत कर रहे हैं। लेकिन वह तृणमूल से ज़्यादा मज़बूत हो गई है, यह तो उन्होंने नहीं कहा। कहा क्या?

आपमें से कुछ पाठक यहाँ मुझे टोक सकते हैं कि मैं प्रशांत किशोर की उस बात को भूल रहा हूँ जहाँ वे कहते हैं कि उनके सर्वे में भी यह बात सामने आई है कि बीजेपी जीत रही है।

जी नहीं, मैं बिल्कुल भूल नहीं रहा हूँ। मैं अब उसी पर आ रहा हूँ। लेकिन पहले वह सवाल दोहरा दें जिसकी प्रतिक्रिया में यह जवाब दिया गया था और फिर यह जानें कि उन्होंने वास्तव में क्या कहा था।

सवाल था - ऐसी ‘धारणा’ क्यों फैली हुई है कि बीजेपी इस चुनाव में विजयी होने जा रही है? इसके जवाब में प्रशांत किशोर ने कहा कि उनके सर्वे से भी यह साबित हुआ है कि लोगों में यह ‘धारणा' है कि बीजेपी सत्ता में आ रही है।

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‘धारणा' शब्द पर ध्यान दीजिए। वे यह नहीं कह रहे कि बीजेपी सत्ता में आ रही है। वे कह रहे हैं कि लोगों में धारणा है कि बीजेपी सत्ता में आ रही है। आगे वे यह समझाते भी हैं कि अधिकांश लोगों में यह धारणा क्यों है।

वे कहते हैं,

‘हम सर्वे करते हैं यह पूछते हुए कि आप किसको वोट देंगे और सरकार किसकी बनेगी। इस सवाल के जवाब में कि सरकार किसकी बनेगी, व्यापक धारणा यही है कि बीजेपी की सरकार बनेगी। हमने इसका विश्लेषण किया कि ऐसा क्यों है। कारण यह कि जो बीजेपी के वोटर हैं, वे तो कहेंगे ही कि बीजेपी की सरकार आएगी। लेफ़्ट के भी जो 15% वोटर हैं, उनमें से दो-तिहाई वोटर मानते हैं कि बीजेपी सत्ता में आ रही है। इसलिए बहुमत हमेशा यह कहता दिखेगा कि बीजेपी सत्ता में आ रही है। यह धारणा की बात है।’

प्रशांत किशोर की इस बात को सी-वोटर के अंतिम सर्वे से समझिए। उस सर्वे के अनुसार बीजेपी के पक्ष में 37% और तृणमूल के पक्ष में 42% वोट पड़ते दिख रहे थे। संयुक्त मोर्चा के पक्ष में 13% वोटर थे। इस नतीजे से सी-वोटर ने क्या निष्कर्ष निकाला - यही कि तृणमूल कांग्रेस 160 सीटें लेकर सरकार बना रही है।

अब ज़रा देखते हैं कि अगर इन्हीं लोगों से पूछा जाता कि आपको क्या ‘लगता’ है, सरकार किसकी बन रही है तो प्रशांत किशोर के फ़ॉर्म्युले के मुताबिक़ क्या नतीजा आता।

37% बीजेपी समर्थक कहते - बीजेपी की। संयुक्त मोर्चा के 13% समर्थकों में से दो-तिहाई यानी क़रीब 9% भी कहते कि बीजेपी की सरकार बन रही है। उधर 42% तृणमूल वोटर कहते कि ममता की सरकार बन रही है। यह संख्या ज़्यादा भी हो सकती है अगर तृणमूल के भी कुछ समर्थक यह समझते हों कि बीजेपी ही सत्ता में आ रही है। नीचे इसका समीकरण देखते हैं जिसमें हमने तृणमूल के उन लोगों को जो मानते हैं कि बीजेपी सरकार बना सकती है, प्रश्नवाचक चिह् के रूप में दिखाया है -

बीजेपी की सरकार बन रही है - 37+9+?=46% या उससे भी ज़्यादा।

टीएमसी की सरकार बन रही है - 42%-?=42% या उससे भी कम।

हर हालत में हम देखते हैं कि बहुमत ‘मान’ रहा है कि बीजेपी की सरकार बन रही है। लेकिन क्या इस 'मानने' से ही बीजेपी की सरकार बन जाएगी? नहीं बनेगी, क्योंकि जो 46%+ लोग मान रहे हैं कि बीजेपी की सरकार बन रही है, वे सारे के सारे यानी 46%+ बीजेपी को वोट नहीं दे रहे। वोट तो उसे 37% मिल रहे हैं जो टीएमसी के 42% से 5% कम हैं। तो फिर बीजेपी की सरकार बनेगी कैसे? सरकार वोट से बनती है कि धारणा से?

विश्लेषण से ख़ास

इसे फिर से हम क्रिकेट मैच के उदाहरण से समझते हैं। भारत-ऑस्ट्रेलिया में मैच हो रहा है। मैच बहुत रोमांचक स्थिति में है। ऐसे में एक चैनल अपने दर्शकों में यह पोल करता है कि आपको क्या लग रहा है - कौन जीतेगा। 60% दर्शकों ने कहा कि भारत जीतेगा, 40% ने कहा कि भारत हारेगा। क्या इस आधार पर वह चैनल यह ख़बर चला सकता है कि मैच भारत जीतेगा क्योंकि दर्शकों का ‘बहुमत’ यह मानता है कि भारत जीतेगा?

दूसरे शब्दों में, मैच का फ़ैसला इन 60% दर्शकों की ‘धारणा’ से तय होगा या मैदान में जो गेंद फेंकी जाएगी और जो बल्ला घुमाया जाएगा, उससे होगा? निश्चित रूप से मैदान ही तय करेगा कि कौन जीतेगा, न कि दर्शकों की धारणा।

यही बात बंगाल के मामले में भी है। 

भले ही अधिकांश वोटरों की धारणा यह हो कि बीजेपी जीत रही है, ओपिनियन पोल यही इशारा कर रहे हैं कि टीएमसी को वोट देने की मंशा रखने वाले बीजेपी को वोट देने की मंशा रखने वालों से ज़्यादा हैं।

अब अंत में इस जाँच का निष्कर्ष।

निष्कर्ष 1 - प्रशांत किशोर ने केवल यह बताया था कि बंगाल में बीजेपी की जो और जितनी भी ताक़त है, वह किन कारणों से है। उन्होंने कहीं भी यह नहीं कहा कि बीजेपी बंगाल में तृणमूल से भी ज़्यादा ताकतवर हो गई है। यह विपक्ष की ताक़त का एक ईमानदार आकलन है जो किसी को भी करना चाहिए, करता है। बीजेपी के लोग भी तृणमूल कांग्रेस की ताक़त का आकलन करते हुए उन मुद्दों पर विचार करते होंगे जो उसके पक्ष में हैं।

निष्कर्ष 2 - प्रशांत किशोर ने यह नहीं कहा था कि उनके अपने सर्वे में भी बीजेपी जीतती दिख रही है। उन्होंने केवल यह कहा था कि उनके अपने सर्वे में भी इस बात का संकेत मिला कि अधिकतर लोग यह ‘मानते’ हैं कि बीजेपी जीत रही है। उन्होंने उस ‘धारणा’ के पीछे का गणित भी समझा दिया था। नोट कीजिए, बात केवल ‘धारणा’ (perception) की हो रही है और धारणा से न चुनाव का नतीजा तय होता है, न मैच का, यह हम ऊपर समझ चुके हैं।

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