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बिहार: क्या मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार नहीं हैं नीतीश कुमार?

2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों में जब जेडीयू का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा था तो नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी। अपनी जगह उन्होंने दलित नेता जीतन राम मांझी को बैठाया था लेकिन 8 महीने बाद फिर से कुर्सी संभाल ली थी। कुर्सी छोड़ने का कारण नैतिक आधार पर पार्टी के ख़राब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेना बताया गया था। 

अब वैसे ही हालात फिर से बनते दिख रहे हैं। इस बार भी बिहार में जेडीयू का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा है और यह चर्चा शुरू हो गई है कि नीतीश मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते। हालांकि जीत से पहले और जीत के बाद भी ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश को ही बिहार में एनडीए का चेहरा बताया है। लेकिन नीतीश की इस कुर्सी पर फिर से न बैठने की इच्छा व्यक्त करने का क्या सियासी मतलब है। 

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जेडीयू का ख़राब प्रदर्शन

चुनाव से पहले यह सवाल लगातार उठता रहा कि अगर जेडीयू की सीटें कम हुईं तो तब भी क्या नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे, बीजेपी नेताओं ने इसके जवाब में नड्डा और अमित शाह का ही बयान दोहराया। इस बयान में जेडीयू की सीटें कम आने की हालात में भी नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाने की बात कही गई थी। चुनाव नतीजों में जेडीयू बीजेपी से 31 सीटें पीछे रह गई है। जेडीयू को इस बार 43 सीटें मिली हैं, जो 2005 के बाद उसका सबसे ख़राब प्रदर्शन है। 

देखिए, एग्जिट पोल पर चर्चा- 

इससे ज़्यादा चिंतित करने वाली बात नीतीश कुमार के लिए यह है कि जेडीयू राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है और बीजेपी और आरजेडी से कोसों दूर है। हालांकि पार्टी के नेता इसके लिए एलजेपी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान भी तमाम चैनलों की रिपोर्टिंग के दौरान यह बात सामने आई थी कि राज्य में नीतीश कुमार से लोगों की नाराजगी बढ़ी है। 
Nitish kumar unwilling for Bihar cm post  - Satya Hindi

नीतीश की मुश्किलें

नीतीश कुमार जानते हैं कि इस बार राज्य में सरकार चलाना उनके लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि बीजेपी ज़्यादा ताक़तवर है, इसलिए मलाईदार महकमों पर वह अपना हक़ जताएगी। इससे भी बड़ा कारण दोनों दलों की विचारधारा में अंतर है। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से ही बीजेपी उग्र हिंदुत्व के एजेंडे पर तेज़ी से क़दम बढ़ा रही है। 

राम मंदिर निर्माण की नींव रखने ख़ुद पीएम मोदी का जाना इस बात को साफ करता है कि बीजेपी हिंदू मतों की अकेली झंडाबरदार बनना चाहती है। लेकिन नीतीश के साथ उसका टकराव बना रहेगा क्योंकि धारा 370, तीन तलाक़, सीएए-एनआरसी को लेकर जेडीयू का रूख़ बीजेपी से अलग है।

वन मैन आर्मी हैं नीतीश 

नीतीश जेडीयू में अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्हें लोग बिहार के बाहर भी जानते हैं। उन्होंने कोई सेकेंड लाइन लीडरशिप तैयार नहीं की है जबकि बीजेपी विशाल पार्टी है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगले 5 साल में बीजेपी अपना इतना विस्तार कर लेगी कि वह अकेले दम पर ही सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच जाएगी। लेकिन इन 5 सालों में वह नीतीश को जबरदस्त दबाव में रखेगी। 

Nitish kumar unwilling for Bihar cm post  - Satya Hindi

महागठबंधन के पास नहीं जा सकते

नीतीश के लिए बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे के साथ सरकार चलाना इस बार बहुत मुश्किल होगा। कारण है- जेडीयू की घटती और बीजेपी की बढ़ती ताक़त। लेकिन मुसीबत यह है कि उनके सारे रास्ते बंद हो चुके हैं। अब अगर वो महागठबंधन के पास गए तो लालू के द्वारा रखा गया उनका नाम पलटूराम सही साबित हो जाएगा। 

हालांकि बीजेपी इस बात को भी जानती है कि अगर उसने ज़्यादा दबाव बनाया तो नीतीश उसका साथ छोड़ सकते हैं और आरजेडी उन्हें बाहर से समर्थन देकर मुख्यमंत्री बना सकती है। इसी डर को भांपते हुए बीजेपी उन्हें पूरा सम्मान देने की कोशिश कर रही है। इसीलिए, चुनाव नतीजे वाले दिन शाम को ही बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव, बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल, उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने उनसे मुलाक़ात की थी।

बीजेपी ने बिहार के नतीजे आने के बाद पूरा जोर इस बात पर लगा दिया है कि एनडीए की जीत सिर्फ मोदी के चेहरे की वजह से हुई है, वरना नीतीश लुटिया डुबो देते। वह नीतीश के सियासी क़द को बौना कर देना चाहती है। नीतीश इस बात को समझते हैं और इसी वजह से शायद दबाव में भी हैं।

बिहार में जब बीजेपी ने अपने पोस्टरों से नीतीश को ग़ायब कर दिया था, तभी यह साफ हो गया था कि बीजेपी राज्य की सियासत में अपने नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहती है लेकिन सियासी मजबूरी में वह नीतीश को नेता बता रही है। 

चिराग बने मुसीबत 

चिराग पासवान के रूख़ को लेकर बीजेपी पर हमला होता रहा कि उसने ही उन्हें उकसाया है और नीतीश के ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर रही है। जेडीयू नेताओं को भी यह बात पता थी और है लेकिन ख़राब प्रदर्शन के बाद वे भी ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते। 

एक तो बीजेपी का हिंदुत्व का एजेंडा, दूसरा चिराग का लगातार हमलावर होना, नीतीश को आगे भी परेशान करता रहेगा। उनकी सियासी हैसियत भी इतनी नहीं रह गई है कि वे चिराग को एनडीए से निकलवा दें।

कितने दिन चलेगी सरकार?

चिराग का एनडीए में भी बना रहना और नीतीश को कोसते रहना, ये दोनों बातें लंबे वक्त तक नहीं चल सकती। ऐसे में इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए शायद वह मुख्यमंत्री बनने के इच्छुक न हों या फिर बीजेपी का दबाव इतना ज़्यादा हो जाए कि कुछ समय बात उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़े क्योंकि दोनों दलों के बीच विचारधारा का बड़ा अंतर है और ऐसे में बिहार में एनडीए सरकार कितने दिन चल पाएगी, कहना मुश्किल है। 

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क़मर वहीद नक़वी

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