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दिल्ली चुनाव: क्या केजरीवाल को हरा पाएंगे मोदी-शाह?

दिल्ली की जनता इस बार भी आम आदमी पार्टी को ही अगले 5 साल के लिए राज्य की बागडोर थमा देगी या वह सरकार बदल देगी? अरविंद केजरीवाल एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेंगे या किसी और को यह ज़िम्मेदारी मिलेगी? क्या दिल्ली की जनता शाहीन बाग से प्रभावित होगी या बीजेपी के कहे में आएगी, जो उसके अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा जैसे नेताओं ने कही है?

बीजेपी का हाई-पिच कैंपेन

दिल्ली की जनता इन तमाम मुद्दों पर शनिवार को फ़ैसला कर लेगी, हालांकि उसका फ़ैसला 11 फरवरी को सामने आएगा।लेकिन बीजेपी ने जिस तरह पूरे चुनाव प्रचार को ‘हाई-पिच कैंपेन’ में तब्दील कर दिया और अपना सबकुछ झोंक दिया, उससे यह चुनाव मजेदार हो गया। 
बीजेपी के 100 से ज़्यादा सांसद, दसियों केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री मैदान में कूद पड़े। पूरे प्रचार की कमान ख़ुद गृह मंत्री अमित शाह ने संभाल रखी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को चुनाव प्रचार में उतरना पड़ा।

2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 33%, 'आप' को 29% और कांग्रेस को 24% वोट मिले थे। तब बीजेपी को 32, 'आप' को 28, कांग्रेस को 8 और निर्दलीय विधायकों को 2 सीटें मिली थीं। किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में कांग्रेस और ‘आप’ ने मिलकर सरकार बनाई लेकिन यह बेमेल गठबंधन वाली सरकार साबित हुई और 49 दिन में ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफ़ा दे दिया। 

2020 Delhi Assembly election : will Modi-Shah beat Kejriwal? - Satya Hindi

2015 के विधानसभा चुनाव में 'आप' के पक्ष में आँधी चली और उसे 54 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट और 67 सीटें मिलीं। 2015 में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया था और उसे 9 फ़ीसदी वोट मिले थे। इसके डेड़-दो साल पहले 2013 के चुनाव में उसे 24 प्रतिशत वोट मिले थे। साफ़ है, कांग्रेस का जनाधार खिसका।  

इस चुनाव में हैरान करने वाली बात यह थी कि भले ही बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिलीं लेकिन उसका वोट प्रतिशत 2013 के बराबर ही था यानी उसे तब भी 32 फ़ीसदी वोट मिले थे।
2020 Delhi Assembly election : will Modi-Shah beat Kejriwal? - Satya Hindi

इसके बाद आया 2017 का नगर निगम चुनाव। 'आप' इस उम्मीद में थी कि नगर निगम में भी विधानसभा चुनाव के पैटर्न पर वोटिंग होगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सिर्फ़ दो साल के बाद ही 'आप' का वोट प्रतिशत बहुत ज़्यादा गिर गया और वह 26 फ़ीसदी पर आ गई जबकि इस चुनाव में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के ख़राब प्रदर्शन को पीछे छोड़ते हुए 22 फ़ीसदी वोट हासिल किए। इस चुनाव में भले ही 'आप' का वोट फ़ीसद गिरा हो लेकिन बीजेपी ने अपना वोट फ़ीसद बढ़ाया था और उसे 37% वोट मिले थे। 

2020 Delhi Assembly election : will Modi-Shah beat Kejriwal? - Satya Hindi

सक्रिय हुए केजरीवाल 

इसके बाद अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की राजनीति का मिजाज समझ आया और उन्होंने संगठन और सरकार को चुस्त-दुरुस्त करना शुरू किया। केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस से गठबंधन के लिये मिन्नतें करनी शुरू कीं। उस कांग्रेस से जिसे उन्होंने 2015 में शून्य सीट पर समेट दिया था। यह देखना बड़ा अज़ीब था कि विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतने वाले केजरीवाल कांग्रेस को गठबंधन के लिये मनाते रहे लेकिन कांग्रेस नेताओं में इसे एकराय न होने को लेकर यह गठबंधन नहीं हो सका। 

लोकसभा चुनाव में 'आप' को एक बार और जोरदार झटका लगा। क्योंकि उसका प्रदर्शन नगर निगम चुनाव से भी ख़राब रहा और उसे सिर्फ़ 18 फ़ीसदी वोट मिले। कांग्रेस ने नगर निगम का अपना वोट फ़ीसद बरक़रार रखा और इस बार भी उसने 22 फ़ीसदी वोट हासिल किये। मोदी के नाम के सहारे बीजेपी सातों सीटों जीतने में सफल रही और उसने 56 फ़ीसदी वोट हासिल किये। 

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'आप' को कांग्रेस से बड़ा ख़तरा  

दूसरी ओर कांग्रेस है, जिसने पड़ोसी राज्य हरियाणा में अपेक्षा से बहुत बेहतर प्रदर्शन किया है। कांग्रेस को हरियाणा के अलावा महाराष्ट्र और झारखंड में बीजेपी के सत्ता से बाहर होने और इन दोनों ही राज्यों में सत्ता में भागीदारी मिलने से इस बात की जोरदार आस है कि दिल्ली में उसका प्रदर्शन सुधरेगा। हालांकि ओपिनियन पोल में कांग्रेस को बहुत ज़्यादा वोट मिलने की बात नहीं कही गई है लेकिन महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड की तरह अगर पार्टी ने यहां अच्छा प्रदर्शन किया तो यह भी ‘आप’ के लिये ख़तरा होगा। 

नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ दिल्ली में हुए प्रदर्शनों में कांग्रेस खुलकर मैदान में उतरी है जबकि आप ने इस मुद्दे से दूरी ही बनाये रखी है। दिल्ली में 14% मुसलिम मतदाता हैं और 10 सीटों पर हार-जीत तय करते हैं। 15 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस को एक समय मुसलिम मतदाताओं के झोली भरकर वोट मिला करते थे। इस बार क्या होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। 
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पवन उप्रेती

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