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दिल्ली: दस कारण जिनकी वजह से बड़ी हार की ओर बढ़ती दिख रही है बीजेपी!

दिल्ली के चुनाव नतीजे आने में कुछ ही घंटे शेष हैं। लेकिन इससे पहले आये एग्जिट पोल के नतीजों ने बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की चिंताएं बढ़ा दी हैं तो आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को झूमने का मौक़ा दे दिया है। बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर, गृह मंत्री अमित शाह और लगभग पूरी कैबिनेट, तमाम राज्यों के संगठनों के पदाधिकारी चुनाव में दिल्ली भर में घूमते रहे। पार्टी के नेताओं ने शाहीन बाग़ को मुद्दा बनाकर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की कोशिश भी की। दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी ने केजरीवाल सरकार के 5 साल के कामकाज को मुद्दा बनाया। बीजेपी नेताओं के द्वारा आतंकवादी कहने पर केजरीवाल ने दिल्ली की जनता पर इसका फ़ैसला छोड़ा और कहा कि यह जनता ही तय करे कि वह उनके बेटे हैं, भाई हैं या फिर आतंकवादी। बीजेपी नेताओं के ऐसे ही और बयानों को लेकर दिल्ली का चुनावी माहौल गर्म रहा। 
बीजेपी की इतनी भारी-भरकम टीम और दूसरी ओर केजरीवाल लगभग अकेले। क्योंकि आम आदमी पार्टी मे वह अकेले ऐसे नेता हैं जो दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर भीड़ जुटा सकते हैं और लोग उन्हें सुनने के लिये आते भी हैं।

ऐसे में अगर एग्जिट पोल के नतीजे चुनाव परिणाम में तब्दील होते हैं तो देखना होगा कि इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं। हम आपको ऐसे दस कारण बताते हैं जो दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत की और बीजेपी की हार की वजह बन सकते हैं। 

केजरीवाल की जनता में पकड़

इसका सबसे पहला कारण ख़ुद अरविंद केजरीवाल हैं। केजरीवाल के बारे में यह कहा जाता है कि पिछले पांच साल में उन्होंने ख़ुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया है जिस तक कोई भी आम शख़्स आसानी से पहुंच सकता है और जो शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली जैसे अहम मुद्दों पर फ़ोकस रहकर काम करता है। 

दिल्ली के लोकसभा चुनाव के परिणाम को अगर आप देखेंगे तो यह साफ़ होगा कि केंद्र में तो लोग नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट देना चाहते हैं लेकिन जब दिल्ली की बात आती है तो उनके लिये केजरीवाल से ज़्यादा विश्वसनीय चेहरा कोई और नहीं होता।

सीएम पद का चेहरा न होना 

केजरीवाल पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी को इस बात के लिये घेरते रहे कि उसके पास मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं है। वोटिंग से कुछ दिन पहले भी उन्होंने बीजेपी से कहा था कि वह अपने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करे। पार्टी नेताओं में गुटबाज़ी बढ़ने के डर से और पिछले कुछ चुनावों में इसका अनुभव अच्छा नहीं रहने की वजह से बीजेपी ने इस बार किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था। अगर बीजेपी डॉ. हर्षवर्धन, स्मृति इरानी या मनोज तिवारी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाती तो हो सकता था कि पार्टी को इसका लाभ होता। 

केजरीवाल कहते रहे कि अमित शाह या मोदी दिल्ली का मुख्यमंत्री नहीं चुन सकते और दिल्ली का मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार दिल्ली की जनता के हाथों में होना चाहिए न कि प्रधानमंत्री या गृह मंत्री के पास। ऐसा लगता है कि केजरीवाल के इस दाँव ने निश्चित रूप से चुनाव में काम किया है।

बीजेपी नेताओं की निष्क्रियता 

अगर आप चुनाव प्रचार शुरू होने से एक महीने पहले के चुनावी परिदृश्य पर नज़र डालेंगे तो तब यह साफ़ दिख रहा था कि बीजेपी के नेता, कार्यकर्ता बेहद सुस्त हैं जबकि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता चुस्त थे। एक ऐसा माहौल दिखाई दे रहा था जिसमें यह लगता था कि दिल्ली में केवल आम आदमी पार्टी ही चुनाव लड़ रही है। ऐसे में आम आदमी पार्टी ने तब बहुत लीड बना ली और लोगों तक पहुंच बढ़ाई। जबकि बीजेपी नेता और कार्यकर्ता अमित शाह के प्रचार में कूदने के बाद जागे लेकिन शायद तब तक देर हो चुकी थी। 

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काम को जनता तक पहुंचाया 

लोकसभा चुनाव के बाद से ही आम आदमी पार्टी केजरीवाल सरकार के काम को लोगों तक पहुंचाने में जुट गई थी। पार्टी ने सोशल मीडिया, अख़बारों, टीवी, होर्डिंग-फ़्लैक्स के माध्यम से लोगों तक अपने पांच साल के काम को पहुंचाया। सीधे शब्दों में कहें तो पार्टी ने अपने काम का जमकर प्रचार किया। इसके बाद लोगों ने इस बात को महसूस किया कि केजरीवाल सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली-पानी जैसे बेसिक मुद्दों पर काम किया है। और यह एक अहम कारण रहा जिसने दिल्लीवालों को आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट डालने के लिये तैयार किया और दूसरी ओर बीजेपी इसकी कोई काट नहीं निकाल सकी। 

केजरीवाल दौड़ते रहे, बीजेपी सुस्त रही 

2017 में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव में बुरी हार के बाद से ही केजरीवाल ने दिन-रात एक करना शुरू कर दिया था। क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद आम आदमी पार्टी इस उम्मीद में थी कि एमसीडी में भी विधानसभा चुनाव की ही तरह जीत मिलेगी लेकिन सिर्फ़ दो साल के बाद ही पार्टी का वोट प्रतिशत बहुत ज़्यादा गिर गया और वह 54 से 26 फ़ीसदी पर आ गई। 

एमसीडी चुनाव के नतीजों के बाद से ही केजरीवाल ने 2019 के लोकसभा चुनाव और इस विधानसभा चुनाव की तैयारी में पसीना बहाना शुरू कर दिया था जबकि बीजेपी मतदान से 15 से 20 दिन पहले चुनाव प्रचार में सक्रिय दिखाई दी।

मुफ़्त सुविधाओं की भरमार

अगस्त, 2019 में ही आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर दिल्ली की जनता के लिए अपना पिटारा खोला और कहा कि 200 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने वालों का कोई बिल नहीं आएगा। इससे पहले वह ‘बिजली हाफ़ और पानी माफ़’ के नारे की वजह से दिल्ली में सरकार बना चुकी थी। इसके अलावा महिलाओं के लिए मेट्रो और बसों में मुफ़्त सफर की घोषणा करके उन्होंने विरोधियों को चित कर दिया। 

डीटीसी में मुफ़्त यात्रा की सुविधा मिलने से महिलाएं काफ़ी ख़ुश नज़र आईं। इसके अलावा केजरीवाल ने मुख्यमंत्री तीर्थ-यात्रा योजना के तहत बुजुर्गों को तीर्थ स्थानों की यात्रा कराई और उनके रहने-खाने का शानदार इंतजाम किया।

अति आत्मविश्वास का शिकार हुई बीजेपी 

अगर बीजेपी चुनाव हारती है तो यह कहा जा सकता है कि वह अति आत्मविश्वास का शिकार हुई है। बीजेपी को लग रहा था कि वह लोकसभा चुनाव की ही तर्ज पर बड़ी जीत हासिल करेगी। तीन तलाक़ पर क़ानून बनने, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले और नागरिकता संशोधन क़ानून के बाद बीजेपी के नेताओं को लगा कि इससे हिंदू मतों का ध्रुवीकरण होगा और इसका उसे फ़ायदा मिलेगा लेकिन ज़मीन पर ऐसा नहीं दिखाई दिया। 

एक्सिस-माइ इंडिया के संपादक प्रदीप गुप्ता के मुताबिक़, दिल्ली में 1 फ़ीसदी से भी कम लोग नागरिकता क़ानून को मुद्दा मानते थे और असली मुद्दा विकास का था। इसका मतलब यह हुआ कि आम आदमी पार्टी के विकास को मुद्दा बनाने के कारण लोग उसके साथ आये।

बीजेपी का नकारात्मक चुनाव प्रचार 

बीजेपी के नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान कई ऐसे विवादित और बेहूदे बयान दिये, जिनसे आम जनता तो नाराज थी ही, बीजेपी का कोई नेता और कार्यकर्ता भी ऐसे बयानों का समर्थन नहीं कर सकता था। जैसे - बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का केजरीवाल को आतंकवादी बताना। प्रवेश वर्मा का शाहीन बाग़ में धरना दे रहे लोगों को लेकर यह कहना कि ‘ये लोग आपके घरों में घुसकर रेप करेंगे’, इस्लामिक संगठन पीएफ़आई और असम से भारत को अलग करने की बात कहने वाले शरजील इमाम को आम आदमी पार्टी के नेताओं से जोड़ना, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का ‘देश के गद्दारों को, गोली मारों...का’ नारा लगवाना आदि। 

बीजेपी नेताओं के बेहूदे बयानों को दिल्ली की विशाल आबादी वाले मध्यम और मध्यम-निम्न वर्ग ने पसंद नहीं किया और माना जा रहा है कि उन्होंने ऐसी स्थिति में बीजेपी को वोट डालना पसंद नहीं किया और उनके पास विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी ही थी।

कांग्रेस का प्रदर्शन न सुधरना 

कभी दिल्ली में लगातार 15 साल तक राज करने वाली कांग्रेस की हालत इस क़दर ख़राब हो चुकी है कि इस बार के एग्जिट पोल में उसे अधिकतम 4 सीटें मिलने की बात कही गई है और वोट फ़ीसद भी 5 के आसपास। कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन आम आदमी पार्टी के लिये ख़तरा साबित हो सकता था क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस के कट्टर समर्थक माने जाने वाले पूर्वांचली, मुसलिम और दलित मतदाता 2013 और 2015 में आम आदमी पार्टी के साथ चले गये थे।

नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ कांग्रेस ने दिल्ली में जमकर प्रदर्शन किये लेकिन एग्जिट पोल बताते हैं कि दिल्ली के 14% मुसलिम मतदाताओं की पहली और आख़िरी पसंद सिर्फ़ आम आदमी पार्टी ही है।
अगर मुसलिम मतदाताओं का वोट बंटता तो यह बीजेपी के लिये फ़ायदेमंद होता और बीजेपी इसी आस में भी थी लेकिन ऐसा होता नहीं दिखाई देता। दलित और पूर्वांचली मतदाता भी आम आदमी पार्टी के पक्ष में जाते दिखाई दिये हैं। 
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व्यापारी वर्ग नाराज, एमसीडी से नाख़ुश 

दिल्ली में व्यापारी वर्ग अपने काम-धंधे में आ रही मुश्किलों के कारण केंद्र सरकार से बेहद नाराज है। जटिल जीएसटी के कारण परेशानी होने की बात व्यापारी लगातार कहते आ रहे हैं। सीलिंग की वजह से दिल्ली के व्यापारियों का पूरा कामकाज ही चौपट हो गया और लाखों लोग बेरोज़गार हो गये, इसके कारण उनमें बीजेपी के प्रति नाराज़गी थी। दूसरी ओर केजरीवाल लगातार व्यापारी वर्ग से मिलते रहे और उन्हें यह भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि आम आदमी पार्टी उनके साथ खड़ी है। केजरीवाल सरकार ने व्यापारियों को इंस्पेक्टर राज से मुक्ति दिलाने के लिये भी काम किया और इससे व्यापारी वर्ग भी उनके साथ खड़ा हुआ। एमसीडी के कामकाज को लेकर भी लोगों में नाराजगी थी। 

दिल्ली के तीनों नगर निगमों में बीजेपी काबिज थी और सातों सांसद भी उसके थे। लेकिन बावजूद इसके लोग एमसीडी के काम से ख़ुश नहीं दिखाई दिये। इसके अलावा दिल्ली की क़ानून व्यवस्था केंद्र सरकार के पास है और इस मोर्चे पर सरकार फ़ेल दिखाई दी है। इसे भी लोगों ने गौर से महसूस किया है।
इन दस कारणों के बाद भी यह कहना ज़रूरी होगा कि अभी एग्जिट पोल ही आए हैं, चुनाव नतीजे नहीं। एग्जिट पोल ही पूरी तरह सही होंगे, यह नहीं कहा जा सकता। एग्जिट पोल एक दिशा बताते हैं, मतदाताओं का मूड बताते हैं। तमाम चैनलों के एग्जिट पोल इस बात की गवाही दे रहे हैं कि लोग दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार चाहते हैं लेकिन हमें चुनाव नतीजों के घोषित होने का इंतजार ज़रूर करना चाहिए। 
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पवन उप्रेती

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