ex ips officers open letter questions Delhi riots probe, supports julio ribeiro letter

जूलियो रिबेरो के बाद 9 पूर्व IPS अफ़सरों ने भी दिल्ली दंगा जाँच पर उठाए सवाल

बेदाग़ प्रोफ़ेशनल छवि के लिए मशहूर पुलिस अफ़सर रहे जूलियो रिबेरो के बाद अब 9 और पूर्व आईपीएस अफ़सरों ने दिल्ली दंगों की जाँच पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव को खुला ख़त लिखा है और कहा है कि वे दिल्ली दंगा जाँच में खामियों के आरोपों वाली जूनियो रिबेरो की चिट्ठी का समर्थन करते हैं। उन्होंने पुलिस द्वारा अदालत में पेश जाँच रिपोर्ट और चालान को लेकर कहा है कि यह 'भारतीय पुलिस के इतिहास का दुखद दिन' है। 

दो दिन पहले ही रिपोर्ट आई थी कि जूलियो रिबेरो ने चिट्ठी में लिखा कि दिल्ली पुलिस उन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है जो शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे जबकि हिंसा से पहले सांप्रदायिक और उकसाने वाला भाषण देने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं नेताओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। रिबेरो ने लिखा कि 'सच्चे देशभक्तों' को आपराधिक मामलों में घसीटा जा रहा है।

ताज़ा ख़बरें

रिबेरो ने जिन बातों को लेकर दिल्ली पुलिस की जाँच पर सवाल उठाए हैं, क़रीब-क़रीब वैसे ही सवाल इन नौ पूर्व आईपीएस अफ़सरों ने भी उठाए हैं। ये पूर्व आईपीएस अफ़सर बड़े-बड़े पदों से रिटायर हुए हैं। इस खुला ख़त लिखने वालों में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो से सेवानिवृत्त हुए सफ़ी आलम, सीबीआई के पूर्व विशेष निदेशक के सलीम अली, पंजाब के पूर्व डीजीपी (जेल) मोहिंद्र पाल औलख, प्रधानमंत्री कार्यालय के पूर्व ओएसडी ए एस दुलत, उत्तराखंड के पूर्व डीजी अलोक बी लाल, कैबिनेट में विशेष सचिव रहे अमिताभ माथुर, सिक्किम के पूर्व डीजीपी अविनाश मोहनने, गुजरात के पूर्व डीजीपी पी जी जे नाम्पूथिरि और पश्चिम बंगाल के पूर्व डीजीपी ए के समंता शामिल हैं। 

उन्होंने ख़त में लिखा है, 'हमें यह जानकर दुख हुआ कि आपके स्पेशल कमिश्नरों में से एक ने यह दावा करते हुए जाँच को प्रभावित करने की कोशिश की थी कि कुछ दंगा करने वालों का नाम होने से हिंदुओं में ग़ुस्सा था। पुलिस नेतृत्व में ऐसे बहुसंख्यकवादी विचार के कारण अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े हिंसा के शिकार लोगों और उनके परिवार के लिए न्याय एक उपहास बनकर रह जाता है। इसका नतीजा यह होगा कि जो वास्तविक गुनहगार होंगे वे संभव है कि बचकर निकल जाएँ।'

खुला ख़त में इन पूर्व आईपीएस अफ़सरों ने लिखा है कि जो नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में शामिल हो रहे थे वे अपने बोलने की आज़ादी और शांतिपूर्ण प्रदर्शन के संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल कर रहे थे। उन्होंने यह भी लिखा है कि बिना किसी ठोस सबूत के 'खुलासों' की जाँच करना निष्पक्ष जाँच के सिद्धाँतों का उल्लंघन है। इन पूर्व अफ़सरों ने यह भी कहा है कि सीएए के ख़िलाफ़ विचार रखने के लिए नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को तो घसीटा जा रहा है, लेकिन जिन्होंने हिंसा भड़काई और जो सत्ताधारी पार्टी से जुड़े हैं उन्हें छोड़ दिया गया है। 

इस खुले ख़त में चेताया गया है कि ऐसी जाँच से लोकतंत्र, न्याय, निष्पक्षता और संविधान से लोगों का विश्वास डिगेगा। उन्होंने दंगों से जुड़े मामलो में बिना किसी भेदभाव के फिर से निष्पक्ष जाँच का आग्रह किया है।

इससे पहले जूलियो रिबेरो ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को चिट्ठी में लिखा था, 'मैं आपको भारी मन से लिख रहा हूँ। एक सच्चे देशभक्त और भारतीय पुलिस सेवा के एक पूर्व गर्वित सदस्य के रूप में, मैं आपसे अपील करता हूँ कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ दर्ज 753 एफ़आईआर की निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित करें। ये प्रदर्शन करने वाले लोग अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रत और पूर्वाग्रह से पैदा हुए अन्याय को सही तरीके से समझते हैं।'

दिल्ली से और ख़बरें

रिबेरो ने लिखा, 'दिल्ली पुलिस ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है, लेकिन वह जानबूझकर नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने वालों के ख़िलाफ़ संज्ञेय अपराध दर्ज करने में विफल रही, जिससे पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे भड़क गए। इससे मेरे जैसे समझदार और ग़ैर-राजनीतिक लोगों को पीड़ा होती है कि कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और परवेश वर्मा को कोर्ट के सामने पेश क्यों नहीं किया गया है जबकि धर्म के आधार पर भेदभाव के ख़िलाफ़ शांतिपूर्वक विरोध करते हुए गहरे रूप से आहत हुई मुसलिम महिलाओं को महीनों जेल में रखा गया।'

रिबेरो ने लिखा है कि हर्षमंदर और प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद जैसे सच्चे देशभक्तों को आपराधिक मामलों में घसीटना एक और चिंता की बात है।

बता दें कि इसी साल फ़रवरी में हुए दिल्ली दंगे में कम से कम 53 लोग मारे गए थे और बड़े स्तर पर जान-माल का नुक़सान पहुँचा था। इस मामले में दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा सौ से ज़्यादा आरोप पत्र दायर किए जा चुके हैं और क़रीब 1400 लोग गिरफ़्तार किए जा चुके हैं। उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगे की जाँच को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। कई बार इसकी जाँच पर यह कहकर सवाल उठाए गए कि जाँच एकतरफ़ा है। यह भी आरोप लगाया जाता रहा है कि जिन्होंने हिंसा से पहले भाषण देकर उसको उकसाया था उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की जा रही है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

दिल्ली से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें