भारत में कोरोना-संक्रमितों की संख्या 5 लाख के ऊपर जा चुकी है और राजधानी दिल्ली में उनका आँकड़ा 80 हज़ार पार कर चुका है। लेकिन ये तो केवल वे लोग हैं जिनके बारे में हमें पता है। इनसे कई गुना ज़्यादा संख्या में ऐसे लोग हो सकते हैं जो कोरोना-संक्रमित हों या पहले हो चुके हों और उनको पता भी न चला हो क्योंकि कोविड-19 (कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी का ऑफ़िशल नाम) से पीड़ित 80% लोगों में इसके कोई लक्षण ही नहीं उभरते जिसके कारण उनको या किसी और को उनके संक्रमित होने का पता भी नहीं चलता। और तो और, वे बिना दवा के अपने-आप ठीक भी हो जाते हैं।
लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कितनी है, इसका अंदाज़ा लगाना आसान नहीं। सरकारी संस्था ICMR यानी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने कुछ दिन पहले यह पता लगाने के लिए एक सर्वे किया था। इस सर्वे के आधार पर उसने यह अनुमान लगाया था कि देश के 0.73% लोगों पर कोरोना का हमला हो चुका है। अगर इस आँकड़े को भारत की कुल आबादी – 138 करोड़ - पर लागू करें तो यह संख्या 1 करोड़ से कुछ ज़्यादा ही बैठती है।
आप सोच रहे होंगे कि ICMR को इसका पता कैसे चला कि इतने लोगों को कोरोना का संक्रमण हो चुका है। तो इसके लिए उसने मई महीने में देशभर के 83 ज़िलों में 26,400 लोगों के ख़ून की जाँच की थी। इस जाँच से ही उसे यह जानकारी मिली। अब उस जाँच का दायरा बढ़ाते हुए उन इलाक़ों में सर्वे कराया जा रहा है जो हॉटस्पॉट रहे हों जैसे मुंबई, अहमदाबाद, दिल्ली, कोलकाता आदि।
यह एक विशेष तरह की जाँच होगी जिसे सीरॉलॉजिकल टेस्ट कहा जाता है। यह कोरोना-संदिग्धों पर करवाए जा रहे RT-PCR या दूसरे टेस्टों से अलग होता है। सीरॉलॉजिकल टेस्ट में लोगों के ख़ून की जाँच होती है और जबकि कोरोना-संदिग्धों के मामले में नासिका द्रव, बलग़म आदि की परीक्षा होती है। सीरॉलॉजिकल टेस्ट भी दो तरह के होते हैं। एक, जिसमें यह पता किया जाता है कि परीक्षित व्यक्ति में फ़िलहाल कोई संक्रमण है या नहीं। दूसरे में यह मालूम किया जाता है कि अतीत में कभी इसपर संक्रमण हुआ है या नहीं।
दिल्ली में जो सीरोलॉजिकल सर्वे हो रहा है, उसमें यह नहीं खोजा जा रहा कि परीक्षित व्यक्ति में अभी कोरोना वायरस ‘है’ या नहीं। इसमें केवल यह पता लगाया जाएगा कि उसमें कोरोना वायरस कभी ‘था’ या नहीं।
इस टेस्ट को ELISA टेस्ट कहते हैं और इसमें कोरोना वायरस से जुड़ी IgG ऐंटीबॉडी खोजी जाती है जो संक्रमण होने के महीनों बाद भी ख़ून में बनी रहती है।
अगर ये ऐंटीबॉडी मिल गईं तो इसका मतलब इस व्यक्ति पर अतीत में कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) का हमला हो चुका है। अगर नहीं मिलीं तो इसका मतलब नहीं हुआ है।
ऐंटीबॉडी क्या होती है?
जब कोई बैक्टीरिया या वायरस हम पर हमला करता है तो हमारे शरीर का प्रतिरोधक तंत्र उससे मुक़ाबले के लिए कुछ लड़ाकू प्रोटीन पैदा करता है जिन्हें ऐंटीबॉडी कहते हैं।
कुछ ऐंटीबॉडी हमला होते ही तैयार हो जाती हैं जिन्हें IgM कहते हैं। यह सुरक्षा की पहली पंक्ति है जो हमलावरों से मुक़ाबला करती है और तब तक मैदान सँभाले रहती है जब तक बड़ी संख्या में और उससे ज़्यादा ताक़तवर IgG ऐंटीबॉडी नहीं आ जातीं। IgG ऐंटीबॉडी की विशेषता यह है कि वे हमलावरों का सफ़ाया करने के बाद भी बनी रहती हैं, कभी महीनों और कभी सालों तक। इन्हीं IgG ऐंटीबॉडी की ख़ून में मौजूदगी से पुष्टि होती है कि इस व्यक्ति के शरीर में कभी संक्रमण हुआ था या नहीं।
ये IgG ऐंटीबॉडी भी हर बीमारी के लिए अलग-अलग होती हैं। जैसा हमलावर, उसी के हिसाब से ऐंटीबॉडी। उसी से पता चलता है कि यह ऐंटीबॉडी कोरोना वायरस के मुक़ाबले के लिए बनी थी और यह टीबी से लड़ने के लिए।
ICMR ने मई में जो सर्वे किया था, उसमें 26,400 लोगों में से कोई 190 लोगों में कोरोना वायरस का मुक़ाबला करने वाली IgG ऐंटीबॉडी मिली थीं।
ICMR के अध्ययन के दो चरण थे। पहला चरण सारे देश के लिए था जो मई में ही पूरा हो गया और उसके परिणाम की हमने ऊपर बात की। दूसरे चरण में उन शहरों पर फ़ोकस करना था जहाँ मामले बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं जैसे मुंबई, अहमदाबाद, दिल्ली आदि। इस दूसरे चरण के तहत ही दिल्ली में यह सर्वे हो रहा है। इस सर्वे के नतीजे के बाद पता चल सकेगा कि ICMR के पिछले सर्वे से निकला अनुमान कितना सही था। दूसरे, इससे यह भी मालूम होगा कि क्या हॉटस्पॉट इलाक़ों में ऐसे संक्रमण का प्रतिशत बाक़ी इलाक़ों से ज़्यादा है।
लेकिन यहाँ एक सवाल खड़ा होता है कि यह सब मालूम करके सरकार को हासिल क्या होगा? क्या इससे उसे दिल्ली या देश के सारे अज्ञात पूर्व संक्रमितों की जानकारी मिल पाएगी? अब पिछला सर्वे ही देख लें। उससे ICMR को पता चला कि 26,400 में से ये 190 लोग पहले संक्रमित हो चुके हैं और उसके आधार पर यह अनुमान लगा कि देशभर में 1 करोड़ के आसपास अज्ञात पूर्व संक्रमित हो सकते हैं लेकिन ये 1 करोड़ लोग कौन हैं, यह तो ICMR नहीं पता कर सका, न ही देश को बतला सका।
सच बात यह है कि उनका पता करने की ज़रूरत भी नहीं है। कारण, ये वे लोग हैं जिनपर कोरोना वायरस का हमला हो चुका है और वे उससे ठीक भी हो चुके हैं। यानी वे और किसी को संक्रमित नहीं कर सकते क्योंकि उनके शरीर में वायरस कब का जा चुका है। लेकिन उनके बारे में यह जानकारी मिलने से दो फ़ायदे हो सकते हैं।
- पहला फ़ायदा यह होगा कि सरकार को पता चलेगा कि कोरोना वायरस के वास्तविक संक्रमितों की देश में कितनी संख्या है। फ़िलहाल केवल साँस की बीमारी और सर्दी-ज़ुकाम के लक्षण वाले लोगों या कोविड-19 के कन्फ़र्म्ड मरीज़ों के संपर्क में आए लोगों की जाँच हो रही है। अब आम जनता में बिना लक्षण वाले लोगों के ख़ून की जाँच करके यह पता चलेगा कि ऐसे कितने लोग हो सकते हैं देश में जो कोरोना का संक्रमण झेलकर ठीक भी हो चुके हैं। इससे सरकार को आगे की रणनीति तय करने में आसानी होगी।
- दूसरा फ़ायदा यह होगा कि ये जो नए अज्ञात पूर्व कोरोना-संक्रमित हमें मिलेंगे, वे कोरोना संक्रमण को आगे बढ़ने से रोकने में मदद कर सकते हैं। चूँकि इनके ख़ून में पहले से IgG ऐंटीबॉडी हैं इसलिए अगर कोरोना वायरस ने फिर से उनपर हमला किया तो वह वहीं मारा जाएगा और उसका आगे प्रसार नहीं होगा। रोग प्रतिरक्षा की इस विधि को हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं जिसके अनुसार यदि किसी समाज में 60% लोग किसी संक्रामक बीमारी से ग्रस्त हो कर ठीक हो चुके हों तो बाक़ी की 40% आबादी के लिए वे कवच का काम करते हैं।
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