बीवाई विजयेंद्र
भाजपा - शिकारीपुरा
अभी रुझान नहीं
‘कोरोना वायरस इस बार पहले से ज़्यादा ताक़त के साथ वापस लौट आया है। वायरस का यह नया रूप ज़्यादा घातक है और ये बहुत चुपके से तथा छिपकर हमला करने वाला है।’ पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रितेश कुमार का यह बयान सोशल मीडिया पर काफ़ी चर्चित हो रहा है। डॉ. रितेश का कहना है कि इस बार कोरोना संक्रमण के लक्षण काफ़ी अलग हैं। इस बार खाँसी, बुखार, जोड़ों में दर्द और भूख कम होना जैसे लक्षण ज़रूरी नहीं है। कई बार घातक संक्रमण होने पर भी कोई लक्षण नहीं होता।
नया वायरस शरीर के भीतर अधिक तेज़ी से फैलता है। इसलिए मौत की दर काफ़ी बढ़ सकती है। पहले के स्ट्रेन की तरह ये हमारे नाक के भीतरी हिस्से में नहीं ठहरता बल्कि सीधे फेफड़े में पहुँच जाता है। इसलिए पहले जैसे धीरे-धीरे असर होता था वैसा अब नहीं है। ये अचानक ख़तरनाक हो जाता है।
कई बार नाक के स्वाब की जाँच में भी ये पकड़ में नहीं आ रहा है। रिपोर्ट निगेटिव आ रही है जबकि शख्स संक्रमित हो चुका होता है। कई रोगी ऐसे भी मिले हैं, जिन्हें बुखार नहीं हुआ लेकिन छाती में निमोनिया हो चुका था। ये सीधे फेफड़े पर असर कर रहा है।
सबसे बड़ा सवाल इस बात को लेकर उठ रहा है कि जब संक्रमण उन लोगों को भी हो रहा है जिन्होंने वैक्सीन लगवा ली है तो क्या माना जाए कि वैक्सीन फ़ेल हो गयी? इसके जवाब में इंग्लैंड के डॉ. अशोक जैनर का कहना है कि वैक्सीन पर सवाल उठाने की ज़रूरत नहीं है। ‘अगर कोई वैक्सीन 70 प्रतिशत भी कामयाब है तब भी वो समाज के लिए बहुत उपयोगी है। इसके साथ ही वैक्सीन लगाने के बाद भी अगर कोई व्यक्ति संक्रमित होता है तो उस पर असर बहुत हल्का होगा। ये वैक्सीन, कोरोना के नए रूप या स्ट्रेन पर भी कामयाब होगा। इसलिए सब लोगों को जल्दी से जल्दी वैक्सीन लगवा लेना चाहिये।’
एक फ़ायदा यह भी है कि वैक्सीन के ज़रिए बहुत जल्दी हर्ड इम्यूनिटी या सामाजिक प्रतिरक्षा को प्राप्त किया जा सकता है।
कुछ लोग हर्ड इम्यूनिटी यानी सामाजिक प्रतिरक्षा की नीति पर ही सवाल उठा रहे हैं। ऐसे लोगों को यह भ्रम है कि कोरोना के पहले दौर में ही हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त हो गयी थी। वास्तविकता यह है कि देश के चुने हुए इलाक़ों में भी जो सेरो सर्वे हुए उनमें भी शहरी इलाक़ों में औसतन 30 से 40 प्रतिशत लोगों में ही एंटी बॉडी पायी गयी। ग्रामीण इलाक़ों में ये औसत 10 से 15 प्रतिशत ही था। इसका मतलब है कि आम तौर पर क़रीब 30 प्रतिशत लोग ही कोरोना से संक्रमित हुए थे।
किसी एक इलाक़े में अगर 40 या 50 प्रतिशत लोगों को इम्यूनिटी मिल भी गयी तो भी पूरे देश को इम्यून नहीं माना जा सकता है। आज के दौर में पूरी दुनिया की आबादी का लगभग 60 से 70 प्रतिशत हिस्सा जब तक इम्यून नहीं हो जाता तब तक हर्ड इम्यूनिटी नहीं आ सकती है।
भारत में वायरस का ये नया स्ट्रेन ब्रिटेन से आया है। जिन देशों में विमान से लोगों का निरंतर आना जाना होता है उन सभी देशों में एक साथ इम्यूनिटी आने पर ही हर्ड इम्यूनिटी की नीति सफल हो सकती है। किसी एक राज्य या देश के लिए हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करना असंभव है। ऐसा सिर्फ़ लॉकडाउन से ही हो सकता है जो अब असंभव और विनाशकारी है।
कोरोना का वायरस म्यूटेशन नाम की प्रक्रिया के ज़रिए अपना रूप (स्ट्रेन) बदलता रहता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक़ अब तक कोविड-19 के दो सौ से ज़्यादा रूप या स्ट्रेन सामने आ चुके हैं। लेकिन इनमे से सिर्फ़ तीन ही ज़्यादा ख़तरनाक हैं। ये हैं- ब्रिटेन (यूके ), ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीका स्ट्रेन। भारत में इस समय यूके स्ट्रेन का प्रकोप है। यह वायरस पहले के मुक़ाबले 70 प्रतिशत ज़्यादा तेज़ी से फैलता है। म्यूटेशन के बाद ये ज़्यादा धारदार हो गया है इसलिए यह आठ साल से ज़्यादा उम्र के बच्चों पर भी हमला कर सकता है। अब तक के शोध में पाया गया है कि कोविशील्ड वैक्सीन यूके और ब्राज़ील स्ट्रेन पर तो नब्बे प्रतिशत तक कामयाब है लेकिन दक्षिण अफ़्रीका स्ट्रेन पर 40 से 50 प्रतिशत ही कामयाब है। भविष्य में कोई नया स्ट्रेन नहीं आएगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। लेकिन वैक्सीन लगाने के बाद म्यूटेशन की प्रक्रिया पर भी रोक लग जाती है।
एक बात यह भी है कि कोरोना का पहला दौर थमने लगा तो लोग ज़्यादा असावधान हो गए। मास्क, सामाजिक दूरी और हाथ की सफ़ाई को भूल गए! पर सच्चाई यह है कि संकट अभी टला नहीं है। दूसरे दौर के साथ सारे उपाय अधिक ज़रूरी हो गए हैं। पहले दौर में बिना लक्षण वाले यानी एसिमटोमेटिक लोग बिलकुल सुरक्षित थे लेकिन नए स्ट्रेन में तो गंभीर संक्रमण होने पर भी कई लोगों में कोई लक्षण दिखाई नहीं देता या फिर बहुत देर से दिखाई देता है। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। फेफड़ा को गंभीर नुक़सान हो चुका होता है। डॉ. जैनर बताते हैं कि दो रोगियों ने उनसे तब संपर्क किया जब ऑक्सीजन लेवल 40 प्रतिशत हो चुका था। इस स्टेज पर उनकी कोई मदद संभव नहीं थी।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें