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शाहीन बाग़ में प्रदर्शन।

सीएए: शाहीन बाग़ प्रदर्शन के 3 महीने पूरे; इस पर अब शोर क्यों नहीं?

दिल्ली के शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन क़ानून, एनपीआर और एनआरसी के ख़िलाफ़ लगातार चल रहे धरना-प्रदर्शन को तीन महीने पूरे हो चुके हैं। इस दौरान इस प्रदर्शन ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। कई बार प्रदर्शन के दौरान गड़बड़ी फैलाने की कोशिश हुई। एक बार गोली चली। एक बार हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने यहाँ आकर नारेबाज़ी की। कुछ हिंदू संगठनों ने पहली मार्च को ज़ोर-ज़बरदस्ती से इस प्रदर्शन को हटाने का एलान किया था लेकिन पुलिस ने उन्हें सख़्ती से रोक दिया। फ़िलहाल शाहीन बाग़ का यह धरना-प्रदर्शन जारी है।

क़रीब 50 मीटर लंबे बने पंडाल के भीतर अब महिलाओं की पहले जैसी भीड़ नहीं दिखाई देती। महीने भर पहले तक जहाँ यह पंडाल महिलाओं से खचाखच भरा रहता था। पैर रखने की जगह नहीं होती थी। अब उस तरह की भीड़ नहीं है। लेकिन अभी भी 700-800 महिलाएँ लगातार धरने पर बैठी रहती हैं। 90 दिन पूरे होने के मौक़े पर पंडाल में 90 दिन का एक पोस्टर भी टांग दिया गया है।

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पंडाल के बाहर भी अब पहले की तरह भीड़ दिखाई नहीं देती। हालाँकि लोगों का आना-जाना बदस्तूर जारी है। कुछ लोगों ने इस प्रदर्शन में शामिल होने को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया है। शाम के वक़्त लोग अपने ज़रूरी काम निपटा कर एक, दो या तीन घंटे इस प्रदर्शन में ज़रूर शामिल होते हैं। कुछ लोग बच्चों को भी साथ ले आते हैं। रोज़ाना आने वाले शाहीन बाग़ के मुहम्मद अफ़सर कहते हैं कि लगातार तीन महीने तक इस प्रदर्शन को जारी रखना एक बड़ी कामयाबी है।

कालिंदी कुंज से सरिता विहार की तरफ़ जाने वाली इस सड़क की दाहिनी तरफ़ महिलाओं ने अपने प्रदर्शन के लिए पंडाल लगाया हुआ है। वहीं बाई तरफ़ का हिस्सा सामाजिक गतिविधियों के लिए छोड़ा हुआ है। सड़क किनारे बने बस स्टॉप को एक लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया गया है। यहाँ बहुत सारी किताबें रखी हुई हैं। ज़्यादातर किताबें लोगों ने दान की हैं। यहाँ लोग आते हैं और किताबें देखते हैं, पढ़ते भी हैं। इस अस्थाई लाइब्रेरी में एक बहुत ही ख़ूबसूरत पोस्टर लगा हुआ है। इसमें एक बच्ची एक पुलिसकर्मी को संविधान पढ़ा रही है।

anti caa protest shaheen bagh completes 3 months - Satya Hindi
शाहीन बाग़ में अस्थाई लाइब्रेरी में पोस्टर।

सड़क के इसी हिस्से में इंडिया गेट का मॉडल बनाया गया है। सफेद रंग के बने इस इंडिया गेट के मॉडल के बीचो-बीच अमर जवान ज्योति जलाई गई है। इंडिया गेट के चारों तरफ़ उन लोगों के नाम लिख दिए गए हैं जो-जो नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध करते हुए पुलिस की गोली से मारे गए हैं। प्रदर्शन में आने वाले लोगों के लिए यह आकर्षण का केंद्र है। लोग यहाँ जमकर ख़ूब फोटो खिंचवाते हैं और सेल्फ़ी लेते हैं।

इंडिया गेट मॉडल से थोड़ा आगे बढ़ने पर डिटेंशन सेंटर का मॉडल नज़र आता है। डिटेंशन सेंटर के अंदर क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह, महात्मा गाँधी और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की तसवीर लगी हुई है।

यह भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है। डिटेंशन सेंटर में खड़े होकर फ़ोटो खिंचवाने वाले एक शख्स से जब पूछा गया कि वह ऐसा क्यों कर रहा है तो उसने रोंगटे खड़े करने वाला जवाब दिया। वह बोला, "मैं असम में डिटेंशन सेंटर में बंद रखे गए लोगों के दर्द को महसूस करने की कोशिश कर रहा हूँ। आगे चलकर मुझ जैसे न जाने कितने लोगों को इसी दर्द से गुज़रना पड़ सकता है।"

थोड़ा आगे चलने पर सड़क के बीच भारत का एक बड़ा सा नक्शा लगाया गया है। इसके दोनों तरफ़ लिखा हुआ है, ‘हम भारत के लोग CAA, NPR और NRC को रिजेक्ट करते हैं।’ यह नक्शा काफ़ी पहले लगाया गया था। इसका रंग फीका पड़ गया है। इसलिए दोबारा से इसकी रंगाई-पुताई और मरम्मत का काम जारी है।

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फ़ोटो गैलरी में प्रदर्शन की कहानी

सड़क को पार करने के लिए बनाए गए पैदल पार पथ के ऊपर नागरिकता संशोधन क़ानून, एनपीआर और एनआरसी के विरोध में अलग-अलग तरह के पोस्टर टंगे हैं। यहाँ महात्मा गाँधी, सरदार भगत सिंह और संविधान निर्माता बाबा भीमराव आंबेडकर जैसी शख्सियतों के फ़ोटो के साथ नारे लिखे हुए हैं।

इसी पार पथ के नीचे सड़क के डिवाइडर की दीवार पर एक फ़ोटो गैलरी बनाई गई है। इस फ़ोटो गैलरी में नागरिकता संशोधन के ख़िलाफ़ शुरू हुए आंदोलन की पहले दिन से लेकर अब तक की वे तमाम तसवीरें लगाई गई हैं जो पुलिस बर्बरता की कहानी कहती हैं। इस गैलरी में कुछ फ़ोटो के नीचे लिखा है "इन्हें याद रखा जाएगा।"

anti caa protest shaheen bagh completes 3 months - Satya Hindi
शाहीन बाग़ में फ़ोटो गैलरी।

मोदी सरकार ने शाहीन बाग़ के प्रदर्शन को ख़त्म करने के लिए कई तरह की कोशिश की लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली। कुछ लोगों ने इस सड़क को खाली कराने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने महिलाओं को वहाँ से हटाने का निर्देश देने से साफ़ इनकार कर दिया था। पुलिस को निर्देश दिया था कि वह क़ानून व्यवस्था की स्थिति बिगाड़े बगैर रास्ता खाली कराने के लिए उचित क़दम उठा सकती है। 

पुलिस ने प्रदर्शनकारी महिलाओं से कहीं और शिफ्ट होने की गुजारिश की थी लेकिन महिलाओं ने दिल्ली पुलिस की यह पेशकश ठुकरा दी थी।

बाद में यही याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी यह कहते हुए महिलाओं को वहाँ से हटने का निर्देश देने से साफ़ इनकार कर दिया कि किसी भी क़ानून का विरोध करना नागरिकों का अधिकार है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दो वरिष्ठ वकीलों को प्रदर्शनकारी महिलाओं से बात करके रास्ता खाली कराने की कोशिश करने को ज़रूर कहा। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। दिल्ली में हुई हिंसा के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई महीने भर के लिए टाल दी थी।

सुप्रीम कोर्ट क्या फ़ैसला करता है, उस पर इस प्रदर्शन का भविष्य टिका है। फ़िलहाल तो लोग इस प्रदर्शन को ख़त्म करने के मूड में नहीं दिखते हैं।

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यूसुफ़ अंसारी

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