सेनाओं की बातचीत नाकाम
जनरल रावत ने यह बात तब कही है कि भारत और चीन की सीमा के बीच कमांडर स्तर की बातचीत 5 बार हो चुकी है। इस दौरान चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी गलवान घाटी से अपने सैनिकों को वापस बुलाने और एक बफ़र ज़ोन तैयार करने पर राजी हो गया।राजनीतिक बातचीत नाकाम
इसके पहले दोनों देशों के राजनीतिक व कूटनीतिक स्तर पर बातचीत हुई। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से बात की। इसके अलावा भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी वांग यी से बात की।राजनयिक बातचीत नाकाम
चीन में भारत के राजदूत विवेक मिस्री ने भी कई स्तर पर बातचीत की। उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो के विदेश मामलों के सदस्यों से मुलाक़ात की। मिस्री ने चीन के मिलिटरी कमीशन के उपाध्यक्ष से भी बात की। सैन्य मामलों में मिलिटरी कमीशन सबसे बड़ा निकाय है और तमाम बड़े नीतिगत फ़ैसले वही लेता है। इसके अध्यक्ष राष्ट्रपति शी जिनपिंग हैं।सीमा पर बुनियादी सुविधाएं
जनरल रावत ने जिस समय सैन्य विकल्प पर विचार करने की बात कही, उसी समय उन्होंने यह भी बताया कि सीमाई इलाक़ों में कुछ सालों में बुनियादी सुविधाएं विकसित करने का काम बड़े पैमाने पर हुआ है। उन्होंने कहा,“
'पिछले तीन-चार साल में इन बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं से जुड़ी परियोजनाओं पर काम हुआ है। दार्बुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क बनने से उत्तरी सीमा पर बसे लोगों को सुविधाएं मिली हैं, जिनके अभाव में वे वह इलाक़ा छोड़ कर जाने लगे थे। इससे सुरक्षा बलों को भी सुविधा होती है जो सीमाई इलाकों को सुरक्षित रखने के लिए निगरानी में लगे रहते हैं।'
जनरल बिपिन रावत, चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़
क्या करेगा भारत?
बता दें कि भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे तो हट चुकी है, पर वह लद्दाख में ही है। वहां श्रीनगर एअर बेस को हर स्थिति के लिए तैयार कर लिया गया है। इसके अलावा दौलत बेग ओल्डी में बने एअर बेस को भी तैयार किया गया है।सर्दियों में लद्दाख में टिके रहने की तैयारी
सैनिक मामलों के जानकारों का कहना है कि पूर्वी लद्दाख के पहाड़ी इलाक़े पूरी तरह बंज़र हैं और वहाँ ऊँची-नीची संकरी पहाड़ियाँ हैं जहाँ तीसों हज़ार सैनिकों को उनके सैनिक साज सामान के साथ शून्य से 20-40 डिग्री नीचे तापमान में तैनात रखना एक पहाड़ जैसी चुनौती ही होगा।पूर्वी लद्दाख की बंज़र बर्फीली पहाड़ियों पर हज़ारों सैनिकों को कुछ दिनों के भीतर ही तैनात कर देना और वहाँ उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को मुहैया कराना एक अभूतपूर्व चुनौती भारतीय सेना के सामने पेश हुई है।
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