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चीन पर सेना का रवैया कड़ा, कहा, बातचीत से समाधान नहीं तो सैन्य विकल्प पर विचार

चीन के साथ कई स्तरों पर और कई बार की बातचीत नाकाम होने के बाद भारत ने अब रवैया कड़ा कर लिया है। चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़ जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि चीनी सेना की घुसपैठ की समस्या के समाधान के लिए सैन्य विकल्प पर विचार किया जा सकता है।
जनरल रावत ने यह तो नहीं कहा कि वह सैन्य विकल्प क्या है, लेकिन यह ज़रूर कहा कि दोनों सेनाओं के बीच बातचीत नाकाम होने के बाद ही इस विकल्प पर विचार किया जा सकता है। सैन्य विकल्प पर यह भारत की ओर से पहला बयान है। यह ऊँचे स्तर से आया हुआ बयान है
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सेनाओं की बातचीत नाकाम

जनरल रावत ने यह बात तब कही है कि भारत और चीन की सीमा के बीच कमांडर स्तर की बातचीत 5 बार हो चुकी है। इस दौरान चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी गलवान घाटी से अपने सैनिकों को वापस बुलाने और एक बफ़र ज़ोन तैयार करने पर राजी हो गया।
लेकिन चीन के सैनिक अभी भी डेपसांग और पैंगोंग त्सो इलाक़े में जमे हुए हैं और पीछे हटने से इनकार कर रहे हैं।

राजनीतिक बातचीत नाकाम

इसके पहले दोनों देशों के राजनीतिक व कूटनीतिक स्तर पर बातचीत हुई। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से बात की। इसके अलावा भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी वांग यी से बात की।

राजनयिक बातचीत नाकाम

चीन में भारत के राजदूत विवेक मिस्री ने भी कई स्तर पर बातचीत की। उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो के विदेश मामलों के सदस्यों से मुलाक़ात की। मिस्री ने चीन के मिलिटरी कमीशन के उपाध्यक्ष से भी बात की। सैन्य मामलों में मिलिटरी कमीशन सबसे बड़ा निकाय है और तमाम बड़े नीतिगत फ़ैसले वही लेता है। इसके अध्यक्ष राष्ट्रपति शी जिनपिंग हैं।
इन तमाम बातचीत का कोई खा़स नतीजा नहीं निकला। चीन ने डेपसांग और पैंगोंग त्सो खाली करने से साफ़ इनकार कर दिया है। पीएलए के सैनिक वहाँ अभी भी डटे हुए हैं।

सीमा पर बुनियादी सुविधाएं

जनरल रावत ने जिस समय सैन्य विकल्प पर विचार करने की बात कही, उसी समय उन्होंने यह भी बताया कि सीमाई इलाक़ों में कुछ सालों में बुनियादी सुविधाएं विकसित करने का काम बड़े पैमाने पर हुआ है। उन्होंने कहा,

'पिछले तीन-चार साल में इन बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं से जुड़ी परियोजनाओं पर काम हुआ है। दार्बुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क बनने से उत्तरी सीमा पर बसे लोगों को सुविधाएं मिली हैं, जिनके अभाव में वे वह इलाक़ा छोड़ कर जाने लगे थे। इससे सुरक्षा बलों को भी सुविधा होती है जो सीमाई इलाकों को सुरक्षित रखने के लिए निगरानी में लगे रहते हैं।'


जनरल बिपिन रावत, चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेन्स स्टाफ़

क्या करेगा भारत?

बता दें कि भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा से पीछे तो हट चुकी है, पर वह लद्दाख में ही है। वहां श्रीनगर एअर बेस को हर स्थिति के लिए तैयार कर लिया गया है। इसके अलावा दौलत बेग ओल्डी में बने एअर बेस को भी तैयार किया गया है।
भारतीय सेना पहले से ही इस स्थिति की तैयारी कर रही है कि यदि सर्दियों में लद्दाख में सैनिकों को टिकाना ही पड़ा तो क्या उपाय किए जाएंगे।

सर्दियों में लद्दाख में टिके रहने की तैयारी

सैनिक मामलों के जानकारों का कहना है कि पूर्वी लद्दाख के पहाड़ी इलाक़े पूरी तरह बंज़र हैं और वहाँ ऊँची-नीची संकरी पहाड़ियाँ हैं जहाँ तीसों हज़ार सैनिकों को उनके सैनिक साज सामान के साथ शून्य से 20-40 डिग्री नीचे तापमान में तैनात रखना एक पहाड़ जैसी चुनौती ही होगा।
इस चुनौती के अनुरूप अपने को तैयार करने के लिये थलसेना आपात तैयारी और ख़रीद कर रही है जिनमें सियाचिन ग्लेशियर पर रहने वाले सैनिकों को दिये जाने वाले परिधान मुहैया कराना शामिल है। सियाचिन पर क़रीब तीन हज़ार भारतीय सैनिकों को तैनात रखने का भारतीय सेना का क़रीब चार दशकों का लम्बा अनुभव हासिल हो चुका है। 
पूर्वी लद्दाख की बंज़र बर्फीली पहाड़ियों पर हज़ारों सैनिकों को कुछ दिनों के भीतर ही तैनात कर देना और वहाँ उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को मुहैया कराना एक अभूतपूर्व चुनौती भारतीय सेना के सामने पेश हुई है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा के इलाक़े में तैनात सैनिकों को खुले टेन्टों में रखना सुरक्षा नज़रिये से ठीक नहीं होगा इसलिये उनके लिये कंक्रीट के बंकर बनाने होंगे। यह सब अक्टूबर तक यानी बर्फ गिरना शुरू होने के पहले से ही पूरा कर लेना होगा।
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि महीनों तक वहाँ हज़ारों भारतीय सैनिकों को टिकाने के लिये किस तरह की रिहायशी व्यवस्था की जाए। 
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क़मर वहीद नक़वी

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