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क्या मनमोहन सिंह ने सिर्फ हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता देने की बात कही थी?

क्या 2003 में मनमोहन सिंह ने कहा था कि सिर्फ हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता दें? भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का एक पुराना वीडियो जारी करते हुए कहा है कि 2003 में तो कांग्रेस ने पड़ोसी देशों में उत्पीड़न झेल रहे अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने की वकालत की थी और जब बीजेपी की सरकार वही काम कर रही है तो वह उसका विरोध कर रही है।

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हम पता लगाएँगे कि इस वीडियो से क्या बीजेपी का दावा सही साबित होता है। क्या वाक़ई 2003 में मनमोहन सिंह ने उसी बात की वकालत की थी जो बातें 2019 के नागरिकता संशोधन क़ानून में हैं?

क्या कहा था मनमोहन सिंह ने?

पहले जानते हैं कि मामले का संदर्भ क्या है। बात राज्यसभा की है और तब की एनडीए सरकार की तरफ़ से नागरिकता क़ानून में  संशोधन के लिए एक बिल लाया गया था। वह बिल मौजूदा विधेयक की तरह भारत में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों को भारत की नागरिकता देने के बारे में नहीं था।
वह तो नागरिकता संबंधी कुछ और नियमों में बदलाव करने के लिए लाया गया था, जैसे भारत में जन्म लेने वालों या विदेश में रह रहे भारतीयों की संतानों और विदेश में रह रहे भारतीयों को किन परिस्थितियों में भारत की नागरिकता मिलेगी या नहीं मिलेगी।

सच क्या है?

इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि मनमोहन सिंह ने मौजूदा बिल की तरह के किसी विधेयक का तब समर्थन किया था। अब जानें कि मनमोहन सिंह ने आख़िर कहा क्या था। उन्होंने कहा था : 

शरणार्थियों के साथ कैसा सलूक किया जाए, इसपर मैं कुछ बोलना चाहूँगा। देश के विभाजन के बाद बांग्लादेश जैसे देशों के अल्पसंख्यकों ने उत्पीड़न सहा है और यह हमारा नैतिक दायित्व है कि यदि हालात से मजबूर होकर ये दुर्भाग्यशाली लोग हमारे देश में शरण पाना चाहते हैं तो इन दुर्भाग्यशाली लोगों को नागरिकता देने के बारे में हमारा रुख़ और भी उदार होना चाहिए। मुझे पूरी उम्मीद है कि नागरिकता क़ानून के बारे में भविष्य में कोई क़दम उठाते समय उपप्रधानमंत्री (लालकृष्ण आडवाणी) इस बात को ज़ेहन में रखेंगे।


मनमोहन सिंह, नेता, कांग्रेस

उनके इस वक्तव्य के बाद उपसभापति की कुर्सी पर बैठी नजमा हेपतुल्ला ने कहा कि पाकिस्तान में भी अल्पसंख्यक कष्ट भोग रहे हैं और उनका भी ख़्याल रखा जाना चाहिए। नीचे देखें बीजेपी का ट्वीट और उसके साथ लगा वीडियो।

मनमोहन सिंह के इस बयान से क्या पता चलता है? यही कि वे बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में रह रहे उन अल्पसंख्यकों के नागरिकता देने की बात कर रहे थे जो वहाँ उत्पीड़न झेल रहे हैं।

नागरिकता क़ानून का विरोध क्यों?

लेकिन मौजूदा नागरिकता संशोधन क़ानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने की व्यवस्था करते हुए पाँच धर्मों का उल्लेख किया गया है और मुसलमानों को उस सूची से बाहर रखा गया है। कांग्रेस का इस क़ानून के प्रति विरोध दो कारणों से है वरना वह इस क़ानून के साथ है।

  • 1. इसमें केवल तीन पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने की बात कही गई है जबकि भारत के अन्य पड़ोसी देशों जैसे म्यांमार और श्रीलंका को इसमें शामिल नहीं किया गया है जबकि म्यांमार में रोहिंग्या (मुसलमान) और श्रीलंका में तमिल (हिंदू-मुसलमान दोनों) भी उत्पीड़न झेल रहे हैं।
  •  2. पाकिस्तान में अहमदिया और शिया अल्पसंख्यक हैं और उनको भी वहाँ धार्मिक कारणों से उत्पीड़न सहना पड़ता है। इसलिए यदि पाकिस्तान सहित तीन देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की व्यवस्था की गई है तो उसमें ऐसे मुसलमानों को भी शामिल किया जाना चाहिए था क्योंकि भारत का संविधान धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता न ही इसकी इजाज़त देता है।
बता दें कि स क़ानून के अनुसार 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बाँग्लादेश से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध नागरिक नहीं माना जाएगा और उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी। 
विपक्षी राजनीतिक दलों का कहना है कि यह क़ानून संविधान के मूल ढांचे के ख़िलाफ़ है। इन दलों का कहना है कि यह क़ानून संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है और धार्मिक भेदभाव के आधार पर तैयार किया गया है।
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नीरेंद्र नागर

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