अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कोरोना टीके की कमी हो सकती है और साल के अंत तक ज़्यादा से ज़्यादा 33 प्रतिशत लोगों का ही टीकाकरण मुमकिन है।
सरकारी दावा क्या है?
आईएमएफ़ की यह रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन के उस दावे के उलट है कि साल के अंत तक देश में सबको टीका दे दिया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत का उदाहरण देते हुए कहा है कि दूसरे विकासशील देशों को इससे सीख लेनी चाहिए और अपने यहाँ टीकाकरण की बेहतर व्यवस्था करनी चाहिए क्योंकि उनके यहाँ भी ऐसा ही हो सकता है।
सच क्या है?
आईएमएफ़ ने यह भी कहा है कि विकसित देशों में बुजुर्गों को अतिरिक्त खुराक देने या बच्चों को नए वैरिएंट का टीका देने का कार्यक्रम प्रभावित हो सकता है।सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में अब तक 18.92 करोड़ लोगों को टीके की एक खुराक और इसमें से 4.14 करोड़ लोगों को दोनों खुराक दी जा चुकी है। साफ है कि भारत के सिर्फ 2.95 प्रतिशत लोगों का ही टीकाकरण किया जा सका है।
आठ टीके?
कुछ दिन पहले नीति आयोग के सदस्य वी. के. पॉल ने दावा किया था कि साल के अत तक 216 करोड़ खुराकों का इंतजाम हो जाएगा। लेकिन उनका यह आकलन सभी आठों टीकों को उपलब्ध मान कर किया गया है, जबकि अब तक सिर्फ तीन टीकों को मान्यता दी गई है और सिर्फ दो टीके ही अब तक दिए जा सके हैं।
आईएमएफ़ ने कोरोना से लड़ने के लिए पूरी दुनिया में 50 अरब डॉलर का निवेश करने की योजना बनाई है। इसके पूरा हो जाने पर 9 ट्रिलियन डॉलर का फ़ायदा दुनिया की अर्थव्यवस्था को होगा।
आईएमएफ़ की योजना
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा है कि कोरोना से लड़ने में इसके हिसाब से निवेश होने पर दुनिया की अर्थव्यवस्था में 2025 तक 9 खरब डॉलर की संपत्ति का सृजन होगा।
उन्होंने कहा कि 50 अरब डॉल का निवेश सरकारी संसाधनों और तेजी से बढ़ने वाली परियोजनाओ में किया जा सकता है। यह पैसा ग्रांट, रियायतों, निवेश और संसाधन निर्माण के रूप में किया जा सकता है।
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