क्या भारत को कश्मीर में वैसा ही करना चाहिए जैसा इज़रायल फ़लस्तीन में करता है? क्या कश्मीर और फ़लस्तीन एक जैसी समस्याएँ हैं? क्या फ़लस्तीन के मुद्दे पर भारत की राय बदल गई है?
अमेरिका के न्यूयॉर्क में तैनात भारत के वाणिज्य दूत संदीप चक्रवर्ती की बातों को सुन कर इस तरह के सवाल उठ रहे हैं।
सोशल मीडिया पर एक वीडियो चल रहा है, जिसमें मुख्य वाणिज्य दूत संदीप चक्रवर्ती जो कुछ कह रहे हैं, कश्मीर पर भारत की घोषित नीति से बिल्कुल अलग है। कश्मीरी मूल के लोगों के साथ यह अनौपचारिक बातचीत है। इसमें चक्रवर्ती कहते दिखते हैं :
“
कश्मीर के हमारे भाई बहन रिफ़्यूजी कैम्पों में रह रहे हैं, वे जम्मू, दिल्ली और दूसरी जगहों पर रह रहे हैं, सड़कों पर रह रहे हैं, वे वहाँ कब तक रहेंगे? अमेरिका में तो हर कोई नहीं रह सकता है न! सरकार काफ़ी कुछ कर रही है, काफ़ी कुछ किया है। इतना बड़ा जोख़िम सरकार ने यूं ही नहीं उठाया है। आप हमें थोड़ा समय दीजिए, यकीन कीजिए, कश्मीर की सुरक्षा स्थिति सुधरेगी और आप अपने गाँव लौट सकेंगे। इस तरह के उदाहरण हैं। मध्य-पूर्व में ऐसा हुआ है। यदि इज़रायल फ़लस्तीन में ऐसा कर सकता है तो हम क्यों नहीं कर सकते?
संदीप चक्रवर्ती, अमेरिका में भारत के वाणिज्य दूत
उनके इस कथन पर वहाँ मौजूद लोग तालियाँ बजाते हैं। चक्रवर्ती यह भी कहते हैं कि 'कश्मीर की संस्कृति दरअसल हिन्दू संस्कृति है, भारतीय संस्कृति है। कश्मीर के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती।' वे इसके आगे कहते हैं :
दरअसल, हमसे सबसे बड़ी ग़लती यह हुई है कि हम एक तरह से सोचते हैं, और हम सोचते हैं कि दुनिया ऐसा ही सोचती है। पर यह सच नहीं है। दुनिया वैसा नहीं सोचती है, जैसा हम सोचते हैं। अब हमें वैसा ही सोचना होगा, जैसा दुनिया सोचती है।
क्या इसकी व्याख्या हो सकती है कि चक्रवर्ती यह कहना चाहते हैं कि कश्मीर के मुद्दे पर भारत की नीति बदलनी चाहिए और भारत को वैसा ही करना चाहिए जैसा इस तरह के मामलों में दूसरे देश करते हैं?
इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया आने और विवाद होने पर चक्रवर्ती ने कहा है कि उनकी बात को परिप्रेक्ष्य से काट कर पेश किया जा रहा है। उन्होंने ट्वीट कर सफ़ाई भी दी है।
I have seen some social media comments on my recent remarks. My remarks are being taken out of context.
संदीप चक्रवर्ती की सफ़ाई अपनी जगह है। लेकिन, आप ख़ुद देखिए कि उन्होंने कहा क्या है।
यह बात अहम है। क्या फ़लस्तीन पर भारत की नीति बदल गई है? केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद से इज़रायल के साथ भारत की नज़दीकियाँ बढ़ी हैं। पर यह भी सच है कि भारत की फ़लस्तीन नीति नहीं बदली है।
इसकी एक वजह यह है कि राष्ट्रवाद के मुद्दे पर दोनों देशों की सत्तारूढ़ दलों की नीतियों में काफ़ी समानता है। मुसलमानों के बारे में भी उनके विचार मिलते जुलते हैं। कुछ दिन पहले तक सत्ता में रही लिकुड पार्टी और बीजेपी की नीतियों में समानता है। इस वजह से कुछ दिन पहले तक इज़रायल के प्रधानमंत्री रहे बिन्यामिन नेतन्याहू और नरेंद्र मोदी में निजी दोस्ती भी है।
नेतन्याहू ने अपने चुनाव प्रचार में बड़ा पोस्टर लगवाया, जिस पर नरेंद्र मोदी की तस्वीर है। नेतन्याहू ने प्रचार के दौरान यह दावा किया है कि उनके नेतृत्व में भारत इज़रायल के नज़दीक आया।
इज़रायल में लगा लिकुड पार्टी का चुनाव पोस्टरEuroAsiantimes.com
लेकिन इसके बावजूद भारत का स्पष्ट तौर पर यह कहना रहा है कि वह फ़लस्तीन के साथ है, वह अलग फ़लस्तीन का समर्थन करता है और इज़रायल व फ़लस्तीन के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का पक्षधर है। मोदी सरकार ने बार-बार यह ज़ोर देकर कहा है कि उसकी फ़लस्तीन नीति नहीं बदली है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि चक्रवर्ती का बयान भारत की आधिकारिक नीति नहीं है। फ़लस्तीन पर उसकी नीति वाकई नहीं बदली है। पर यह भी सच है कि चक्रवर्ती ने जो कुछ कहा है, भारत के सत्ता प्रतिष्ठान में इस तरह की बात कई लोग कह रहे हैं।
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