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जेएनयू पर जावेद अख़्तर- देशद्रोहियों ने बेचारे गुंडों को ठीक से लाठी नहीं मारने दी..

जेएनयू हिंसा में नकाबपोशों के हमले में घायल विश्वविद्यालय की छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष के ख़िलाफ़ ही एफ़आईआर दर्ज करने पर गीतकार जावेद अख्तर ने तंज कसा है। यह तंज ऐसा-वैसा नहीं है, यह चोट है। एक गहरी चोट। उनपर जिन्होंने यह हिंसा की। उनपर जिन्होंने यह कराई। उनपर भी जिन्होंने हिंसा करने वालों का समर्थन किया। दरअसल, यह उस व्यवस्था पर चोट है जो 'राष्ट्रवाद' के नाम पर हिंसा को जायज़ ठहराने की कोशिश में रहती है।

जावेद अख़्तर ने इसके लिए ट्विटर का सहारा लिया। उन्होंने ट्वीट किया, 'जेएनयूएसयू अध्यक्ष के ख़िलाफ़ एफ़आईआर पूरी तरह से समझ में आती है। उसने अपने सिर से एक राष्ट्रवादी, देश प्रेमी लोहे की छड़ को रोकने की हिम्मत कैसे की। इन देशद्रोहियों ने हमारे बेचारे गुंडों को एक लाठी भी ठीक से नहीं बजाने दी। वे हमेशा अपने शरीर को वहाँ छान दिया। मुझे पता है कि उन्हें मार खाना पसंद है।'

उनके इस ट्वीट से बर्बस एक उनकी ही शायरी याद आ गई जो हमेशा मौजूँ रहेगी-

मुझे तो ये लगता है जैसे किसी ने यह साज़िश रची है

के लफ़्ज़ और माने में जो रिश्ता है

उसको जितना भी मुमकिन हो कमज़ोर कर दो

के हर लफ़्ज़ बन जाए बेमानी आवाज़

फिर सारी आवाज़ों को ऐसे घट मठ करो, ऐसे गूँदो

के एक शोर कर दो

ये शोर एक ऐसा अँधेरा बुनेगा

के जिसमें भटक जाएँगे अपने लफ़्ज़ों से बिछड़े हुए

सारे गूँगे मानी

भटकते हुए रास्ता ढूँढते वक्त की खाई में गिर के मर जाएँगे

और फिर आ के बाज़ार में खोखले लफ़्ज़

बेबस ग़ुलामों के मनिंद बिक जाएँगे

ये ग़ुलाम अपने आकाओं के एक इशारे पे

इस तरह यूरिश करेंगे

के सारे ख़यालात की सब इमारत

सारे जज़्बात के शीशाघर

मुनादिम हो के रह जाएँगे

हर तरफ़ ज़हन की बस्तियों में यही देखने को मिलेगा

के एक अफ़रा-तफ़री मची है

मुझे तो ये लगता है जैसे किसी ने यह साज़िश रची है।

जावेद अख़्तर का यह ट्वीट जेएनयू में रविवार शाम को हिंसा भड़कने के मामले में है। इस हिंसा में दर्जनों नकाबपोश लोगों ने कैंपस में छात्रों और अध्यापकों पर हमला कर दिया था। इसमें विश्वविद्यालय की छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष गंभीर रूप से घायल हो गईं थीं। इस हमले में घायल कम से कम 34 लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। तब छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष ने कहा था कि 'मास्क पहने गुंडों द्वारा मुझ पर घातक हमला किया गया। मेरी बुरी तरह पिटाई की गई।' नकाबपोशों ने तीन घंटे तक क़हर मचाया था।

लेकिन इस मामले में दिल्ली पुलिस ने जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है। आइशी के अलावा 19 अन्य लोगों के ख़िलाफ़ भी एफ़आईआर दर्ज की गई है। इन पर आरोप लगाया गया है कि इन्होंने 4 जनवरी को जेएनयू के सर्वर रूम में तोड़फोड़ की। यह एफ़आईआर 5 जनवरी यानी रविवार रात में तब दर्ज की गई जब कैंपस में उनपर हमला हो चुका था। तब सोशल मीडिया पर उनके ख़ून से लथपथ होने का वीडियो वायरल हुआ था। जेएनयू कैंपस में हिंसा और तांडव झकझोरने वाला था। इस हिंसा ने जावेद अख्तर को भी झकझोर दिया। उनके एक-एक शब्द जएनयू हिंसा की बर्बरता को बयाँ करते हैं। 

जावेद अख़्तर ऐसे व्यक्ति हैं जो हर सामाजिक मुद्दों पर बेबाक बोलते और अपनी राय रखते रहे हैं। चाहे वह धर्मनिरपेक्षता पर हमले का मामला हो या फिर लोकतंत्र पर हमले का। देश का मामला हो या विदेशों का। हाल ही में जब पाकिस्तान के ननकाना साहेब में मुसलिम कट्टरपंथियों का हमला हुआ था तब भी उन्होंने अपनी राय रखी थी। उन्होंने ट्वीट किया था, 'ननकाना साहेब में मुसलिम कट्टरपंथियों ने जो कुछ भी किया है वह पूरी तरह से निंदनीय और उसकी पूरी तरह से भर्त्सना की जानी चाहिए। किस तरह के तीसरे दर्जे, मानव योग्य नहीं और नीचले दर्जे के लोग हैं जो दूसरे समुदाय के कमज़ोर समूह के साथ इस तरह का व्यवहार कर सकते हैं।'

वर्ष 2018 में उन्होंने अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में मुहम्मद अली जिन्ना की तसवीर टंगी होने और गोडसे के मंदिर बनाए जाने पर भी सवाल उठाए थे। उन्होंने लिखा था, 'जिन्ना अलीगढ़ में न तो छात्र थे और न ही शिक्षक। यह शर्म की बात है कि वहाँ उनकी तसवीर लगी है। प्रशासन और छात्रों को उस तसवीर को स्वेच्छा से हटा देना चाहिए। जो लोग उस तसवीर के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं उन्हें अब उन मंदिरों के ख़िलाफ़ भी प्रदर्शन करना चाहिए जिन्हें गोडसे के सम्मान में बनाया गया।'

उन्होंने गुरमेहर कौर विवाद के मामले में भी राय रखी थी। 2017 में बवाल तब हुआ था जब गुरमेहर की एक तसवीर वायरल हुई थी जिसमें वह एक प्लेकार्ड लिए खड़ी थीं। इस पर अंग्रेज़ी में लिखा था, 'पाकिस्तान ने मेरे पिता को नहीं मारा, बल्कि जंग ने मारा है।' इस पर विवाद खड़ा हो गया था और एबीवीपी ने ज़बरदस्त विरोध किया था। उनको 'राष्ट्रविरोधी' भी कहा गया था। इसके बाद उन्होंने फ़ेसबुक पर अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर बदली थी। इसमें गुरमेहर एक पोस्टर के साथ दिखी थीं। इस पर लिखा था, 'मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा हूँ। मैं एबीवीपी से नहीं डरती। मैं अकेली नहीं हूँ। भारत का हर छात्र मेरे साथ है। #StudentsAgainstABVP'

इस पर जावेद अख़्तर ने गुरमेहर कौर का समर्थन करते हुए ट्विटर पर लिखा था, "इतने सारे युद्ध के दिग्गजों और सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों ने गुरमेहर के बयान का समर्थन किया है, लेकिन शायद वे कुछ लोगों के लिए उतने 'राष्ट्रवादी' नहीं हैं।"

उन्होंने बेंगलुरु में सांप्रदायिक तनाव पर लिखा था, 'धर्मनिरपेक्षता का मतलब अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता को अनदेखा करना या सहन करना नहीं है। बेंगलुरु में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश के लिए इस ग़ैर-ज़िम्मेदार और अपमानजनक मौलवी तनवीर हाशिम को तुरंत गिरफ़्तार किया जाना चाहिए।'

बता दें कि 2018 में कर्नाटक में एक मौलवी ने बकरीद पर राज्य में गाय की कुर्बानी देने की विवादित टिप्पणी की थी। इसपर ख़ुब विवाद हुआ था। 

जावेद अख़्तर ने एक अन्य ट्वीट में धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता का मतलब बताया था। उन्होंने ट्वीट किया था, 'धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है साथी भारतीयों को अपनी जाति और समुदाय के आधार पर पक्षपात के बिना प्यार करना। सांप्रदायिकता का मतलब है लाखों साथी भारतीयों से नफ़रत करना।'

देश और समाज को प्रभावित करने वाले हर मुद्दे पर जावेद अख़्तर के विचार भी बिल्कुल शीशे की तरह साफ़-साफ़ होते हैं। बिल्कुल नदियों में बहती उस निर्मल धारा की तरह जो हमेशा पानी को तरोताज़ा रखती है। ठीक उस धारा की तरह जिसे कोई रोक नहीं सकता और यदि उसे रोकने की कोशिश भी की गई तो अपना रास्ता ख़ुद बना लेती है। बिल्कुल प्रकृति और हवा की तरह। उनकी इस कविता में पढ़िए कितनी साफ़गोई है- 

किसी का हुक्म है सारी हवाएं,

हमेशा चलने से पहले बताएं,

कि इनकी सम्त क्या है।

हवाओं को बताना ये भी होगा,

चलेंगी जब तो क्या रफ्तार होगी,

कि आंधी की इजाज़त अब नहीं है।

हमारी रेत की सब ये फसीलें,

ये कागज़ के महल जो बन रहे हैं,

हिफाज़त इनकी करना है ज़रूरी।

और आंधी है पुरानी इनकी दुश्मन,

ये सभी जानते हैं।

किसी का हुक्म है दरिया की लहरें,

ज़रा ये सरकशी कम कर लें अपनी,

हद में ठहरें।

उभरना, फिर बिखरना, और बिखरकर फिर उभरना,

ग़लत है उनका ये हंगामा करना।

ये सब है सिर्फ़ वहशत की अलामत,

बगावत की अलामत।

बगावत तो नहीं बर्दाश्त होगी,

ये वहशत तो नहीं बर्दाश्त होगी।

अगर लहरों को है दरिया में रहना,

तो उनको होगा अब चुपचाप बहना।

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अमित कुमार सिंह

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