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रफ़ाल : क्या थे वे सवाल, जिन पर घिर गई थी मोदी सरकार?

सुप्रीम कोर्ट ने ताज़ा फ़ैसले में रफ़ाल से जुड़ी तमाम पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही उसने मामले की और जाँच कराने का आदेश देने से भी इनकार कर दिया है। क्या थे वे सवाल, जिन पर इतना बावेला मचा था?
प्रमोद मल्लिक
फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन से लड़ाकू विमान रफ़ाल खरीदने में क्या वाकई नरेंद्र मोदी सरकार ने गड़बड़ियाँ की थीं? आख़िर वे कौन से मुद्दे थे, जिन पर सरकार को बुरी तरह घेरा गया? किन सवालों के जवाब देने में वह नाकाम रही? कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने किन मुद्दों पर केंद्र सरकार को परेशान किया और उसके संकटमोचक तक बगले झांकते रहे?
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विवाद क्या है?

रफ़ाल विमान सौदे पर विवाद की शुरुआत भारत में विमान बनाने का ठेका अनिल अंबानी की रिलायंस कंपनी को देने को लेकर हुई। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और अन्य विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया था कि अंबानी को ठेका दिलाने के लिए कई सरकारी नियमों को तोड़ा गया और कंपनी को लंबे समय तक फ़ायदा पहुँचाने के लिए क़ीमत बढ़ाने की छूट दी गयी। राहुल गाँधी ने कहा था कि इससे अगले 7 से 10 सालों में अनिल अंबानी की कंपनी को 30 हज़ार करोड़ से ज़्यादा के फ़ायदे होंगे।

नियम तोड़े गए?

'द हिंदू' की रिपोर्ट के मुताबिक़ सबसे पहले तो सौदा फ़ाइनल करने के लिए रक्षा मंत्रालय की कमेटी को किनारे कर दिया गया और प्रधानमंत्री कार्यालय ने ख़ुद सौदा करना शुरू कर दिया। इस सौदे के लिए रक्षा मंत्रालय ने 7 सदस्यों की कमेटी बनायी थी। प्रधानमंत्री कार्यालय के कुछ अधिकारियों ने सीधे सौदे की बातचीत शुरू की तो कमेटी के तीन सदस्यों एम.पी. सिंह, ए.आर. सुले और राजीव वर्मा ने लिखित तौर पर आपत्ति दर्ज करायी और साफ़ तौर पर कहा कि इससे देश को नुक़सान होगा। और अब जो सबूत सामने आये हैं उससे लग रहा है कि विमान की क़ीमत तीन गुणा बढ़ने का एक बड़ा कारण प्रधानमंत्री कार्यालय की दखल है। प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बाद दसॉ कंपनी को मुख्य तौर पर ये छूट दीं।
  • आरोप है कि मनमोहन सिंह के समय हुए सौदे में सभी 126 विमानों के लिए समान क़ीमत रखी गयी थी। क़ीमत बढ़ाने का प्रावधान नहीं था। नयी व्यवस्था में प्राइस एस्कलेशन यानी क़ीमत बढ़ाने की छूट दी गयी।
  • आरोप लगाया गया है कि भारत सरकार विमान बनाने वाली कंपनी दसॉ के खातों की जानकारी नहीं ले पाएगी। पिछली सरकार के सौदे में इसकी व्यवस्था थी। इसके ज़रिये सौदे में आर्थिक गड़बड़ी पकड़ी जा सकती थी।
  • आरोप है कि पिछली सरकार ने सौदे के क्लॉज 22 और 23 में व्यवस्था की थी कि सौदे में कोई बिचौलिया या एजेंट नहीं होगा। मोदी सरकार ने इसे हटा दिया।
  • आरोपों के मुताबिक़, रफ़ाल बनाने वाली कंपनी दसॉ और भारत सरकार के बीच विवाद होने पर मध्यस्थ नियुक्त करके उसका हल निकालने की व्यवस्था पिछले सौदे में थी। नए सौदे में इसे हटाकर फ़्रांस सरकार से एक पत्र ले लिया गया कि फ़्रांस सरकार शिकायतों पर ख़ुद कार्रवाई करेगी। 
  • यह भी आरोप है कि मनमोहन सरकार के सौदे में विमान आपूर्ति में देर होने पर जुर्माना का प्रावधान था। नये सौदे में उसे भी हटा दिया गया। 
  • आरोप है कि मनमोहन सिंह के समय हुए सौदे में भारत में ऑफ़सेट पार्टनर के तौर पर एचएएल का नाम था। 

सौदा किया पीएमओ ने?

'द हिंदू' और 'द इंडियन एक्सप्रेस' में अब तक छपे दस्तावेज़ों के मुताबिक़, नया सौदा प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ ने ख़ुद किया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का नाम भी नये सौदे में जोड़ा गया है। जहाँ तक भारत में ऑफ़सेट पार्टनर के लिए एचएएल की जगह अनिल अंबानी की कंपनी को चुनने का सवाल है उसमें मोदी सरकार की भूमिका की चर्चा फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ़्रांस्वा ओलांद भी कर चुके हैं। ओलांद ने एक बयान में कहा कि भारत सरकार ने इसके लिए एक ही कंपनी (रिलायंस) के नाम की सिफ़ारिश की थी। यानी ख़ुद मोदी सरकार ने इस सौदे से एचएएल को अलग कर दिया।
इससे जुड़ा एक विवाद यह भी है कि रफ़ाल सौदे से कुछ पहले अनिल अंबानी की एक कंपनी ने उस समय फ़्रांस के राष्ट्रपति फ़्रांस्वा ओलांद की पत्नी जूली गाये की फ़िल्म निर्माण कंपनी में पैसा लगाया था। यह भी इस सौदे पर संदेह खड़ा करता है।

कीमत कैसे बढ़ी?

प्रधानमंत्री कार्यालय के सीधे हस्तक्षेप के चलते रफ़ाल की क़ीमत बढ़ी और उसका फ़ायदा सीधे तौर पर अनिल अंबानी की कंपनी को होता नज़र आ रहा है। सरकार ज़्यादातर मुद्दों पर कोई साफ़ जवाब अब तक नहीं दे पायी है। 
तकनीकी आधार पर सुप्रीम कोर्ट से भी तथ्य छिपाए गए। मोदी सरकार का यह दावा भी खोखला साबित हो चुका है कि नये सौदे से रफ़ाल की क़ीमत कम हुई और विमान भारत को जल्द मिल सकेंगे।
पहले सौदे के मुताबिक़ सौदा होने के बाद तीन से चार साल के भीतर 18 विमानों की आपूर्ति की जानी थी। नये सौदे में चार साल पाँच महीने का समय दे दिया गया है। रक्षा मंत्रालय के दस्तावेज़ बताते हैं कि बेंच मार्क यानी अधिकतम क़ीमत 5.06 बिलियन यूरो तय किया गया था, जबकि सौदा 7.87 बिलियन यूरो में किया गया। 
प्रधानमंत्री कार्यालय ने सीधे ही सौदे की बातचीत शुरू की तब रक्षा सचिव जी. मोहन कुमार ने आपत्ति जतायी। इसे भी प्रधानमंत्री कार्यालय ने अनदेखा कर दिया। पुराने सौदे में फ़्रांस सरकार और भारत सरकार को एक साझा एकाउंट एस्क्रो एकाउंट खोलने की बात थी। जिसके मुताबिक़ भारत सरकार को क़ीमत का भुगतान फ़्रांस के एस्क्रो एकाउंट में जमा करना था और विमान की आपूर्ति से भारत सरकार के संतुष्ट होने पर फ़्रांस सरकार दसॉ कंपनी को भुगतान देती। इसी तरह दसॉ कंपनी को आपूर्ति को लेकर संप्रभु और बैंक गारंटी देनी थी। मोदी सरकार के सौदे से इसे भी हटा दिया गया। इसके बदले फ़्रांस सरकार से एक आश्वासन पत्र ले लिया गया। 
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