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रफ़त का अंगदान फतवेबाजों के मुंह पर तमाचा! 

ग़ाज़ियाबाद के इंदिरापुरम में रहने वाली रफ़त परवीन के परिवार वालों ने उसके ब्रेन डेड होने पर उसके अंग दान करके चार लोगों की ज़िंदगी बचा कर एक मिसाल क़ायम की है। उनके इस जज़्बे की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। रफ़त की परिवार वालों के इस क़दम की ख़ूब तारीफ़ हो रही है। होनी भी चाहिए। क्योंकि उनका क़दम साहसिक होने के साथ ऐतिहासिक भी है।  

 

क्या है मामला?

रफ़त परवीन गुजरे 19 दिसंबर को सिर दर्द और चक्कर आने की शिकायत के बाद एक निजी अस्पताल में भर्ती हुई थीं। 24 दिसंबर को उन्हें ब्रेनडेड घोषित कर दिया गया। डॉक्टरों ने उनके परिवार वालों को अंगदान के बारे में बताया और उन्हें इसके लिए प्रेरित किया। परिवार वाले राज़ी हो गए। इस तरह रफ़त के दान दिए गए अंगों से दो लोगों को किडनी, एक को दिल और एक को लिवर ट्रांसप्लांट के ज़रिए ज़िंदगी मिल गई।    

साहसिक और ऐतिहासिक क़दम

दरअसल रफ़त के परिवार वालों का का यह क़दम मुसलमानों में शरीयत के नाम पर कूट-कूट कर भर दी गई इस जहालत के ख़िलाफ़ बग़ावत है कि इसलाम में अंगदान हराम है। इसके पहले अंगदान करने वाले कई लोगों के ख़िलाफ़ मुफ़्ती, उलेमा और मुसलिम संस्थाओं ने फ़तवा जारी करके उनके इस क़दम को हराम करार दिया। उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया। उन्हें इसलाम से ख़ारिज तक बता दिया गया। ऐसे फ़तवों की वजह से मुसलिम समाज में अंगदान को लेकर लोग आगे नहीं आते थे।

मां-बाप, भाई-बहन या भाई-भाई को तो अंगदान करने लगे हैं। हालांकि कई बार लोग अपने सगे रिश्तेदारों तक को अपना अंग देने से कतराते हैं।

ख़ास ख़बरें
देश के अलग-अलग हिस्सों में अंगदान को हराम क़रार देने वाले कई फ़तवे आए है। इनकी वजह से अंगदान करने का मन बनाने वाले भी क़दम पीछे खींच लेते हैं।

तेलंगाना 

तेलंगाना राज्य ने 2013 से 2016 के बीच 241 ब्रेनडेड लोगों के अंगादान से 1,000 लोगों की ज़िंदगी बचाने का रिकॉर्ड बनाया। इनमें 39 मुसलमान थे। इन्हें किडनी या लिवर अंगदान के ज़रिए मिले। हैरानी की बात यह है कि एक भी डोनर मुसलमान नहीं था। लगभग ऐसी स्थिति दूसरे राज्यों में भी है। मुसलमान अंग लेने की उत्सुकता तो दिखाते हैं, लेकिन अंगदान के प्रति एकदम उदासीन नज़र आते हैं। 

पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी सैयद किरमानी इसकी जीती जागती मिसाल हैं। 2018 में उन्होंने चेन्नई में आँखें दान करने के लिए बने रोटरी राजन आई बैंक और रोटरी क्लब ऑफ मद्रास की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में अपनी आँखें दान करने का संकल्प लिया। तब उन्होंने कहा था, 'मैं अपनी आँखें दान कर रहा हूं, आप भी आँखें दान करें।'

क्यों मुकरे किरमानी?

बाद में वे इस संकल्प से मुकर गए। उन्होंने कहा कि वे एक भावुक इंसान हैं और उस वक़्त राजन की पहल से इतना प्रभावित हुए कि अपनी आँखें दान देने की बात कह दी। कुछ धार्मिक मूल्यों के कारण अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करने में सक्षम नहीं हो सके। ज़ाहिर हैं कि वे अपने मन में बैठी इसी धारणा की वजह से पीछे हटे कि अंगदान करना इसलाम में हराम है।  

साल 2018 में उत्तर प्रदेश के कानपुर के रहने वाले अरशद मंसूरी ने मेडिकल के छात्रों को शोध के लिए अपना शरीर दान करने की घोषणा की तो उनके ख़िलाफ़  फ़तवा जारी हो गया। 

पहले उन्होंने अपनी आँखें दान करने की बात कही थी। अरशद मंसूरी एक निजी मेडिकल कॉलेज में जनरल मैनेजर हैं। उनके ख़िलाफ़ फ़तवा जारी करने वाले इमाम मौलाना हनीफ़ बरकती ने कहा कि अंगदान करना उनके धर्म के ख़िलाफ़ है।

फ़तवे में अरशद के सामाजिक बहिष्कार करने की अपील की गई। अरशद को फोन पर धमकियाँ मिलने लगीं। उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस में शिकायत दर्ज करानी पड़ी। 

दो तरह के अंगदान

अंगदान दो तरह से होता है। पहला ज़िंदा व्यक्ति का अंगदान करना और दूसरा व्यक्ति के मर जाने के बाद या ब्रेनडेड की स्थिति में। जीवित व्यक्ति को ख़ुद अपने अंगदान की वसीयत करनी पड़ती है। मरने  या ब्रेनडेड की स्थिति में उसके परिवार वाले अंगदान का फैसला करते है। मुसलिम धर्मगुरुओं की राय हर मामले की तरह इस पर भी बँटी हुई है। ज़्यादातर का मानना है कि इंसान अपने शरीर का मालिक नहीं हैं लिहाज़ा वह अंगदान करने का अधिकार नहीं रखता। साथ ही यह भी माना जाता है कि अंगदान एक तरह का अंगभंग हैं और इससे मरने वाले की आत्मा परेशान होती है।

वहीं कुछ उलेमा ऐसे भी हैं जिनकी इस बात में गहरी आस्था है कि अंगदान इसलाम की ओर से दिए गए सबसे ख़ूबसूरत तोहफ़ों में से एक है। वे मानते हैं कि किसी का जीवन बचाना उसे बेशकीमती उपहार देना है। इसलाम में जान बचाने के लिए हराम चीज़ें खाने तक की इजाज़त दी गई है। 

इसलाम में अंगदान

ऐसे में अगर रफ़त के परिवार वालों ने ब्रेनडेड होने पर उसके अंगदान करके चार लोगों की ज़िंदगी बचाई है तो उनके इस क़दम को साहसिक माना ही जाना चाहिए। 

क़ुरआन की सूरह अल बक़रा की आयत नंबर 219 में कहा गया है, '.....और तुम से लोग पूछते हैं कि अल्लाह की राह में क्या ख़र्च करें? तुम उनसे कह दो कि जो तुम्हारी ज़रुरत से ज़्यादा हो। यूँ अल्लाह अपने एहकाम (आदेश) अपनी आयतों मैं साफ़ साफ़ बयान करता है।’
रफ़त के ब्रेनडेड होने के बाद उसके लिए दिल, जिगर और गुर्दे की कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी। अगर इसके परिवार वालों ने इन्हें दान करके चार लोगों की ज़िंदगी बचाई है तो इसलामी विचारधारा के मुताबिक उन्होंने चारगुनी इंसानियत को बचाया है। क़ुरआन में ही कहा गया है कि जिसने एक इंसान का क़त्ल किया उसने पूरी इंसानियत का कत्ल किया। जिसने एक इंसान की जान बचाई उसने पूरी इंसानियत की जान बचाई। इसी लिए रफ़त के परिवार वालों का यह क़दम फ़तवेवाज मौलवियों और मुफ़्तियों के मुँह पर तमाचा है। 
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यूसुफ़ अंसारी

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