आख़िरकार मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को जाना पड़ा। ‘आख़िरकार’ इसलिए कि परमबीर सिंह को उनके पद से हटाने की मांग, कोशिश और इस बाबत अभियान लंबे समय से चलते रहे थे- राजनीतिक रूप से भी और मीडिया की ओर से भी। मुंबई पुलिस की साख बचाने का कवच पहनकर परमबीर ने बिहार पुलिस से भी दो-दो हाथ किए जब उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत केस की जाँच करने आई टीम को ही क्वारंटीन कर डाला।
टीआरपी घोटाला, अन्वय नाईक मर्डर केस जैसे मामलों में परमबीर सिंह और मीडिया टाइकून अर्णब गोस्वामी आमने-सामने दिखे, मगर राष्ट्रपति पदक प्राप्त परमबीर पर कभी कोई हावी नहीं हो सका। इस बार ऐसा क्या हुआ कि उद्धव सरकार ने परमबीर पर ही कार्रवाई की तलवार चला दी?
बात सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अम्बानी की थी। उस अम्बानी की जिनके रिलायंस जिओ के विज्ञापन वाले पोस्टर में ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिखे थे। मुकेश अंबानी के आवास एंटीलिया के बाहर 25 फ़रवरी को विस्फोटक लदे स्कॉर्पियो को खड़ा कर जाने की घटना कोई छोटी-मोटी घटना नहीं थी। इससे भी ख़तरनाक आगे कुछ और अनहोनी की धमकी थी।
मगर, इससे एक महीने पहले 29 जनवरी को दिल्ली में इजराइल दूतावास के सामने बम विस्फोट की घटना क्या छोटी घटना थी जहाँ से कुछ मिनट पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला बीटिंग रीट्रिट समारोह के बाद गुजरा था? दोनों घटनाओं की जाँच गृह मंत्रालय ने एनआईए को सौंप दी। एक में मुंबई पुलिस कमिश्नर नप गये, दूसरे के बारे में देश को अब तक पता नहीं है कि ज़िम्मेदारी किसकी रही। दिल्ली पुलिस की रिपोर्टिंग सीधे गृह मंत्री अमित शाह को है।
दिल्ली विस्फोट में परमबीर जैसी कार्रवाई क्यों नहीं?
8 मार्च को एनआईए ने जाँच शुरू की और दसवें दिन मुंबई पुलिस कमिश्नर की छुट्टी। सचिन वाजे ने एनआईए की जाँच में कबूला है कि उसने अपना करियर चमकाने के लिए ऐसी घटना को प्लॉट किया। महत्वपूर्ण वजह नहीं है, महत्वपूर्ण है घटना।
मुंबई के 7 पुलिस अफ़सर एनआईए के राडार पर हैं। सचिन वाजे की सीधे रिपोर्टिंग मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को थी और 16 साल बाद वाजे का निलंबन रद्द कर उन्हें पोस्टिंग देने वाले अधिकारी भी परमबीर ही थे। सभी हाई प्रोफ़ाइल मामले जो सचिन को सौंपे गये थे उसकी निगरानी ख़ुद परमबीर ही कर रहे थे। चर्चित टीआरपी घोटाला, इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाईक की आत्महत्या मामले में रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ़ अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी, कंगना-ऋतिक के बीच ईमेल विवाद, रैपर बादशाह के फेक फॉलोअर बढ़ाने जैसे मामलों की जाँच सचिन के हाथों में थी। इन सभी मामलों में वे परमबीर सिंह को रिपोर्ट कर रहे थे।
...तो इसलिए हुआ परमबीर का तबादला!
हर तरह के राजनीतिक दबावों को मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर झेल गये। अर्णब गोस्वामी मामले में प्रेस कॉन्फ्रेन्स करने पर अदालत से फटकार भी पड़ी, लेकिन एक के बाद एक खुलासे से ये अपना बचाव भी करते रहे। अर्णब गोस्वामी का चैट सार्वजनिक होना ऐसा ही खुलासा था जिससे आभास हो रहा था कि अर्णब को बालाकोट हमले तक की जानकारी थी!
मीडिया पर्सन से लेकर राजनीतिज्ञों को परमबीर सिंह ने झेल लिया। मगर, इस बार मामला मुकेश अम्बानी का था। उद्धव सरकार भी उनकी मदद में खड़ी नहीं हो सकी। संजय राउत ने माना कि परमबीर सिंह का तबादला रूटीन ट्रांसफर नहीं है। बाहर जो चर्चा चल रही है उसकी अनदेखी सरकार नहीं कर सकती थी।
मुंबई पुलिस कमिश्नर के तौर पर परमबीर सिंह मंगलवार 16 मार्च को उद्धव ठाकरे से मिले और इससे पहले शरद पवार-उद्धव में मुलाक़ात हुई। इन मुलाक़ातों से पहले महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के इस्तीफ़े की चर्चा भी हवा में तैर रही थी।
साफ़ था कि मुकेश अंबानी केस में किसी न किसी की बलि तो ली ही जाएगी। शरद पवार ने अपनी पार्टी के नेता अनिल देशमुख को इस्तीफ़े से तत्काल तो बचा लिया, मगर इसके बदले मुंबई पुलिस कमिश्नर की बलि ले ली गयी।
उद्धव सरकार पर हमला तो रूटीन की बात है लेकिन मुकेश अंबानी जान के लिए जान लड़ा देने का यह मौक़ा दुर्लभ है। यही वजह है कि बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस एक ऐसे समय में जब प्रदेश का राजनीतिक तापमान चढ़ा हुआ था, दिल्ली तलब कर लिए गए। दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस में देवेंद्र ने महाराष्ट्र सरकार पर जोरदार हमला बोला। पुराने सभी मामलों को इकट्ठा कर परमबीर सिंह के बहाने उद्धव ठाकरे पर ताबड़तोड़ हमले कर डाले। सचिन को संरक्षण देने वाले राजनीतिज्ञों पर भी कार्रवाई की मांग फडणवीस ने की। इस पर शिवसेना नेता संजय राउत ने चुनौती दी कि नाम लेकर खुलकर आरोप लगाएँ, तभी वे मानेंगे कि आरोप लगाने वाले में दम है।
अगर उद्धव सरकार मुकेश अम्बानी केस से सिर्फ़ मुंबई पुलिस कमिश्नर पर कार्रवाई कर ख़ुद को बचा लेती है तो यह उसके लिए बड़ी बात होगी। अलग-अलग दलों से बनी महाअघाड़ी सरकार के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। अगर उद्धव सरकार मुकेश अंबानी को धमकी दे रही ताक़तों पर एक्शन ले सके तो उनकी सरकार को कोई ख़तरा नहीं है। लेकिन, इस मामले में किसी चूक को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा यह भी तय है।
अब यह बात साफ़ तौर पर समझ में आ जानी चाहिए कि एनआईए चाहे दिल्ली में हाई प्रोफ़ाइल बम विस्फोट की जाँच ही क्यों ना कर ले, लेकिन उसकी जाँच की आँच यहाँ किसी बड़े पुलिस अधिकारी या गृह मंत्रालय तक नहीं पहुँच सकती। मगर, यही एनआईए की जाँच उद्धव सरकार के प्रशासनिक अफ़सरों और ख़ुद सरकार के लिए बड़ा ख़तरा हो सकती है। फ़र्क सिर्फ़ एक है और वह है उद्योगपति की साख जिनके क़दमों में राजनीतिज्ञ लोटते हैं।
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