लॉकडाउन ने किस तरह से बेरोज़गारी बढ़ाई है और किस-किस तरह के लोग इसकी चपेट में आए हैं, यह उत्तर प्रदेश में मनरेगा के तहत काम करने वालों को देखने से साफ़ हो जाता है।
अकुशल मज़दूरों के लिए बनी इस योजना में अब काम मांगने वालों में पोस्ट ग्रैजुएट, बी. एड और मैनेजमेंट तक की पढ़ाई करने वाले शामिल हैं।
मनरेगा में एम. ए. पास
एनडीटीवी ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सिर्फ़ 150 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश में बसे जुनैदपुर में रोशन कुमार से मुलाक़ात की, जो उस समय मनरेगा के तहत एक खेत में काम कर रहे थे और गड्ढे खोद रहे थे। रोशन कुमार एम. ए. पास हैं।एम. ए. पास रोशन कुमार ने कहा, ‘मैं कुछ दिन पहले तक दिल्ली में अच्छी नौकरी करता था और सम्मानजनक पैसे पाता था। लॉकडाउन में वह बंद हो गया और अब उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं।’
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‘मैं बी.बी.ए. पास हूं, लेकिन मुझे बहुत अच्छी नौकरी नहीं मिली। अंत में मुझे 8 हज़ार रुपए की नौकरी मिली, लेकिन लॉकडाउन के दौरान वह भी नहीं रही। ऐसे में मैं अपने गाँव लौट आया, ग्राम प्रधान ने मनरेगा में काम ढूंढने में मेरी मदद की।’
सत्येंद्र कुमार, बीबीए पास, मनरेगा मज़दूर
मनरेगा मज़दूर एम. ए., बी. एड.
इसी तरह सुरजीत कुमार एम. ए. के साथ बी. एड. भी हैं। लेकिन, उन्हें कोई दूसरी नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने मनरेगा में काम करने का फ़ैसला किया। उन्होंने कहा कि वह यह काम मजबूरी में कर रहे हैं क्योंकि उन्हें कोई दूसरा काम नहीं मिला।14 करोड़ मनरेगा कार्ड
देश में लगभग 14 करोड़ लोगों के पास मनरेगा कार्ड है। यदि हर किसी को साल में 100 दिन रोज़गार दिया जाए तो सरकार को 2.8 लाख करोड़ रुपए खर्च करने होंगे।“
केंद्र सरकार यदि चाहती है कि मनरेगा कार्ड वाले हर आदमी को काम मिले तो उसे और पैसे देने चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करनी चाहिए कि मनरेगा कार्ड वाले हर आदमी को साल में कम से कम 100 दिन काम ज़रूर मिले।
ऋतिका खेड़ा, अर्थशास्त्री
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