कोरोना महामारी के बीच धार्मिक आधार पर भेदभाव किए जाने और इसे साम्प्रदायिक रूप दिए जाने की चर्चाओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि कोरोना वायरस हमला करने से पहले जाति, धर्म, रंग, पंथ, भाषा या सीमा नहीं देखता है। उन्होंने कहा कि यह सभी को एक समान प्रभावित करता है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इसीलिए हमारी प्रतिक्रिया के रूप में प्राथमिकता एकता और भाईचारा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस लड़ाई में हम साथ हैं।
प्रधानमंत्री ने इसको लेकर लिंक्डइन पर एक पोस्ट लिखा है। उन्होंने लिखा है, 'इतिहास में बीते लम्हों से अलग जब देश या समाज एक-दूसरे के ख़िलाफ़ थे, आज हम एक साथ एक आम चुनौती का सामना कर रहे हैं। भविष्य एक साथ रहने और उस स्थिति से उबरने के बारे में होगा।' लिंक्डइन पर लिखे अपने उस लेख का लिंक प्रधानमंत्री ने ट्विटर पर भी साझा किया है।
As the world battles COVID-19, India’s energetic and innovative youth can show the way in ensuring healthier and prosperous future.
— Narendra Modi (@narendramodi) April 19, 2020
Shared a few thoughts on @LinkedIn, which would interest youngsters and professionals. https://t.co/ZjjVSbMJ6b
प्रधानमंत्री की यह प्रतिक्रिया उस समय आई है जब तब्लीग़ी जमात का मामला आने के बाद से देश भर में नफ़रत की कई घटनाएँ सामने आ रही हैं। आज ही एक रिपोर्ट आई है कि मेरठ के वेलेंटिस कैंसर हॉस्पिटल ने विज्ञापन निकालकर कहा है कि हॉस्पिटल अब नये मुसलिम मरीजों को तब तक भर्ती नहीं करेगा जब तक कि वह कोरोना नेगेटिव होने की रिपोर्ट नहीं देगा। ऐसी शर्त दूसरे धर्म के लोगों के लिए नहीं है।
इसस पहले हाल ही में गुजरात के अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में भी धर्म के आधार पर कोरोना वार्ड बनाने की ख़बर आने के बाद ऐसा ही विवाद हुआ था। तब गुजरात सरकार ने उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। उस हॉस्पिटल के मेडिकल सुप्रींटेंडेंट डॉ. गुणवंत एच राठौड़ ने भी कहा था कि धर्म के आधार पर अलग कोरोना वार्ड नहीं बनाया गया है और उनके बयान को ग़लत तरीक़े से पेश किया गया है। यानी वह पिछले बयान से पूरी तरह पलट गए। एक दिन पहले ही 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने लिखा था कि राठौड़ ने कहा था कि 'यहाँ हमने हिंदू और मुसलिम मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बनाए हैं।' इसके बाद विवाद थम गया।
मुसलिमों के ख़िलाफ़ ऐसे नफ़रत वाले बयान के कारण ही हिमाचल प्रदेश में जम्मू-कश्मीर के 9 मुसलिम मज़दूरों पर हमला कर दिया गया था। सरपंच, वकील और स्थानीय लोग कहते हैं कि हमले का कारण तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम को लेकर 'नफ़रत फैलाने वाला कैंपेन' है। वे कहते हैं कि सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाने वाले बयान ने लोगों के दिमाग़ में ज़हर घोल दिया है।
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