इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जिस आदेश में यूपी में स्वास्थ्य व्यवस्था 'राम भरोसे' वाली टिप्पणी की थी उस पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रोक लगा दी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कुछ दिनों पहले ही योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार से कहा था कि चार महीने में राज्य के अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में स्वास्थ्य सुविधाएँ सुधरनी चाहिए। यूपी में मेडिकल ऑक्सीजन, अस्पताल बेड जैसी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से कोरोना मरीज़ों की मौत की शिकायतों के बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश आया था।
'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस विनीत सरन और बीआर गवई की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आज कहा कि उच्च न्यायालयों को ऐसे आदेश पारित करने चाहिए जिन्हें लागू करना संभव हो। हालाँकि इसने उच्च न्यायालय की 'राम भरोसे' वाली टिप्पणी को यह कहते हुए रद्द करने से इनकार कर दिया कि इस तरह की टिप्पणियों को सलाह के रूप में माना जाना चाहिए।
इसी हफ़्ते सोमवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजित कुमार की बेंच ने कोरोना के मरीजों को बेहतर सुविधाएँ देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि गाँवों और छोटे शहरों में स्वास्थ्य सुविधाएँ राम भरोसे हैं।
अदालत ने कहा था, 'बीते कुछ महीने में हमने देखा है कि उत्तर प्रदेश का स्वास्थ्य ढांचा बेहद कमजोर है। जब यह स्वास्थ्य ढांचा सामान्य हालात में लोगों को चिकित्सा सुविधा नहीं दे पाता तो इसका इस महामारी में फ़ेल होना निश्चित ही था।'
मेडिकल कॉलेजों में सुविधाओं में सुधार के अलावा उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार को राज्य के बी-ग्रेड और सी-ग्रेड के शहरों को कम से कम 20 एम्बुलेंस उपलब्ध कराने के लिए भी कहा था।
हाई कोर्ट ने हर गाँव में गहन देखभाल इकाई की सुविधा के साथ दो एम्बुलेंस, सभी नर्सिंग होम बेड पर ऑक्सीजन, 30 से अधिक बिस्तरों वाले नर्सिंग होम में ऑक्सीजन संयंत्र, और सभी नर्सिंग होम और अस्पतालों में अधिक आईसीयू बेड की सुविधा करने को भी कहा था।
'एनडीटीवी' की रिपोर्ट के अनुसार, इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। 'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए।
मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि भले ही निर्देश अच्छे अर्थ थे, लेकिन उन्हें लागू करना मुश्किल था। उन्होंने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा 'राम भरोसे' वाली टिप्पणी का प्रभाव राज्य में स्वास्थ्य देखभाल करने वाले पेशेवरों का मनोबल गिराने वाला होगा।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालयों को वैसे आदेश नहीं देने चाहिए जिसको लागू करना संभव नहीं हो। हालाँकि इसने यह भी कहा कि इसने सभी उच्च न्यायालयों के लिए यह आदेश नहीं दिया है और यह सिर्फ़ इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ है।
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