अब तक लोकतंत्र सूचकांक में भारत के कुछ स्थान खिसकने की ही रिपोर्टें आती रही थीं, लेकिन अब एक ताज़ा रिपोर्ट में तो कहा गया है कि भारत एक लोकतंत्र के रूप में अपनी स्थिति खोने के कगार पर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के लिए ऐसी स्थिति इसलिए है कि क्योंकि मीडिया, नागरिक समाज और विपक्ष के लिए जगह इतनी कम हो गई है कि वह लगातार निरंकुशता की ओर बढ़ रहा है। जो रिपोर्ट जारी की गई है उस का शीर्षक ही है- 'आटोक्रेटाइज़ेशन सर्जेज- रेजिस्टेंस ग्रो’। यानी 'निरंकुशता में उछाल- प्रतिरोध बढ़ा'।
यूरोपीय देश स्वीडन स्थित वी-डेम संस्था ने यह 2020 की यह 'लोकतंत्र की रिपोर्ट' जारी की है। गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय में स्थित वी-डेम यानी वैरायटी ऑफ़ डेमोक्रेसी इंस्टिट्यूट एक स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान है।
वी-डेम की यह ताज़ा रिपोर्ट भी मोदी सरकार की उन आलोचनाओं को ही पुष्ट करती हुए दिखती है।
रिपोर्ट में कहा गया है, 'जून 2019 में व्लादिमीर पुतिन ने उदारवाद के ख़त्म होने घोषणा की थी। पहली नज़र में इस डेमोक्रेसी रिपोर्ट में बताया गया डेटा इस दावे का समर्थन करता है क्योंकि ये उदार लोकतांत्रिक संस्थानों में वैश्विक गिरावट दिखाते हैं। 2001 के बाद पहली बार दुनिया में लोकतांत्रिक देशों की तुलना में अधिक निरंकुशता है। हंगरी अब एक लोकतंत्र नहीं है...। भारत लगातार गिरावट के रास्ते पर है, इस हद तक कि उसने लोकतंत्र के रूप में लगभग अपनी स्थिति खो दी है। संयुक्त राज्य अमेरिका - उदार लोकतंत्र का पूर्व मोहरा - अपने रास्ते से भटक गया है।'
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2001 के बाद पहली बार निरंकुशता अब बहुसंख्या में आ गई है क्योंकि अब इसमें 92 देश शामिल हो गए हैं और इसके तहत 54 फ़ीसदी जनसंख्या आती है।
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में जो 10 देश सबसे अधिक निरंकुशता की ओर बढ़े हैं उनमें हंगरी, तुर्की, पोलैंड, सर्बिया, ब्राज़ील और भारत शामिल हैं। इन देशों में निरंकुश सरकारों ने पहले मीडिया और नागरिक समाज के लिए गुंजाइश सीमित कर दी। एक बार उन्होंने जब मीडिया और नागरिक समाज में निगरानी करने वालों को नियंत्रित कर लिया तब उन्होंने चुनाव की गुणवत्ता को ख़त्म करना शुरू कर दिया।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता पर हमले दो साल पहले 19 देशों की तुलना में अब 31 देशों को प्रभावित कर रहे हैं। इसके अलावा, अकादमिक स्वतंत्रता में भी पिछले 10 वर्षों में निरंकुश देशों में 13% की औसत गिरावट दर्ज की गई है। इसमें भारत भी शामिल है। शांतिपूर्ण सभा और विरोध के अधिकार में ऐसे देशों में औसतन 14% की गिरावट आई है।
लोकतंत्र सूचकांक में 51वें स्थान पर
इससे पहले की दूसरी रिपोर्ट में भारत में लोकतांत्रिक स्थिति गिरती हुई दिखाई गई थी। द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट यानी ईआईयू द्वारा 2019 के लिये लोकतंत्र सूचकांक की वैश्विक सूची में भारत 10 स्थान लुढ़क कर 51वें स्थान पर आ गया। यह सूची जनवरी 2020 में आई थी। संस्था ने इस गिरावट की मुख्य वजह देश में 'नागरिक स्वतंत्रता में गिरावट' बताई। सूची के मुताबिक़ भारत का कुल अंक 2018 में 7.23 था जो 2019 में घटकर 6.90 रह गया। यह सूचकांक पाँच श्रेणियों पर आधारित था- चुनाव प्रक्रिया और बहुलतावाद, सरकार का कामकाज, राजनीतिक भागीदारी, राजनीतिक संस्कृति और नागरिक स्वतंत्रता।वैसे, लोकतांत्रिक स्थिति को लेकर अदालतें भी सरकार को चेताती रही हैं। 2018 में भीमा-कोरेगाँव हिंसा में गिरफ़्तार पाँच सामाजिक कार्यकर्ताओं के मामले की सुनवाई के दौरान तत्कालीन चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच में शामिल जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि विरोध की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता। इससे पहले भी जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था, ‘असहमति लोकतंत्र के लिए सेफ़्टी वॉल्व है। अगर आप इन सेफ़्टी वॉल्व को नहीं रहने देंगे तो प्रेशर कुकर फट जाएगा।'
दरअसल, दुनिया भर में सरकारें निरंकुश आज़ादी चाहती हैं। वे अपने से अलग या विरोधी सोच रखने वालों का दमन करने के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं का सहारा लेती हैं। वे मुश्क़िल से ही असहमति को बर्दाश्त कर पाती हैं। यही वजह है कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर लगातार चोट हो रही है।
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