ऐसे समय जब पहले से ही पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें आसमान छू रही हैं और दिल्ली जैसे कुछ शहरों में यह अब तक की रिकार्ड ऊंचाई पर है, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उस पर कृषि अधिभार यानी 'सेस' लगा दिया है।
निर्मला सीतारमण ने पेट्रोल पर 4 रुपए और डीज़ल पर 2.50 रुपए प्रति लीटर कृषि अधिभार यानी 'एग्रीकल्चरल सेस' लगाने का एलान किया है।
कच्चा तेल सस्ता, पेट्रोल महंगा
यह अजीब विरोधाभाष है कि भारत में पेट्रोल और डीजल की क़ीमतें ऐसे समय में रिकॉर्ड ऊँचाई पर है, जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें कम हैं। बीजेपी के सत्ता में आने के एक साल पहले यानी 2012-13 में कच्चे तेल की कीमत जहां 110 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गई थी, वह उनके सत्ता में आने के बाद ही गिरने लगी और कोरोना काल में वह 25 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गई।अभी भी मनमोहन सिंह के समय की कीमत 120 डॉलर प्रति बैरल से काफी कम है, लेकिन उस जमाने से बहुत ज्यादा है।
मनमोहन सिंह सरकार ने 25 जून 2010 को पेट्रोल की कीमत से सरकारी नियंत्रण हटा लिया, यानी उसकी कीमत सरकार तय नहीं करेगी, वह बाज़ार के मांग-खपत सिद्धान्त से तय होगी। नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के तुरन्त बाद 19 अक्टूबर, 2014 को डीज़ल की कीमत को नियंत्रण-मुक्त कर दिया।
जितनी कीमत, उससे ज़्यादा टैक्स
मार्च 2014 में कच्चे तेल की कीमत 107.14 डॉलर यानी 6,655.54 रुपए प्रति बैरल थी, वह अक्टूबर 2020 में 41.53 डॉलर यानी 3,050.38 रुपए प्रति बैरल हो गई। लेकिन 15 मार्च 2014 को पेट्रोल की कीमत 73.20 रुपए और डीज़ल की कीमत 55.48 रुपए प्रति लीटर हो गई। 16 दिसंबर 2020 को पेट्रोल 90.34 रुपए और डीज़ल 80.51 रुपए प्रति लीटर तक बिक रहा था।
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत के साथ ही पेट्रोल-डीज़ल की कीमत रोज घटती-बढ़ती है क्योंकि सरकार सब्सिडी नहीं बढ़ाती है। इस वजह से शनिवार को पेट्रोल की कीमत दिल्ली में जो थी, उसका लगभग 65 प्रति हिस्सा तो सिर्फ टैक्स था।
पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनलिसिस सेल (पीपीएसी) के अनुसार, 2019-2020 के दौरान केंद्र सरकार को पेट्रोल-डीज़ल की बिक्री से 2.23 लाख करोड़ रुपए का टैक्स मिला। वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में 2.67 लाख करोड़ रुपए बतौर उत्पाद कर मिलने की संभावना जताई गई है।
अपनी राय बतायें