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कोरोना से 1 करोड़ नौकरियाँ गईं, 97% लोगों की कमाई घटी 

सीआईआई प्रेसिडेंट और मशहूर बैंकर उदय कोटक ने कहा भी है कि सरकार को अब बड़े पैमाने पर नोट छापकर गरीबों को सीधे पैसा बांटना चाहिए और उन सारे कारोबारों को राहत देनी चाहिए जिनपर इस महामारी की गंभीर मार पड़ी है, और जहां रोजगार पर बुरा असर हुआ है। 
आलोक जोशी

सरकार के दावों पर और अख़बारों के पहले पन्नों पर यक़ीन करें तो कोरोना की दूसरी लहर भी अब ख़त्म होने को है। सवाल पूछा जाने लगा है कि बाज़ार कब खुलेंगे, कितने खुलेंगे? हम कब बाहर निकल कर खुले में घूम पाएँगे? और ज़िंदगी कब सामान्य या पहले जैसी हो जाएगी? 

बहुत जल्दबाज़ी है, व्यापारियों को, आम लोगों को और सरकारों को भी। कि कब ये बला टलने का पक्का संकेत आए और कितनी तेज़ी से लॉकडाउन हटाकर इकोनॉमी को तेज़ी से पटरी पर दौड़ाने का इंतज़ाम किया जाए। यह ज़रूरी भी है। क्योंकि साल भर से ज्यादा वक्त हो चुका है। लोगों के पास काम नहीं है, कमाई नहीं है। खर्च कम करते करते भी अब न सिर्फ गरीब बल्कि मध्यवर्ग के परिवार भी इस हाल में आ चुके हैं कि अब पाई पाई का हिसाब लगाना पड़ रहा है। बहुत से लोग तो कंगाली की चपेट में हैं। नौकरियां चली गई हैं या फिर पगार नहीं मिल रही है। यह सभी चाहते हैं कि अब इस मुसीबत से निजात मिले। घर से निकलें, कुछ काम करें और किसी तरह अपना घर चलाने का इंतजाम करें। यही हाल छोटे व्यापारियों का भी है और छोटी मोटी नौकरियां करनेवालों का भी। 

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ऐसे में उन परिवारों की सोचिए जिनका कमानेवाला सदस्य कोरोना की भेंट चढ़ गया और अब बाकी लोगों को न सिर्फ इस दुख का सामना करना है बल्कि रोज़ी रोटी का इंतजाम भी करना है। एक एक परिवार का हिसाब लगाना तो मुश्किल है, लेकिन सीएमआईई का कहना है कि जब से कोरोना संकट शुरू हुआ, तब से देश में नौकरीपेशा लोगों की गिनती में भारी गिरावट हुई और इसमें सुधार के आसार नहीं दिख रहे हैं। कोरोना के ठीक पहले देश में कुल चालीस करोड़ पैंतीस लाख लोगों के पास रोजगार था। तब से अब तक सबसे अच्छी स्थिति दिसंबर और जनवरी में आई जब यह गिनती वापस चालीस करोड़ पर पहुंची, हालांकि तब भी पैंतीस लाख लोगों के पास रोजगार नहीं था। लेकिन अब यह गिनती उनतालीस करोड़ पर है, यानी तब से बेरोजगारों की गिनती फिर एक करोड़ बढ़ चुकी है। और कोरोना से पहले के दौर के मुकाबले एक करोड़ पैंतीस लाख लोग बेरोजगार हैं। 

जिन 39 करोड़ लोगों के पास रोजगार हैं इनमें से करीब सात करोड़ तीस या चालीस लाख लोग हैं जिनके पास पक्की या कच्ची नौकरियां हैं। यानी जिन्हें हर महीने बंधी तनख्वाह मिलती है। कोरोना के पहले ऐसे लोगों की गिनती करीब साढ़े आठ करोड़ थी। यानी एक करोड़ से ऊपर लोग ऐसे हैं जिनकी नौकरी अब नहीं है। सोचिए इनके घरों में क्या चल रहा होगा। 

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई इस विषय पर सबसे ज्यादा काम करता है। उसके सीईओ महेश व्यास का कहना है कि यह स्थिति बहुत खतरनाक है। उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था मजबूत रहे इसके लिए ज़रूरी है कि जब हम जवान हों तब हमारी कमाई इतनी हो कि बुरे वक्त के लिए बचत कर सकें। बुरे वक्त का मतलब बुढ़ापे का वो समय है जब आप कमाई नहीं करते हैं। लेकिन अगर यह बुरा वक्त जवानी में ही आ जाए तो मुसीबत दोगुनी हो जाती है। क्योंकि लोग अपने आज के खर्च के इंतजाम में ही फंस जाते हैं और फिर बुढ़ापे के लिए बचत भी नहीं हो पाती। और आज के दौर में नौकरीपेशा लोगों का एक बहुत बड़ा हिस्सा ऐसी हालत में दिख रहा है। दुकानदारों, और छोटे व्यापारियों का भी यही हाल है। 
समस्या की गहराई में जाने के लिए एक और आंकड़ा देखने से मदद मिलेगी। सीएमआईई ने अपने सर्वे में लोगों से पूछा कि एक साल पहले के मुकाबले आज उनकी कमाई का क्या हाल है। सिर्फ तीन परसेंट लोगों ने कहा कि उनकी आमदनी पिछले साल से बेहतर है।

पचपन परसेंट लोगों ने तो साफ साफ कहा कि उनकी आमदनी एक साल पहले के मुकाबले कम हो गई है, और बाकी का कहना था कि कमाई न बढ़ी है न घटी है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप महंगाई को हिसाब में जोड़ लें तो देश में सत्तानबे परसेंट लोगों की कमाई एक साल में बढ़ने के बजाय कम हो गई है। यह बहुत खतरनाक स्थिति है और इसके साथ ही सवाल उठता है कि इस हालत से उबरा कैसे जाएगा। 

पिछले साल जब पहली बार लॉकडाउन लगा तो एक झटके में सब कुछ बंद भी हो गया, शेयर बाज़ार भी गिर गया, लेकिन उसके बाद सब कुछ उतनी ही तेज़ी से वापस भी आता हुआ दिखा। इस बार भी अनेक जानकारों ने कहा कि लॉकडाउन के दूसरे दौर का इकोनॉमी पर असर उतना नहीं होगा जितना पहली बार हुआ था। यानी इस बार इकोनॉमी में सुधार आसानी से होता दिखेगा। 

cmie data says unemployment in india record high - Satya Hindi

मगर सच तो कुछ और ही है। दिग्गज इन्वेस्टमेंट बैंक बार्कलेज़ ने हिसाब लगाया है कि मई के महीने में लॉकडाउन का एक एक हफ्ता भारत को आठ अरब डॉलर यानी करीब अठावन हज़ार करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचा रहा है। बार्कलेज़ ने भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान भी फिर घटा दिया है और अब उसके हिसाब से दो हज़ार इक्कीस बाईस में देश की जीडीपी बढ़ने की रफ्तार नौ दशमलव दो परसेंट ही रह जाएगी। इससे दो महीने पहले भी बार्कलेज़ ने यह अनुमान ग्यारह परसेंट से घटाकर दस परसेंट किया था। उस वक्त तक कोरोना की दूसरी लहर आने की आशंका भी साफ थी और लक्षण भी दिख रहे थे, लेकिन  बार्कलेज ने उसे हिसाब में जोड़ा नहीं था। 

अब बार्कलेज़ ने उसका हिसाब लगा लिया है। उसके अर्थशास्त्री राहुल बाजोरिया और श्रेया सोढानी का कहना है कि हालांकि कोरोना की दूसरी लहर अब उतार पर है लेकिन इससे हुआ आर्थिक नुकसान काफी बड़ा है। बीमारी को रोकने के लिए जो लॉकडाउन लगाए गए वो बहुत कड़े थे। और दूसरी तरफ वैक्सीनेशन का काम काफी धीमा पड़ गया है। 

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टीके लगने की रफ्तार कम होने से मध्यम अवधि या मीडियम टर्म में देश की तरक्की के लिए बड़ा खतरा खड़ा हो सकता है। खासकर उस सूरत में अगर देश को कोरोना की तीसरी लहर का सामना करना पड़ जाए। इस बार बार्कलेज़ ने इस आशंका का भी हिसाब लगाया है और उसका कहना है कि ऐसी बुरी हालत में देश की अर्थव्यवस्था को बयालीस दशमलव छह अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ सकता है। यानी तीन लाख करोड़ से ऊपर का झटका। बार्कलेज़ के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि उस हालत में भारत की जीडीपी बढ़ने की रफ्तार और गिरकर इस वित्तवर्ष में सात दशमलव सात परसेंट ही रह सकती है।

बड़ी फिक्र की बात यह है कि इस वक्त किसी भी स्तर पर ऐसा कुछ होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है जो आर्थिक मोर्चे पर इस मुसीबत से निकलने का कारण बन सके। महेश व्यास पूछते हैं - क्या परिवार खुद ऐसा कर सकते हैं? बहुत मुश्किल है क्योंकि उनकी कमाई बंद हो रही है और वो कर्ज में डूब रहे हैं। 

कुछ गिने-चुने अमीर लोगों के पास जो पैसा है उसे वो असली कारोबार में लगाने के बजाय शेयर बाज़ार में लगा रहे हैं। वहां भी तेज़ी का बुलबुला कब तक चलेगा कहना मुश्किल है। रिजर्व बैंक ने उसपर सवाल उठाया है और कहा है कि ज़मीनी सच्चाई से एकदम कटी हुई यह तेज़ी खतरनाक हो सकती है।

कुछ कंपनियों ने दरियादिली दिखाई है और कोरोना के शिकार अपने कर्मचारियों को एक साल या ज्यादा का वेतन देने का एलान किया है। टाटा समूह ने तो ऐसे लोगों के परिवारों को उनकी पूरी नौकरी के दौर तक तनख्वाह, कंपनी के घर और मेडिकल सुविधाएं जारी रखने का फैसला किया है। लेकिन ज्यादातर कंपनियों की हालत यह है कि वो दो तिहाई कैपैसिटी पर काम कर रहे हैं। ऐसे में वो खुद नया पैसा लगाने या इकोनॉमी को धक्का देने की हालत में हैं नहीं। जब तक बाज़ार में नई डिमांड न आए उनके लिए ऐसा करने का तुक भी नहीं है। 

अब एक ही उम्मीद बचती है। वो है सरकार। सरकार ने पिछले साल तो बड़ा भारी राहत पैकेज देने का एलान भी किया था। हालांकि उसमें वास्तविक राहत कितनी थी इसपर आजतक विवाद चल रहा है। लेकिन इस बार सरकार की तरफ से कुछ होता हुआ दिखा नहीं है। लेकिन इतना साफ है कि अगर इस वक्त सरकार ने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया तो यह मुसीबत काफी खतरनाक मोड़ ले सकती है।

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सीआईआई प्रेसिडेंट और मशहूर बैंकर उदय कोटक ने कहा भी है कि सरकार को अब बड़े पैमाने पर नोट छापकर गरीबों को सीधे पैसा बांटना चाहिए और उन सारे कारोबारों को राहत देनी चाहिए जिनपर इस महामारी की गंभीर मार पड़ी है, और जहां रोजगार पर बुरा असर हुआ है। उनका कहना है कि वो वक्त आ गया है जब सरकार को सहारा देकर इकोनॉमी को मुसीबत से निकालने और रफ्तार देने का काम करना होगा। उनका कहना है कि अगर अब ये नहीं किया तो फिर कब?
(हिंदुस्तान से साभार)
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