मूंगफली, सरसों, वनस्पति, सोया, सूरजमुखी और पाम के पैक किए हुए खाने वाले तेल के दाम इस महीने पिछले एक दशक में रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गये हैं। इन खाद्य तेलों की मासिक औसत खुदरा क़ीमतें निकालकर इसकी तुलना की गई है। यह आधिकारिक आँकड़ा ही है।
आम उपभोक्ता पर तो इसका भार पड़ ही रहा है, सरकार के लिए भी मुश्किल बढ़ती जा रही है। यह सरकार के लिए भी कितनी बड़ी सिरदर्दी है यह इससे समझा जा सकता है कि सोमवार को खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने सभी हितधारकों के साथ बैठक की। विभाग ने राज्यों और इस व्यवसाय वाले लोगों से खाद्य तेलों की क़ीमतों को कम करने के लिए हर संभव क़दम उठाने को कहा।
सरकार को भी पता है कि यदि बढ़ती महंगाई पर काबू नहीं पाया तो राजनीतिक नुक़सान हो सकता है। ऐसा इशारा खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग की उस बैठक वाले बयान में भी दिया गया है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार बयान में कहा गया है, 'बैठक आयोजित करने की आवश्यकता इसलिए भी महसूस की गई क्योंकि केंद्र पिछले कुछ महीनों के दौरान खाद्य तेल की अंतरराष्ट्रीय क़ीमतों में वृद्धि की तुलना में भारत में खाद्य तेल की क़ीमतों में आनुपातिक वृद्धि से अधिक चिंतित था।'
सरसों के पैक तेल का मासिक औसत खुदरा मूल्य इस साल मई में अब तक के सबसे ज़्यादा 164.44 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुँच गया, जो पिछले साल मई में 118.25 रुपये की तुलना में 39 प्रतिशत अधिक है।
इस साल अप्रैल में इस तेल की क़ीमत 155.39 रुपये प्रति किलो थी। मई 2010 में तेल सबसे सस्ता था, जब यह आँकड़ा 63.05 रुपये प्रति किलोग्राम था।
खाना पकाने के तेलों की क़ीमतों में वृद्धि महामारी और विभिन्न राज्यों में लॉकडाउन के बीच हुई है जिसने आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया है।
बता दें कि मार्च में ख़बर आई थी कि खाने के तेल की क़ीमतें पिछले एक साल में 25 फ़ीसदी से लेकर 50 फ़ीसदी तक महंगी हो गई थी।
मूंगफली तेल का मॉडल (आम इस्तेमाल का तेल) मूल्य 9 मार्च, 2020 को 120 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर इस साल मार्च में 170 रुपये हो गया था। पिछले एक साल में पैक सरसों के तेल का मॉडल मूल्य 113 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर 140 रुपये हो गया था। इस अवधि के दौरान पाम ऑयल के मॉडल की क़ीमत में भी 50% की वृद्धि हुई थीं, जो 85 रुपये से बढ़कर 122 रुपये प्रति लीटर हो गया था।
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