अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ ने अपने अनुमान में कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था और ज़्यादा सिकुड़ेगी। इसका अनुमान है कि मार्च 2021 में ख़त्म होने वाले इस वित्त वर्ष में जीडीपी 10.3 फ़ीसदी सिकुड़ जाएगी। इसने पहले जून में 4.5 फ़ीसदी तक सिकुड़ने का अनुमान लगाया था। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के अनुमानों में इस तरह की गिरावट कभी नहीं रही जहाँ 5.8 पर्सेंटेज प्वाइंट कम करना पड़ा हो। जबकि चीन के बारे में स्थिति अलग है। आईएमएफ़ का अनुमान है कि उसकी जीडीपी विकास दर सकारात्मक रहेगी। इसने चीन के लिए जून में जहाँ जीडीपी विकास दर 1 फ़ीसदी रहने का अनुमान लगाया था वहीं अब इसने बढ़ाकर इसे 1.9 फ़ीसदी कर दिया है।
अर्थव्यवस्था या जीडीपी में सिकुड़न का अर्थ है कि विकास दर नेगेटिव में रहेगी। यानी जो पहले से स्थिति है उसमें बढ़ोतरी तो नहीं ही होगी, बल्कि वर्तमान स्थिति में गिरावट आएगी। यानी आसान भाषा में विकास का पहिया उल्टा घूमना कहा जा सकता है।
वैसे, आईएमएफ़ ने जो अपने अनुमान में संशोधन किया है वह इतना ज़्यादा है कि इसे अप्रत्याशित कहा जा सकता है। दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक संस्था आईएमएफ़ के पहले अनुमानों से कहीं ज़्यादा ख़राब स्थिति भारत में होती चली गई। पहले जो इसने जीडीपी के साढ़े चार फ़ीसदी होने का अनुमान लगाया था उससे कहीं ज़्यादा ख़राब प्रदर्शन भारत की अर्थव्यवस्था ने किया या फिर ऐसी स्थिति बन जाने दी गई कि इसमें अप्रत्याशित गिरावट आ जाए।
इस अप्रत्याशित गिरावट का कारण कोरोना लॉकडाउन रहा है। भारत में लॉकडाउन दुनिया में सबसे ज़्यादा लंबे समय तक रहा और सख़्ती से इसे लागू किया गया। इस दौरान पूरी आर्थिक गतिविधियाँ ठप पड़ गईं। उद्योग-धंधे बंद पड़ गए। करोड़ों लोग बेरोज़गार हो गए। और इसका असर अर्थव्यवस्था पर दिखा। तभी तो जून की तिमाही में जीडीपी विकास दर नेगेटिव में 23.9 फ़ीसदी चली गई।
अब जून क्वार्टर के बाद भी कोरोना को नियंत्रित नहीं किया जा सका है और आर्थिक गतिविधियाँ बुरी तरह प्रभावित हैं। हालाँकि अनलॉक होने के कारण अब आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आ रही है और अर्थव्यवस्था में थोड़ी सी जान आती दिख रही है।
बहरहाल, आईएमएफ़ के अनुमान से पहले दूसरी एजेंसियाँ भी भारत की जीडीपी के बारे में ऐसी ही नकारात्मक विकास दर का अनुमान लगाती रही हैं। पिछले हफ़्ते ही भारतीय रिज़र्व बैंक यानी आरबीआई ने भारत की जीडीपी की वृद्धि दर -9.5 फ़ीसदी रहने का अनुमान लगाया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां ही नहीं, घरेलू एजेन्सियां भी चिंता जता चुकी हैं। इन एजेंसियों का मानना है कि पहले जो अनुमान था, स्थिति उससे कहीं अधिक ख़राब होने जा रही है। हालाँकि अब आरबीआई का अनुमान है कि आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार होगा।
सितंबर के दूसरे हफ़्ते में केअर रेटिंग्स ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा था कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर शून्य से 8.2 प्रतिशत तक नीचे जा सकती है। इसने पहले जीडीपी के शून्य से 6.4 प्रतिशत तक नीचे जाने का अनुमान लगाया था।
केअर रेटिंग्स के पहले अंतरराष्ट्रीय निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स ने कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 14.8 प्रतिशत सिकुड़ेगी। यानी जीडीपी वृद्धि दर शून्य से 14.8 प्रतिशत से नीचे चली जाएगी। यह इसी कंपनी के पहले के अनुमान से कम है। पहले इस निवेश बैंक ने कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था 11.8 प्रतिश सिकुड़ेगी।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी फ़िच ने कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था 10.5 प्रतिशत सिकुड़ेगी। यह उसके पहले के अनुमान से बदतर स्थिति है। फ़िच रेटिंग्स ने पहले कहा था कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान भारत की जीडीपी शून्य से 5 प्रतिशत नीचे चली जाएगी।
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