अलोकतांत्रिक बयान
इसी सरकार का ऐसा ही अस्वाभाविक अलोकतांत्रिक बयान उस समय भी सामने आया था जब आधार प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही थी। सरकारी वकील ने कहा था कि आम लोगों को अपने शरीर पर भी कोई अधिकार तब नहीं है जब सरकार को उसकी जरूरत हो!
इस सरकार के हर नेता का ज़ोर शोर से दावा है कि मोदी सरकार देश की अब तक कि सबसे पारदर्शी सरकार है, लेकिन सरकार में शामिल और सरकार से बाहर आते लोग और फ़ैसले की दूसरी तसवीर पेश करते हैं ।
मोदी की शैक्षिक योग्यता पर सवाल
यह सरकार और इस दल की पूर्ववर्ती सरकारें और राज्य सरकारें ऐसे क़ानूनों को बनाने के लिए कुख्यात रही हैं, जिन्हें बाद में काला क़ानून कहा गया था। उन्होंने यूपीए सरकार के ज़माने में बनाये गए आरटीआई क़ानून को भी कमज़ोर करने के सारे प्रयास किये।आज तक देश के प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता के घोषित दावों की जाँच नहीं की जा सकी है, जबकि दो-दो मुख्य सूचना आयुक्त बदले जा चुके हैं। सरकार ने लोकपाल के मामले को पूरे पांच साल लटकाए रखा और आम चुनाव घोषित होने के बाद ही नियुक्ति की। इसी सरकार के समय में सुप्रीम कोर्ट के चार सबसे वरिष्ठ जजों ने खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि लोकतंत्र ख़तरे में है ।
स्वायत्तता पर सवाल
दरअसल बीते पाँच बरसों में मोदी सरकार ने जिस तरह से सरकार चलाई है उसने देश की स्वायत्त संस्थाओं की स्वायत्तता ख़तरे में डाल दी है । सबसे ताज़ा मामला चुनाव आयोग का है जिसके रवैये के बारे में रिटायर्ड प्रशासनिक सेवाओं के अफसरों के बहुत बड़े समूह ने गंभीर आरोपों का पत्र सार्वजनिक किया है।
तमाम ऐसे लोग जो स्त्रियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, मानवाधिकारवादियों, इतिहासकारों कलाकारों, पत्रकारों, बौद्धिकों, अकादमिकों और मौजूदा नेतृत्व के आलोचकों को एक विशाल संगठित गिरोह बनाकर धमकाने अपमानित करने गालियाँ बकने के काम में लिप्त हैं, वे प्रधानमंत्री के ट्विटर एकाउंट पर मित्र हैं।
देशभक्ति का चोला
कई लोगों को तो 130 करोड़ से ज़्यादा आबादी वाले देश के प्रधानमंत्री से निज़ी मुलाकात और सेल्फी खिंचवाने का गौरव प्राप्त है। यही गिरोह इस देश के अजीबोग़रीब बन चुके मीडिया के साथ बहुमत आबादी और उसके सामाजिक सांस्कृतिक राजनैतिक प्रतिनिधियों को देशद्रोही साबित करने के आपराधिक कारनामे को चौबीसों पहर प्रचारित करते रहते हैं।
निजी या कंपनी के लिए एक हज़ार से एक करोड़ तक के लिए ये बॉन्ड कोई भी ख़रीद सकता है। राजनैतिक दलों के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि वे बताएंँ कि उन्हें किसने ये बॉन्ड दिए।
काला धन का मुक्ति द्वार
एडीआर ने इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा था कि यह एक ऐसा मुक्ति द्वार है जिसके ज़रिये राजनैतिक दल और कॉरपोरेट जगत अपने काले धन के देश विदेश से राजनीति को प्रभावित करने में मनमाना स्तेमाल करेंगे।
सरकार का दावा था कि यह बॉन्ड चुनाव में काले धन को रोकेगा और चुनाव को पारदर्शी बनाएगा। साथ ही यह दानदाताओं की किसी तरह के प्रताड़ण से निजात दिलाने में मदद करेगा। इस धन को इनकम टैक्स फ्री भी रखा गया ।
बॉन्ड पर आपत्ति
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने जवाब में इस बॉड सिस्टम पर आपत्ति जताई। अपने एफ़ीडेविट में आयोग ने कहा कि उसने अप्रैल 2017 में क़ानून मंत्रालय को पत्र लिख कर आपत्ति जताई थी कि इस बॉन्ड से चुनावों में खर्च होने वाले धन के बारे में पारदर्शिता ख़त्म हो जाएगी।
आयोग ने लिखा कि विदेशों से धन लेने के लिए क़ानून के बदलाव के मामले में भी हमें आपत्ति है। अब विदेशी कंपनियां पैसे देकर राजनैतिक दलों से नीतियों में मनचाहे बदलाव करने के प्रयास करेंगी।
अपनी राय बतायें