सु्प्रीम कोर्ट ने बैंक से लिए गए क़र्ज़ के भुगतान न करने की छूट की मियाद बढ़ा कर सितंबर तक कर दी है। पहले यह अगस्त तक थी। इसका मतलब यह हुआ कि आप चाहें तो सितंबर तक बैंक को किश्त यानी ईएमआई न चुकाएं।
लोन मोरेटोरियम बढ़ाने के मुद्दे पर चल रही सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपनी ओर से यह मियाद बढ़ाई है। कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगाए जाने के बाद रिज़र्व बैंक के कहने पर सभी बैंकों ने क़र्ज़ भुगतान की किश्त 6 महीने तक नहीं चुकाने की छूट दे दी थी।
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ब्याज में मिलेगी छूट?
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि वह इस गुजारिश पर विचार करे कि इस मियाद का ब्याज क़र्ज़ लेने वालों से न वसूला जाए। उसने यह भी कहा कि इस अवधि के दौरान भुगतान नहीं किए जाने को एनपीए न माना जाए और क़र्ज़ लेने वाले की साख पर इसका बुरा असर नहीं पड़ना चाहिए।सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से कहा कि वह रिज़र्व बैंक और क़र्ज़ देने वाले बैंकों से विचार विमर्श कर जल्द कोई फ़ैसला करे।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील राजीव दत्त ने कहा, 'राहत कहां है? क़र्ज़ की रीस्ट्रक्चरिंग पहले की जानी चाहिए थी।' उन्होंने कहा कि हज़ारों लोग अस्पताल में हैं, लोग कष्ट काट रहे हैं। केंद्र सरकार को रियायत देने और ब्याज माफ़ करने पर फ़ैसला करना चाहिए।
इसके पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि कोरोना संकट की वजह से लोन मोरेटोरियम को दो साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है।
क़र्ज़ चुकाने पर मिली समय की छूट का मामला जितना आसान दिखता है, वाकई में होता नहीं है। जिसने क़र्ज़ लिया है, उसे ब्याज तो चुकाना ही होगा, अभी न सही बाद में। बैंक करता यह है कि लोन मोरेटोरियम की अवधि का पूरा पैसा ब्याज समेत मूल धन में जोड़ देता।
इस तरह क़र्ज़ लेने वाले को इस ब्याज पर ब्याज देना होता है और वह भी लंबे समय के लिए, जिससे उसका ब्याज कई गुणे बढ जाता है। बैंकों को यह सुविधा होती है कि वे ब्याज को मूल धन में जोड़ देते हैं तो वह तकनीकी तौर पर एनपीए नहीं कहाता है। उन्हें इस पैसे पर लंबे समय में अधिक ब्याज मिलता है।
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