इस साल पाँच अगस्त को अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद कश्मीर में वास्तव में क्या हो रहा है, क्या आपको पता है? कैसे अख़बार निकल रहे हैं? घाटी की ख़बरें कैसे आ रही हैं? चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी, कँटीले तार और चेकिंग। शुरुआत में तो आवाजाही के कोई साधन नहीं, न लैंडलाइन और न ही मोबाइल फ़ोन। और बाद में सरकारी फ़ैसिलिटेशन सेंटर की सुविधा। इसके लिए एक छोटा-सा कमरा। क़रीब दस कंप्यूटर और लैपटॉप के लिए एक -दो लैन केबल। लेकिन घाटी में क़रीब 400 पत्रकार। क्या सरकार ने जो कंप्यूटर और इंटरनेट मुहैया कराये हैं वे पर्याप्त हैं? सुनिए घाटी के ही पत्रकारों की ही ज़ुबानी। कुछ स्थानीय पत्रकारों ने अपनी आपबीती सुनाई स्मिता शर्मा को जो हाल ही में कश्मीर से लौटी हैं-
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